पहली बार भ्रूण प्रत्यारोपण से गर्भवती हुई राइनो
२५ जनवरी २०२४वैज्ञानिकों ने एक मादा गैंडे को प्रत्यारोपण से गर्भवती कर दिया है. उन्होंने भ्रूण को इस मादा के गर्भ में प्रत्योरोपित कर दिया है. इस सफलता से उत्साहित वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तरीके से गैंडों की प्रजाति व्हाइट राइनो को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा, जिनकी संख्या बहुत कम हो चुकी है.
अन्य प्रजातियों पर परीक्षण करते हुए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में व्हाइट राइनो का भ्रूण तैयार किया था. इसके लिए अन्य मादा गैंडों से लिए गए अंडाणुओं और शुक्राणुओं का प्रयोग किया गया और उन्हें पिछले साल सितंबर में केन्या में एक मादा गैंडे में प्रत्यारोपित किया गया.
अगले साल होगा जन्म
केन्या के ओल-पेजेता कंजरवेटरी में यह मादा राइनो अब 70 दिनों की गर्भवती है. बुधवार को शोधकर्ताओं ने कहा कि 6.4 सेंटीमीटर का नर-भ्रूण अच्छी तरह विकसित हो रहा है. राइनो 16 से 18 महीने तक गर्भवती रहती हैं. यानी, इस बच्चे का जन्म अगले साल हो सकता है.
इस परीक्षण पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के समूह ने एक बयान में कहा, "सफल भ्रूण-प्रत्यारोपण और गर्भाधान प्रयोग की सफलता का सबूत है और शोधकर्ता अब उन व्हाइट राइनो पर इसे आजमा सकते हैं, जिन्हें विलुप्ति से बचाना इस अभियान का मुख्य मकसद है.”
अफ्रीका में करीब 20 हजार व्हाइट राइनो बचे हैं. अपने सींगों के कारण यह प्रजाति और अन्य प्रजातियां शिकारियों के निशाने पर रही हैं. इस वजह से इनकी संख्या बहुत कम हो गई थी लेकिन पिछले कुछ सालों से चलाए जा रहे संरक्षण अभियान के कारण अब इनकी संख्या बढ़ रही है. लेकिन उत्तरी व्हाइट राइनो के पूरी दुनिया में सिर्फ दो प्राणी बचे हैं.
कोई नर नहीं बचा
27 साल की नाजिन और उसकी 17 साल की बेटी फातू दोनों मादाएं ओल-पेजेता में रहती हैं लेकिन वे दोनों ही कुदरतीतौर पर गर्भधारण नहीं कर सकतीं. 2018 में दुनिया के आखिरी व्हाइट राइनो को सूडान में दया-मृत्यु दे दी गई थी. 45 साल के उस गैंडे की उम्र बहुत ज्यादा हो गई थी और वह स्वस्थ नहीं था. नाजिन उसी की संतान है.
वैज्ञानिकों ने उस गैंडेके शुक्राणु संभालकर रख लिए थे. इसके अलावा चार और नरों के शुक्राणुओं को संरक्षित करके रखा गया है. उम्मीद की जा रही है कि ये शुक्राणु मादाओं में रोपित करके और ज्यादा व्हाइट राइनो पैदा करने में मदद मिलेगी.
कुछ संरक्षण-समूहों का कहना है कि आईवीएफ तकनीक से व्हाइट राइनो को बचा पाने में अब बहुत देर हो चुकी है क्योंकि चाड, सूडान, युगांडा, कांगो और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्किन में उनके कुदरती रहवास युद्धों की भेंट चढ़ चुके हैं.
इस आधार पर यह तर्क भी दिया जा रहा है कि शोधकर्ताओं की कोशिश अन्य प्रजातियों को बचाने की होनी चाहिए, जिनके बचने की संभावनाएं ज्यादा हैं.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)