नए कानून के बावजूद नहीं थम रही पश्चिम बंगाल में मॉब लिंचिंग
१२ सितम्बर २०१९पश्चिम बंगाल में भीड़ हत्या पर अंकुश के लिए सरकार की ओर से कानून बनाने के बावजूद ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. यह कानून बनने के बाद बीते 10 दिनों के दौरान ऐसे पांच मामलों में दो लोगों की मौत हो चुकी है और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं. इससे पहले बीती जुलाई में उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जिलों में सामूहिक पिटाई की घटनाओं में चार लोगों की मौत हो गई थी और तीन अन्य घायल हो गए थे. यह महज संयोग नहीं है कि बंगाल में बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों के उभार के बाद ऐसे मामले बढ़े हैं. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि देश में भीड़ के हाथों हत्या की सबसे ज्यादा घटनाएं पश्चिम बंगाल में ही होती हैं. घोष इसके लिए तृणमूल कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. समाजशास्त्रियों का कहना है कि बढ़ती असहिष्णुता के साथ ही ऐसी घटनाओं का धार्मिक पहलू भी है. ज्यादातर मामलों में पीटने और पिटने वाले अलग-अलग कौम के होते हैं.
पीड़ित को बचाने आई पुलिस की भी पिटाई
बंगाल के बर्दवान जिले में बुधवार सुबह कुछ लोगों ने पीट-पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. राज्य में भीड़ हत्या के खिलाफ कानून पारित होने के बाद यह अपने किस्म की दूसरी घटना थी. अब तक मृतक की पहचान नहीं हो सकी है. बीते चार सितंबर को मुर्शिदाबाद जिले में एक मेडिकल स्टोर में तोड़-फोड़ करने वाले राजमिस्त्री कबीर शेख (32) की भी भीड़ ने बुरी तरह पिटाई की थी. मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
कूचबिहार जिले के एक गांव में मंगलवार रात को लोगों ने मानसिक रूप से विकलांग एक व्यक्ति की पेड़ से बांध कर पिटाई की थी. लेकिन पुलिस ने समय पर वहां पहुंच कर उसे बचा लिया. बीते आठ सितंबर को पश्चिम बर्दवान जिले के हीरापुर इलाके में कुछ लोगों ने बच्चा चोर होने के संदेह में एक बिजली मिस्त्री की पिटाई की थी. लेकिन पुलिस ने उसे बचा लिया. इस मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया है. इससे पहले बीते तीन सितंबर को जलपाईगुड़ी जिले के बनियापाड़ा गांव में बच्चा चोर होने के संदेह में 25 साल के धरम सिंह नामक एक व्यक्ति की जम कर पिटाई की गई थी. ऐसे ज्यादातर मामलों में पीड़ित को बचाने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस की टीम को भी भीड़ की हिंसा का शिकार होना पड़ा. कहीं पुलिस वालों पर हमले किए गए तो कहीं उनके वाहनों में तोड़-फोड़ की गई.
हाल के महीनों में भीड़ के हाथों पिटाई और हत्या के मामले लगातार बढ़े हैं. बीती जुलाई में उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जिलों में बच्चा चोर होने के संदेह में क्रमशः दो महिलाओं और दो पुरुषों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. इसी तरह मालदा जिले में मोटरसाइकिल चुराने के संदेह में लोगों में सनाउल शेख नामक एक युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. इलाज के लिए कोलकाता लाने के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका था. उसके बाद पूर्व मेदिनीपुर जिले में संजय चंद्र नामक एक युवक को भी चोर होने के संदेह में पीट कर मार डाला गया था. इससे पहले कथित गोरक्षकों ने उत्तर बंगाल में कई लोगों को पीट-पीट कर मार दिया था.
पूर्वोत्तर में कहां किसकी सरकार है?
नए कानून पर बीजेपी का ना समर्थन ना विरोध
राज्य में भीड़ के हाथों पिटाई और हत्या की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए ही ममता बनर्जी सरकार ने इन पर अंकुश लगाने और ऐसे मामलों को आपराधिक दर्जा देने के लिए विधानसभा में बीते 30 अगस्त को एक विधेयक पारित किया था. द वेस्ट बंगाल (प्रीवेंशन ऑफ लिंचिंग) बिल 2019 का विपक्षी कांग्रेस और सीपीएम ने तो समर्थन किया है. लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी बीजेपी ने ना तो इसका समर्थन किया है और ना ही विरोध. उसने अंदेशा जताया है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक बदला चुकाने के लिए कर सकती है.
