अपनी गैस को जलाकर क्यों बर्बाद कर रहा है रूस
२६ अगस्त २०२२अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के डाटा के मुताबिक, रूसी कंपनी गाजप्रोम 17 जून से लगातार गैस जला रही है. यह गैस पोर्तोवा कंप्रेसर स्टेशन में जलाई जा रही है. आग की धधक इतनी बड़ी है कि उसे रूस के पड़ोसी देश फिनलैंड से भी देखा जा सकता है.
यूक्रेन युद्ध से पहले इस गैस का ज्यादातर हिस्सा नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन से यूरोप भेज दिया जाता था. लेकिन अब रूस यूरोप को दी जाने वाली गैस में कटौती कर रहा है. जर्मन मीडिया में इस तरह की रिपोर्टें भी हैं कि जो गैस जर्मनी को मिलनी चाहिए थी, रूस उसी को जला रहा है. जर्मन अखबार दी वेल्ट के मुताबिक जिस जगह गैस जलाई जा रही है, वह प्वाइंट नॉर्ड स्ट्रीम1 का स्टेशन है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों से नाराज रूस ने बीते जुलाई मध्य से गैस की सप्लाई बहुत कम कर दी है.
रूस की सरकारी गैस कंपनी गाजप्रोम, जर्मनी को 80 फीसदी कम गैस सप्लाई कर रही है. गाजप्रोम का कहना है कि टरबाइन और दूसरी तकनीकी समस्याओं के कारण ये कटौती की जा रही है. जर्मनी ने गाजप्रोम के इस बयान को बहाना करार दिया है. बर्लिन का कहना है कि मॉस्को गैस को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है.
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रूसी गैस पर यूरोप की निर्भरता
यूक्रेन युद्ध से पहले जर्मनी अपनी कुल गैस सप्लाई का 55 फीसदी हिस्सा रूसी गैस से पूरा करता था. जर्मनी के अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, स्पेन, डेनमार्क, फिनलैंड, पोलैंड, इटली, नीदरलैंड्स और स्विटजरलैंड जैसे देशों में कई कारखाने और बिजलीघर रूसी गैस से चलते हैं. यूरोपीय संघ के 27 देश करीब 38 फीसदी गैस रूस से खरीदते हैं.
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पेट्रोलियम रिफाइनरी में गैस को जलाना एक सामान्य प्रक्रिया है. हालांकि जिस कदर रूस अचानक बड़ी मात्रा में गैस जलाने लगा है कि उससे कई चीजें पता चलती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि रूस हर दिन जमीन से खूब गैस निकालता तो है लेकिन उसके पास उसे स्टोर करने करने के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं.
नेचुरल गैस और एलएनजी में अंतर
जमीन की गहराई से निकालनी जाने वाली प्राकृतिक पेट्रोलियम गैस को 162 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ठंडा और कंप्रेस कर तरल अवस्था में बदला जा सकता है. ऐसा करने से गैस का घनत्व बेहद कम हो जाता है और इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) नाम दिया जाता है. तरल में बदलने के बाद ही गैस को टैंकरों के जरिए ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है. लेकिन तरल में बदलने की प्रक्रिया खर्चीली है. इस ईंधन को बिना तरल में बदले गैसीय अवस्था में ट्रांसपोर्ट करने के लिए पाइपलाइन की जरूरत पड़ती है. नॉर्ड स्ट्रीम1 यही काम करती है.