अंटार्कटिक की चादर की गहराई में जाएंगे नासा के रोबोट
३० अगस्त २०२४नासा के अंतरिक्ष यान बनाने में विशेषज्ञ इंजीनियर अब अंटार्कटिक की बर्फ की विशाल चादरों के पिघलने की दर मापने के लिए पानी के भीतर काम करने वाले रोबोटिक जांच यंत्रों का एक बेड़ा डिजाइन कर रहे हैं. इसका उद्देश्य यह जानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ कितनी तेजी से पिघल रही है और इसका समुद्र के जलस्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
इन पानी के भीतर चलने वाले वाहनों का एक प्रोटोटाइप लॉस एंजेलिस के पास नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) द्वारा विकसित किया जा रहा है. इसे इसी साल मार्च में अलास्का के उत्तर में स्थित बर्फ से ढके ब्यूफोर्ट सागर के नीचे अमेरिकी नौसेना की प्रयोगशाला में टेस्ट किया गया था.
जेपीएल के रोबोटिक्स इंजीनियर और आइसनोड परियोजना के प्रमुख पॉल ग्लिक ने बताया, "ये रोबोट धरती के सबसे कठिन स्थानों पर विज्ञान उपकरणों को पहुंचाने के लिए एक प्लेटफॉर्म हैं."
इन जांच यंत्रों का लक्ष्य अंटार्कटिक के आसपास गर्म होते महासागरीय पानी के कारण बर्फ की चादरों के पिघलने की दर के बारे में अधिक सटीक डेटा जमा करना है, ताकि वैज्ञानिक भविष्य में समुद्र स्तर में वृद्धि का पूर्वानुमान बेहतर तरीके से लगा सकें.
दुनिया की सबसे बड़ी बर्फ की चादर का भविष्य इस सप्ताह दक्षिणी चिली में 11वीं वैज्ञानिक समिति के अंटार्कटिक अनुसंधान सम्मेलन में जुटे लगभग 1,500 वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का प्रमुख केंद्र है.
लगातार पतली हो रही है चादर
जेपीएल के 2022 में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, अंटार्कटिक की बर्फ की चादर के पतले होने और इसके टूटने से 1997 से इसका द्रव्यमान लगभग 120 खरब टन कम हो गया है, जो कि पहले की तुलना में दोगुना है.
नासा के अनुसार, अगर यह बर्फ पूरी तरह से पिघल जाती है, तो इससे वैश्विक समुद्र स्तर में अनुमानित 200 फीट (60 मीटर) की वृद्धि हो सकती है. बर्फ की यह चादर हजारों वर्षों में बनी है. यह महासागर में जमीन से कई मील दूर तक फैली होती है और ग्लेशियरों को समुद्र में बहने से रोकती है.
उपग्रह से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि चादर का बाहरी भाग तेजी से टूटकर हिमखंडों में बदल रहा है. जितनी तेजी से यह चादर बिखर रही है, उतनी तेजी से फिर से नहीं बन सकती. साथ ही, बढ़ता महासागरीय तापमान चादर को नीचे से भी कमजोर कर रहा है, जिसका वैज्ञानिक आइसनोड जांच यंत्रों की मदद से और अधिक सटीकता से अध्ययन करने की उम्मीद कर रहे हैं.
ये बेलनाकार वाहन, जो लगभग 8 फीट (2.4 मीटर) लंबे और 10 इंच (25 सेमी) व्यास के होते हैं, बर्फ में बनाए गए छेदों या समुद्र में जहाजों से छोड़े जाएंगे.
हालांकि इनमें चलाने वाला कोई प्रोपल्शन नहीं होगा लेकिन ये जांच यंत्र विशेष सॉफ्टवेयर के मार्गदर्शन का उपयोग करते हुए धाराओं में बहेंगे और "ग्राउंडिंग जोन" तक पहुंचेंगे, जहां बर्फ की चादर महासागर के खारे पानी और जमीन से मिलती है. ये वैसी जगह हैं, जो सैटलाइट से भी नहीं देखी जा सकतीं.
जेपीएल के जलवायु वैज्ञानिक इयान फेंटी ने कहा, "लक्ष्य सीधे बर्फ और महासागर के पिघलने की जगहों से डेटा जुटाना है."
कैसे मिलेगा डेटा?
जब ये अपने लक्ष्यों पर पहुंच जाएंगे, तो ये जांच यंत्र अपना भार छोड़ देंगे और वाहन के एक सिरे से निकले तीन टांगों वाले "लैंडिंग गियर" का उपयोग करके बर्फ की चादर के नीचे खुद को जोड़ लेंगे. आइसनोड्स तब एक साल तक बर्फ के नीचे से डेटा रिकॉर्ड करेंगे, जिसमें मौसमी उतार-चढ़ाव भी शामिल हैं. फिर खुद को आजाद कर खुले समुद्र की ओर बहते हुए उपग्रह के माध्यम से जानकारी भेजेंगे.
अब तक बर्फ की चादर के पतले होने का दस्तावेजीकरण उपग्रह अल्टीमीटरों द्वारा ऊपर से बर्फ की ऊंचाई में बदलाव को मापकर किया गया था.
मार्च में किए गए परीक्षण के दौरान, एक आइसनोड प्रोटोटाइप ने समुद्र में 330 फीट (100 मीटर) की गहराई तक उतरकर लवणता, तापमान और प्रवाह का डेटा जमा किया था. पहले के परीक्षण कैलिफोर्निया के मोंटेरे बे और मिशिगन के ऊपरी प्रायद्वीप से सटे लेक सुपीरियर की जमी हुई सतह के नीचे किए गए थे.
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक ही जगह पर बर्फ की चादर से डेटा जमा करने के लिए 10 जांच यंत्र आदर्श होंगे, लेकिन ग्लिक ने बताया कि "पूरे पैमाने पर तैनाती के लिए समय-सीमा तैयार करने से पहले हमें और विकास और परीक्षण करने की आवश्यकता है."
वीके/आरपी (रॉयटर्स)