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आतंकवाद

यूं मारे गए थे दानिश सिद्दीकी

२५ अगस्त २०२१

अफगानिस्तान में दानिश सिद्दीकी की मौत के दौरान की परिस्थितियों पर संदेह बना हुआ है. रॉयटर्स ने एक खास पड़ताल के जरिए कुछ गुत्थियां सुलझाई हैं.

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तस्वीर: Prabin Ranabhat/SOPA Images/ZUMA/picture alliance

जून के महीने में जब तालिबान चारों तरफ से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की तरफ बढ़ रहा था और सैकड़ों लोग लड़ाई में मारे जा रहे थे, तब भारत के 38 वर्षीय फोटो-पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने फैसला किया कि वह अफगानिस्तान जाएंगे. उन्होंने अपने बॉस से कहा था, "अगर हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?”

11 जुलाई को सिद्दीकी कंधार स्थित अफगान स्पेशल फोर्सेस के अड्डे पर पहुंचे जहां से उन्हें एक यूनिट के साथ जोड़ दिया गया. यह विशेष कमांडो दल तालिबान का सफाया करने के मकसद से भेजा गया था.

Danish Siddiqui
दानिश सिद्दीकीतस्वीर: Rafiq Maqbool/AP/picture alliance

13 अगस्त को सिद्दीकी ने विद्रोहियों से घिरे एक पुलिसकर्मी को बचाने के सफल मिशन को कवर किया. अभियान पूरा होने के बाद जब वह लौट रहे थे तो उनके वाहन रॉकेट से ग्रेनेड दागे गए. उस हमले का सिद्दीकी ने वीडियो भी बनाया. वे तस्वीरें और वीडियो रॉयटर्स एजेंसी को भेजे गए. बाद में उन्होंने ट्विटर पर भी लड़ाई के बारे में जानकारी दी.

सिद्दीकी के एक दोस्त ने वॉट्सऐप पर लिखा, "होली मदर ऑफ गॉड. यह तो पागलपन है.” कई युद्धों, हिंसक भीड़ और शरणार्थी संकटों को कवर कर चुके सिद्दीकी ने अपने दोस्त को भरोसा दिलाया कि उन्होंने खतरे का पूरा जायजा ले लिया है.

16 जुलाई को हुई मौत

किसी भी खतरनाक जगह पर अपने पत्रकारों को भेजने या ना भेजने की जिम्मेदारी रॉयटर्स के संपादक और मैनेजर लेते हैं. वे कभी भी पत्रकार को वापस बुला सकते हैं. पत्रकार खुद भी खतरा महसूस होने पर लौट सकते हैं. सिद्दीकी ने बने रहने का फैसला किया. उन्होंने लिखा, "चिंता मत कीजिए. मुझे पता है कब बंद करना है.”

तीन दिन बाद, 16 जुलाई को सिद्दीकी और दो अफगान कमांडो तालिबान के एक हमले में मारे गए. तब स्पिन बोल्दाक कस्बे को तालिबान से वापस छीनने की लड़ाई चल रही थी.

देखेंः सिद्दीकी की लीं तस्वीरें

सिद्दीकी की मौत कैसे हुई, इस बारे में पूरी जानकारी अभी तक हासिल नहीं हो पाई है. शुरुआती खबरें थीं कि उनकी मौत गोलीबारी के बीच फंस जाने के दौरान हुई. लेकिन उनकी अपने दफ्तर से बातचीत हुई और अफगान स्पेशल फोर्सेस के कमांडरों के बयान तस्वीर को स्पष्ट करते हैं.

ताजा जानकारी के मुताबिक सिद्दीकी एक ग्रेनेड हमले में घायल हो गए थे. उन्हें इलाज के लिए एक स्थानीय मस्जिद में ले जाया गया. कमांडरों के मुताबिक उनके बाकी साथियों ने सोचा कि वे लोग जा चुके हैं और वे भी लौट गए.

गलती से छूट गए थे दानिश

मेजर जनरल हैबतुल्लाह अलीजई तब स्पेशल ऑपरेशन कॉर्प्स के कमांडर थे. वह बताते हैं कि तेज लड़ाई के दौरान जब अफगान सैनिकों ने पीछे हटने का फैसला किया तो उन्होंने सोचा कि सिद्दीकी और दो सैनिक पहले ही लौट चुके हैं.

हैबतुल्लाह के बयान की तस्दीक चार अन्य सैनिकों ने भी की, जो उस हमले के वक्त मौजूद थे. अलीजई कहते हैं, "वे वहीं रह गए.”

उसके बाद क्या हुआ, इसकी पूरी जानकारी अभी भी नहीं मिल पाई है. अफगान सुरक्षा अधिकारियों और भारत सरकार के अधिकारियों ने खुफिया जानकारी, उपलब्ध तस्वीरों और सिद्दीकी के शरीर की जांच के आधार पर कहा है कि उनके शव को क्षत-विक्षत किया गया. तालिबान इस बात से इनकार करता है.

तस्वीरेंः आतंक से निजात

रॉयटर्स ने जानकारी पाने के लिए ब्रिटेन के एक फॉरेंसिक विशेषज्ञ से भी मश्विरा किया. फॉरेंसिक इक्विटी नामक संस्था के फिलिप बॉयस ने हमले के फौरन बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट की गईं तस्वीरों को सिद्दीकी के शव और एक्सरे से तुलना के बाद कहा कि "यह तो स्पष्ट है कि मरने के बाद भी उनके शरीर पर गोलियां दागी गईं.”

शरीर पर कैसे निशान

कुछ खबरें आई थीं कि सिद्दीकी के शरीर को गाड़ी से कुचला गया. बॉयस कहते हैं कि गोलियों के निशान तो हैं लेकिन शरीर पर दूसरी किसी चोट का मौत के बाद होने का पता नहीं चलता.

एक तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद का कहना है कि सिद्दीकी को जो भी घाव लगे हैं वे तालिबान को उनका शव मिलने के पहले ही लगे हैं.

सिद्दीकी को ऐसे खतरनाक अभियान पर भेजने को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं. दिल्ली में सिद्दीकी के साथ काम कर चुके पत्रकार कृष्णा एन दास कहते हैं, "उन्हें सेना के साथ जाने की इजाजत ही क्यों दी गई? उन्हें वापस क्यों नहीं बुला लिया गया?”

अन्य पत्रकारों का मानना है कि विशेष रूप से प्रशिक्षित अफगान फौजों के साथ रहते हुए युद्ध को कवर करने तरीका एकदम सही था. युद्धों की अपनी तस्वीरों के लिए मशहूर रॉयटर्स के गोरान टोमासेविच कहते हैं, "अगर आपको ऐसे किसी मिशन का हिस्सा बनने का मौका मिलता है, तो आप हां करते हैं.”

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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