तालिबान ने स्टेडियम में सबके सामने दी मौत की सजा
२३ फ़रवरी २०२४अफगानिस्तान के वार्दाक प्रांत के सईद जमाल और गजनी के गुल खान को गजनी के एक फुटबॉल स्टेडियम में गुरुवार को सार्वजनिक तौर पर मौत की सजा दी गई. दोनों पर अलग अलग हमलों में दो लोगों की चाकू मार कर हत्या करने का आरोप था.
तालिबान के सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को दोषी पाया था. जिनकी हत्या का उन्हें दोषी पाया गया था, उन मृतकों के रिश्तेदारों ने स्टेडियम में हजारों लोगों के सामने उन्हें गोली मार दी.
परिवार ने नहीं किया माफ
हालांकि इस संबंध में अलग अलग मीडिया रिपोर्टों में अलग दावे किए गए हैं. एपी का कहना है कि मृतकों के रिश्तेदारों ने ही गोलियां चलाईं, जबकि एएफपी का कहना है कि उन्हें इसका प्रस्ताव दिया गया गया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने ही दोनों को मार दिया.
अदालत द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया कि तीन निचली अदालतों और तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा ने इन दोनों के अपराधों के बदले में इस सजा का आदेश दिया था. धार्मिक विद्वानों ने मृतकों के रिश्तेदारों से दोषियों को माफ करने की अपील की थी, लेकिन उन्होंने अपील को ठुकरा दिया.
गजनी पुलिस के एक प्रवक्ता अबू खालिद सरहदी ने इस बात की पुष्टि की कि मृतकों के रिश्तेदारों ने ही दोनों दोषियों को मौत की सजा दे. उन्होंने यह नहीं बताया कि किस तरह की बंदूक का इस्तेमाल किया गया था.
कुल 15 गोलियां चलाई गईं, जिनमें से एक दोषी पर आठ और दूसरे पर सात गोलियां चलाई गईं. सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता अब्दुल रहीम रशीद ने बताया कि दोनों को पीछे से गोली मारी गई. उसके बाद एम्बुलेंसों में उनके शवों को वहां से ले जाया गया.
संयुक्त राष्ट्र ने की 'कड़ी निंदा'
इन दोनों को मिला कर 2021 में सत्ता फिर से हथियाने के बादतालिबान ने अभी तक चार लोगों को सार्वजनिक रूप से सजा दी है. संयुक्त राष्ट्र ने सार्वजनिक स्तर पर मौत की सजा, कोड़े मारने की सजा और पत्थर से मारने की सजा देने के लिए तालिबान की कड़ी निंदा की है और उसके नेताओं को इसे बंद करने के लिए कहा है.
गुरूवार को संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वह मौत की सजा के प्रति कड़ा विरोध व्यक्त करता है. उसने यह भी कहा कि मौत की सजा जीवन के मूलभूत अधिकार के विरुद्ध है. अफगानिस्तान में उसके कार्यालय ने तालिबान के अधिकारियों से अपील की कि वो मौत की सजा को खत्म करने के लिए उस पर तुरंत रोक लगाएं.
1990 के बाद के दशकों में जब अफगानिस्तान में तालिबान का पिछला शासन था, उस समय भी तालिबान नियमित रूप से सार्वजनिक तौर पर मौत की सजा, कोड़े मारने की सजा और पत्थर से मारने की सजा देता था.
सीके/एए (एपी, एएफपी)