खालिस्तानी अमृतपाल सिंह की जीत-हार पर होगी सरकार की नजर
३१ मई २०२४लोकसभा चुनाव 2024 के बीच अमृतपाल सिंह अपने चुनाव क्षेत्र से करीब तीन हजार किलोमीटर दूर एक जेल में बंद हैं. अपने समर्थकों के दम पर चुनाव लड़ रहे सिंह की हार-जीत पर भारत सरकार भी निगाह होगी. उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है.
31 साल के अमृतपाल सिंह असम की कड़ी सुरक्षा वाली जेल में बंद हैं. वह पंजाब के खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां गांव-गांव में उनके बुलेटप्रूफ जैकेट पहने और तलवार हाथ में थामे तस्वीरों वाले पोस्टर चिपके हैं.
सिंह को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था, जब वह और उनके सैकड़ों समर्थकों ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया था. यह हथियारबंद भीड़ अमृतपाल सिंह के एक सहयोगी को छुड़वाना चाहती थी.
अमृतपाल सिंह को खालिस्तान का समर्थक माना जाता है. चुनाव में उनकी जीत ना सिर्फ उनके कथित दावों को मजबूत आधार दे सकती है बल्कि भारत सरकार की चिंता यह होगी कि उनकी जीत से खालिस्तान का आंदोलन फिर से जोर पकड़ सकता है.
सिंह के पिता, 61 साल के तरसेम सिंह कहते हैं, "लोग पहली जून को अपना फैसला सुनाएंगे. वे उसकी छवि खराब करने वाले और पंजाब व हमारे समुदाय के लोगों का नाम खराब करने वालों को एक अहम संदेश भेजेंगे.”
अलगाववाद की भावना
खडूर साहिब में 1 जून को मतदान होना है. उससे पहले अमृतपाल सिंह के समर्थक जमकर प्रचार में लगे रहे. वहां एक गुरुद्वारे में उनके समर्थक तरसेम सिंह से मिल रहे थे. इस गुरुद्वारे की दीवारों पर 1990 के दशक में पुलिस और सेना द्वारा मुठभेड़ आदि में मारे गए सिखों की तस्वीरें लगी हैं, जिन्हें शहीद कहा गया है.
सिख समुदाय के कुछ लोग 1970 के दशक से ही अपने अलग देश की मांग करते रहे हैं लेकिन 1990 में यह आंदोलन हिंसक हो गया था और उसे भारत सरकार ने बेहद सख्ती से कुचला था. उस दौरान कई हजार लोगों की जानें गईं.
1990 के दशक में पंजाब पुलिस और भारतीय सेना ने बहुत बेरहमी से इस आंदोलन को कुचला. तब पंजाब में शांति हो गई. लेकिन पिछले साल इस आंदोलन ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनाईं जब कनाडा और अमेरिका ने आरोप लगाया कि भारत सरकार खालिस्तानी नेताओं की हत्याओं या हत्या की साजिशों में शामिल थी. भारत इस आरोप को गलत बताता है.
पिछले साल अमृतपाल सिंह सुर्खियों में रहे थे. 2023 में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि वह सिखों और पंजाब के लोगों के लिए एक अलग देश चाहते हैं. हालांकि चुनाव प्रचार में उनके समर्थक इस मुद्दे से ज्यादा पंजाब में नशीली दवाओं, पूर्व उग्रवादियों को जेलों से छुड़वाने और हिंदू बहुल भारत में सिख पहचान की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात करते हैं.
मीडिया से बातचीत में उनके समर्थक और पिता खालिस्तान के मुद्दे पर बात करने से भी बचते हैं. सिंह के वकील, 27 वर्षीय ईमान सिंह खारा कहते हैं, "अमृतपाल सिंह के नाम की सूनामी चल रही है और उसके खिलाफ जो भी खड़ा होगा, बह जाएगा.”
जीत पाएंगे अमृतपाल?
समर्थकों के मुताबिक सिंह को खडूर साहिब से चुनाव लड़ने के लिए समुदाय ने ही तैयार किया. पाकिस्तान से लगता खडूर साहिब सिखों का बड़ा ऐतिहासिक केंद्र है. हालांकि वह जेल में हैं और समर्थकों के मुताबिक चुनाव लड़ने में झिझक रहे थे लेकिन बाद में तैयार हो गए. भारतीय कानून के मुताबिक वे लोग भी चुनाव लड़ सकते हैं, जिन पर मुकदमा चल रहा है लेकिन आरोप साबित नहीं हुए हैं.
सिंह एक निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सारे प्रतिद्वन्द्वी भी सिख ही हैं. उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से है. बीजेपी उम्मीदवार मनजीत सिंह मन्ना कहते हैं कि अमृतपाल सिंह के पास जीतने लायक समर्थन नहीं है.
मन्ना ने कहा, "लोगों ने उग्रवाद का समय देखा है और वे नहीं चाहते कि वैसा समय दोबारा लौटे.”
विशेषज्ञों का मानना है कि खालिस्तान के लिए समर्थन देश के भीतर से ज्यादा विदेशों में बसे सिखों के बीच है, लेकिन स्थानीय तत्व भी मजबूत हो सकते हैं. चंडीगढ़ स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डिवेलपमेंट एंड कम्यूनिकेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार बताते हैं, "जब आप उदारवादियों को कमजोर कर देते हैं तो हाशिये पर मौजूद उग्रवादी तत्वों को भी आवाज मिल जाती है. मुकाबला चार गुना है लेकिन अमृतपाल जीत सकते हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)