सेनेगल: कैसा है जीवन धरती की सबसे गर्म जगह पर
सेनेगल के प्रांत मतम को इस समय धरती पर सबसे गर्म जगह माना जाता है. कड़ी गर्मी के अलावा पानी की कमी ने वहां रहने वाले फुलानी बंजारों के लिए हालात को और मुश्किल बना दिया है.
मस्जिद में छांव
मतम उत्तर-पूर्वी सेनेगल में एक मुस्लिम-बहुल इलाका है. उसकी राजधानी मतम शहर में लोग लगातार कड़ी गर्मी में ही अपना जीवन बिताते हैं. यहां तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है, जिस वजह से इस इलाके को अप्रैल 2023 से धरती की सबसे गर्म जगह माना जाने लगा है. लोग छांव और गर्मी से थोड़ी राहत पाने के लिए मस्जिद में शरण लेते हैं.
सिर्फ नमाज के लिए घर से बाहर निकलना
82 साल के द्विबेरु दियांका जैसे बुजुर्गों के लिए इस तरह की गर्मी की वजह से हृदय रोग और सांस लेने की शिकायतों का खतरा बना रहता है. दियांका तपते सूरज और गर्मी से बचे रहने के लिए दिन भर अपने बेडरूम में ही रहते हैं. वो कभी कभी कमरे से बाहर निकलते भी हैं तो सिर्फ टहल कर मस्जिद तक जाने के लिए.
अंधेरा और गर्मी
लेकिन इमारतों के अंदर भी अधिकांश लोग गर्मी से बच नहीं पाते. कई लोगों के घरों में बिजली नहीं है तो वो लोग पंखे तक नहीं चला सकते. रात में भी तापमान 35 डिग्री तक रहता है.
पानी की तलाश में
इस चरम गर्मी का मतम प्रांत के सुदूर इलाकों पर विशेष रूप से बुरा असर पड़ा है. फुलानी बंजारे पारंपरिक रूप से सहेल के सूखे मैदानों से हो कर पानी पीने के आखिरी बचे स्थानों तक जाते हैं. आज कई फुलानी - जिन्हें यहां फुलबे, फुला या पेउल नाम से भी जाना जाता है - ज्यादातर गतिहीन जीवन जीते हैं. अक्सर इन्हें साफ पानी की सुनिश्चित सप्लाई भी नहीं मिलती.
प्यासे पशु
चरम गर्मी फुलानियों के मवेशियों की पानी की जरूरतों को दोगुना कर देती है. मतम में भेड़ें अमूमन दिन भर में 2.5 लीटर पानी पीती हैं, लेकिन मौजूदा गर्म की लहर में उन्हें पांच लीटर पानी तक की जरूरत पड़ जाती है. यह ऐसा इलाका है जहां बारिश सिर्फ कुछ ही महीनों में होती है और ऐसे में साफ पानी यहां एक बहुमूल्य संसाधन है.
पानी लाने की समस्या
इस इलाके में पानी हासिल करना पहले भी बेहद मुश्किल था, लेकिन अब यह और मुश्किल होता जा रहा है. अपने और अपने मवेशियों के लिए इन चरवाहों को दिन में कई बार पैदल या गधों के साथ पानी लाने के लिए बाहर निकलना पड़ता है. बचे खुचे पानी के स्थानों तक पहुंचने के लिए इन्हें अक्सर इस सूखी गर्मी में एक तरफ 20 किलोमीटर तक का रास्ता तय करना पड़ता है.
नल के पानी की जगह गड्ढों में पानी
मतम की नदियां और प्राकृतिक तालाब नवंबर से ही सूखना शुरू हो जाते हैं. फिर नदी के सूखे हुए के तले में पानी के गड्ढे खोदने के अलावा पानी हासिल करने का और कोई चारा नहीं रह जाता. गर्मियों में तो साफ पानी की भारी कमी हो जाती है.
कुएं का पानी
कई फुलानी परिवार मवेशियों के लिए बनाये गए कुओं से गंदा पानी भी इस्तेमाल कर लेते हैं. सहेल देशों में पेड़ों की चौड़ी पट्टी के जरिए मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए शुरू किए गए 'द ग्रेट ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट' का भी अभी तक मतम प्रांत में बहुत कम सकारात्मक असर हुआ है. (फ्लोरियन मायर)