स्कॉटलैंड में महिलाओं को मिलेंगे मुफ्त में सैनेटरी पैड
२६ फ़रवरी २०२०माहवारी के दौरान महिलाओं को असहनीय पीड़ा सहनी पड़ती है. इस दौरान महिला को अपनी स्वच्छता का भी खास ध्यान रखना पड़ता है. कई देशों में महिलाएं सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं तो भारत जैसे देशों के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं नैपकिन के अभाव में कपड़े का भी इस्तेमाल करती हैं.
पीरियड्स या माहवारी के दौरान महिलाओं को होने वाली असुविधा और उनकी स्वच्छता पर ध्यान देते हुए स्कॉटलैंड की संसद ने बड़ा कदम उठाया है. स्कॉटलैंड की संसद ने देश की सभी महिलाओं के लिए सैनेटरी उत्पाद को मुफ्त में बांटने की योजना को मंजूरी दे दी है. कानून बनने के बाद टैंपोन और सैनेटरी नैपकिन सामुदायिक केंद्र, यूथ क्लब और दवा दुकान जैसे सार्वजनिक स्थानों पर उपलब्ध कराया जाएगा. मुफ्त में सैनेटरी नैपकिन और टैंपोन बांटने का सालाना खर्च 24 मिलियन पाउंड बताया जा रहा है. पीरियड प्रोडक्ट्स (मुफ्त प्रावधान) स्कॉटलैंड बिल के पक्ष में 112 वोट पड़े जबकि इस बिल के खिलाफ किसी ने भी वोट नहीं किया. अब यह बिल दूसरे चरण के लिए आगे जाएगा. जिसमें सांसद बिल में जरूरी संशोधन का प्रस्ताव कर सकते हैं.
बहस के दौरान बिल की प्रस्तावक मोनिका लेनॉन ने कहा, "यह ऐतिहासिक क्षण है. स्कॉटलैंड में माहवारी को सामान्य बनाने की कोशिश हुई है और संसद ने देश की जनता को संदेश दिया है वह कि वह लैंगिक समानता को गंभीरता से लेती है.” बहस के दौरान एक और सांसद ने एलिसन जॉनस्टोन ने सवाल किया, "2020 में ऐसा क्यों है कि टॉयलेट पेपर को एक जरूत के तौर पर देखा जाता है लेकिन पीरियड के दौरान इस्तेमाल होने वाले उत्पाद क्यों को नहीं? प्राकृतिक शारीरिक कार्य के लिए आर्थिक रूप से दंडित होना न्यायसंगत नहीं है."
साल 2018 में स्कॉटलैंड स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में मुफ्त सैनेटरी उत्पाद देने वाला वाला दुनिया का पहला देश बन गया था. ब्रिटेन में सैनेटरी उत्पाद पर मौजूदा समय में 5 फीसदी टैक्स लगता है. पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की सरकार ने कहा था कि वह "टैंपोन टैक्स" को खत्म करना चाहती है लेकिन उनके हाथ यूरोपीय संघ के कानूनों से बंधे हुए हैं, जो कुछ उत्पादों के लिए टैक्स की दर निर्धारित करते हैं. सरकार ने कहा था कि टैक्स को 2016 में खत्म कर दिया जाएगा लेकिन वह अब तक नहीं हो पाया है. मंगलवार को संसद के बाहर लेनॉन एक रैली में शामिल हुईं और उनके हाथ में एक तख्ती थी जिस पर लिखा था, "मासिक धर्म से जुड़े प्रोडक्ट तक पहुंच एक अधिकार है. पीरियड.”
भारत की बात की जाए तो कई सरकारी और निजी स्कूल-कॉलेजों में जरूरत के वक्त लड़कियों को पीरियड के दौरान सैनेटरी पैड मुहैया कराए जाते हैं. भारतीय परिवेश में कम उम्र की किशोरियां हो या अन्य युवतियां, वे अपनी निजी समस्याओं पर खुलकर बात करने में झिझकती हैं और अपनी स्वच्छता जैसे मसले में भी संकोच करती हैं. यही कारण है कि महिलाएं तमाम ऐसे रोगों की जद में आ जाती हैं, जिसे स्वच्छता के जरिए रोका जा सकता है.
एए/एनआर (रॉयटर्स)
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