विधेयक में किसी पर हमला करने और उसे घायल करने के दोषी लोगों को तीन साल से लेकर आजीवन सजा तक का प्रावधान है. संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी बताते हैं, "भीड़ की पिटाई से संबंधित व्यक्ति की मौत की स्थिति में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा के साथ ही पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भी भरना होगा. पुलिस महानिदेशक एक संयोजक की नियुक्ति करेंगे जो ऐसे मामलों की निगरानी और इन पर अंकुश लगाने के उपायों के लिए नोडल अधिकारी के तौर पर काम करेगा." प्रस्तावित विधेयक में भीड़ के पिटाई के शिकार लोगों या उनके परिजनों को मुआवजा देने का भी प्रावधान है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "भीड़ हत्या एक सामाजिक बुराई है और हमें एकजुट होकर इसका मुकाबला करना होगा. केंद्र सरकार को इसके खिलाफ कानून बनाना चाहिए था. लेकिन उसके ऐसा नहीं करने की वजह से ही राज्य सरकार ने नया कानून बनाया है." उन्होंने भीड़ के हाथों पिटाई और हत्या की घटनाओं के खिलाफ जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया है.
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
कैसे लगेगा असहिष्णुता पर अंकुश?
लेफ्टफ्रंट विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती और विधानसभा में कांग्रेस के सचेतक मनोज चक्रवर्ती ने उक्त कानून की जरूरत और मकसद पर तो कोई सवाल नहीं उठाया है. लेकिन उन्होंने चेतावनी दी है कि इस कानून का दुरुपयोग रोकने पर भी ध्यान रखना होगा. सुजन कहते हैं, "यह कानून तो ठीक है. लेकिन पुलिस को ध्यान रखना होगा कि राजनीतिक बदले की भावना से इसका दुरुपयोग नहीं हो." दूसरी ओर घोष कहते हैं, "राजनीतिक दबाव की वजह से पुलिस प्रशासन का मनोबल पूरी तरह से टूट गया है. ऐसे में इस प्रस्तावित कानून से भी कोई खास फायदा नहीं होगा." घोष इन आरोपों को निराधार बताते हैं कि बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों के मजबूत होने के बाद बंगाल में असहिष्णुता बढ़ी है. वह कहते हैं, "बंगाल में कानून व व्यवस्था की स्थिति बदहाल है. यही वजह है कि भीड़ हत्या के मामले में यह राज्य पूरे देश में अव्वल है."
पर्यवेक्षकों का कहना है कि समाज में लगातार बढ़ती सहिष्णुता भी इन घटनाओं के बढ़ने की एक प्रमुख वजह है. बीते लोकसभा चुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया था कि राज्य में धार्मिक आधार पर धुव्रीकरण तेज हो रहा है. एक कॉलेज में समाज विज्ञान के प्रोफेसर हरिहर दासगुप्ता कहते हैं, "भीड़ की पिटाई को महज एक कानून-व्यवस्था के नजरिए से देखना सही नहीं है. इसके पीछे समाज में बढ़ती असहिष्णुता भी काम करती है. ऐसे में महज कानून के जरिए इस समस्या पर अंकुश लगाना मुश्किल है." उनका कहना है कि आम लोगों में बढ़ती असहिष्णुता दूर करने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को खासकर ग्रामीण इलाकों, जहां ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं, में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना होगा.
लेफ्टफ्रंट के नेता सुजन चक्रवर्ती भी इसका समर्थन करते हैं. चक्रवर्ती कहते हैं, "कानून अपनी जगह है लेकिन उसके सही इस्तेमाल के साथ प्रशासन को ग्रामीण इलाकों में बढ़ती असहिष्णुता पर अंकुश लगाने के उपायों पर भी विचार करना होगा. उसी स्थिति में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा."
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