1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
विवादजर्मनी

महामारी के दौर में पेटेंट पर किच किच

५ फ़रवरी २०२१

यूरोप कोरोना टीकों की सप्लाई में कमी का सामना कर रहा है. वैक्सीनों से पेटेंट हटा दिया जाए तो विकासशील देश बड़ी मात्रा में वैक्सीन बना सकेंगे. लेकिन अमीर देश भारत और दक्षिण अफ्रीका के इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध कर रहे हैं.

https://p.dw.com/p/3ovsi
फाइजर-बायोनटेक की कोरोना वैक्सीनतस्वीर: Christof STACHE/AFP

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापास संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सामने एक प्रस्ताव रखा है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर कोरोना की वैक्सीनों को कुछ समय के लिए बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकार कानूनों से बाहर कर दिया जाए तो महामारी से लड़ने में आसानी होगी. जर्मन न्यूज एजेंसी डीपीए के मुताबिक इस प्रस्ताव पर डब्ल्यूटीओ में चर्चा हो रही है और अमीर देश प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं. भारत और दक्षिण अफ्रीका की दलील है कि आईपी अधिकार से छूट मिलते ही गरीब देशों की दवा निर्माता कंपनियां असरदार वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर पाएंगी. भारत दुनिया में सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता देश है.

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने इस मुद्दे को लेकर अक्टूबर 2020 में डब्ल्यूटीओ का रुख किया. इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (आईपी) अधिकार को निलंबित करने का मतलब यह होगा कि वैक्सीनों से जुड़े इंडस्ट्रियल डिजायन, कॉपीराइट और उनकी गोपनीय जानकारी साझा की जा सकेगी. दोनों देशों का कहना है, "वैक्सीनों, दवाओं, ताजा रिसर्च, मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई जैसे अफोर्डेबल मेडिकल प्रोडक्ट्स की जानकारी अगर समय रहते मिल जाए तो इससे कोविड-19 से असरदार तरीके से निपटने में मदद मिलेगी."

Indien Corona l Reise des Covid-Impstoffs
भारत में भी कोने कोने तक पहुंचाई जा रही हैं कोरोना वैक्सीनतस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है. इन देशों का कहना है आईपी अधिकार निलंबित करना, दवा निर्माता कंपनियों पर डाका डालने जैसा है. इससे मौलिक खोज करने वालों को धक्का लगेगा. वैक्सीनों के लिए की गई रिसर्च और इनके निर्माण में बहुत ज्यादा पैसा खर्च किया गया है. अमीर देशों का कहना है कि महामारी के इस दौर में वैक्सीन निर्माता कंपनियां रात दिन एक कर प्रोडक्शन कर रही हैं. इस दौरान वायरस म्यूटेट भी हो रहा है, लिहाजा ऐसे नाजुक दौर में आईपी अधिकारों को निलंबित करना नुकसानदेह हो सकता है.

वैक्सीन पर अमीर देशों की आलोचना

कुछ अमीर देश, अपनी जनसंख्या से कहीं ज्यादा कोरोना वैक्सीन ऑर्डर करने की वजह से भारी आलोचना झेल रहे हैं. वहीं गरीब देश वैक्सीन की सप्लाई पाने के लिए छटपटा रहे हैं. यही कारण है कि डब्ल्यूटीओ में इस मुद्दे पर बातचीत हो रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीनों के लिए मचा ये त्राहिमाम या वैक्सीन राष्ट्रवाद महामारी को और लंबा खींच सकता है.

वैक्सीन बना कर दुनिया तक पहुंचाना अब भी इतना मुश्किल क्यों है

मोदी की वैश्विक कंपनियों से निवेश की अपील

दवाओं को कोने कोने तक पहुंचाने की वकालत करने वाले गैर लाभकारी अभियान, मेडिसिंस लॉ एंड पॉलिसी की डायरेक्टर एलंट ह्योन कहती हैं, "हमें ये स्वीकार करना होगा कि वायरस किसी सीमा को नहीं जानता, ये पूरे विश्व में घूमता है, लिहाजा इससे निपटने का तरीका भी वैश्विक होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को इसका आधार बनाया जाना चाहिए." डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "कई बड़े स्तर के वैक्सीन निर्माता विकासशील देशों में हैं. जितनी प्रोडक्शन क्षमता है, उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि जिन लोगों के पास जानकारी और तकनीक है वे इसे साझा करें."

Deutschland | Coronavirus | Impfstoff Schott
बड़े पैमाने पर असरदार वैक्सीनों का प्रोडक्शन एक बड़ी चुनौतीतस्वीर: Schott

विरोधियों के तर्क

भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का विरोध करने वाले विशेषज्ञों का दावा है कि आईपी अधिकार में छूट देने से प्रोडक्शन पर बिल्कुल असर नहीं पड़ेगा. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चर्स एंड एसोसिएशंस के जनरल डायरेक्टर थोमस सुएनी कहते हैं, "वैक्सीन की पेटेंट जानकारी देने की मांग कुछ समय तक सप्लाई में एक सिंगल डोज भी नहीं बढ़ाएगी क्योंकि वे वैक्सीन निर्माण की उन जटिलताओं को नजरअंदाज कर रहे हैं जिससे वैक्सीन निर्माता और फॉर्मास्युटिकल कंपनियां गुजरती हैं."

वह यह भी कहते हैं, "बहुत असरदार वैक्सीन के विकास को लेकर जो माहौल बना दिया गया है, उससे ऐसा लगता है जैसे एक बार वैक्सीन तैयार होते ही, एक बटन दबाकर फैक्ट्रियों से अरबों डोज निकाली जाएंगी. मुझे लगता है कि हमें इस बात का अहसास रहना चाहिए कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया कितनी जटिल और मुश्किल है."

EU-Kommission-Präsidentin Ursula von der Leyen
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फोन डेय लाएनतस्वीर: OLIVIER HOSLET/POOL/AFP/Getty Images

यूरोपीय संघ की हालत बहुत खराब

जर्मन कंपनी बायोन्टेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर द्वारा कारगर कोरोना वैक्सीन विकसित करने के बावजूद यूरोप में वैक्सीन के लाले पड़े हैं. संघ के सभी 27 देशों के लिए वैक्सीन खरीदने वाले यूरोपीय संघ के पास पर्याप्त डोज नहीं हैं. वैक्सीन निर्माता भी पहले किए गए वादों को निभा पाने में असमर्थता जता रहे हैं. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फोन डेय लाएन ने पहली बार स्वीकार किया है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन जुटाने में यूरोपीय संघ नाकाम हुआ है.

कोरोना वैक्सीन लगाने में पिछड़ गया है जर्मनी

जर्मन अखबार ज्युडडॉएचे त्साइटुंग और अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बात करते हुए फोन डेय लाएन ने कहा, "हमने वैक्सीन डेवलपमेंट के समय इस सवाल पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया कि क्या कोई वैक्सीन मिल भी सकेगी. अब पीछे देखने पर लगता है कि हमें इसके समानांतर यह भी सोचना चाहिए था कि बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन करने में कैसी चुनौतियां सामने आएंगी." ब्रिटेन, और इस्राएल जैसे देशों में चल रहे बड़े टीकाकरण अभियान यूरोपीय संघ को चिढ़ा रहे हैं. ईयू के प्रोक्योरमेंट प्रोग्राम की खासी आलोचना हो रही है.

ओएसजे/एमजे (डीपीए, एएफपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore