क्यों गायब हो रहे हैं चाय बागान मजदूरों के बच्चे
२३ जनवरी २०१७बंगाल के चाय बागान में काम करने वाले आगुआ ओरान जब रात को काम से घर लौट रहे थे तो रास्ते में कुछ लोगों ने उन्हें रोककर कहा कि वे उनकी बेटी को काम दिलाने के लिए शहर ले जाना चाहते हैं. हालांकि ओरान ने ऐसा करने से मना कर दिया लेकिन अगले दिन जब वह काम से लौटे तो देखा कि बेटी गायब थी. ओरान ने कहा कि वही मानव तस्कर उनकी बच्ची को अपने साथ ले गए. ओरान कहते हैं कि अगर उन्हें जल्दी नहीं होती और वह अपनी बेटी को इस बारे में समझा पाते. लेकिन ये तस्कर, ओरान के कुछ कह पाने से पहले ही उसकी बेटी को बहला-फुसला कर नए कपड़े, फोन, आदि देने के बहाने ले गए. ओरान ने बताया कि इन लोगों को यहां हर एक चीज के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, क्योंकि ये बागान आज बंद होने की कगार पर हैं.
साल 2002 से इस इलाके में चाय बागानों की बंदी का सिलसिला चला आ रहा है. महज पांच सालों के भीतर तमाम बागान बंद हो चुके हैं. प्रबंधन कहता है कि वे भारी कर्ज से जूझ रहे हैं और उनके लिए हालात मुश्किल हैं.
एक गैर लाभकारी संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू के मुताबिक पश्चिम बंगाल में साल 2014 के दौरान बच्चों की गुमशुदगी के 14 हजार से भी अधिक मामले दर्ज किए गए थे. और अब आलम यह है कि देश में गायब होने वाले हर पांच बच्चों में से एक पश्चिम बंगाल से होता है. संस्था से जुड़े अतिंद्र नाथ दास कहते हैं कि गुमशुदा बच्चे और अपराध में सीधा नाता होता है. गायब होने वाले अधिकतर बच्चों की या तो तस्करी होती है या उनके अपहरण के मामले सामने आते हैं.
राज्य के बाल कल्याण बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि इन बागानों के तकरीबन 276 मामलों में जवान लड़कियां एजेंटों के साथ गायब हुई हैं. एक अन्य संस्था से जुड़े विक्टर बसु के मुताबिक कई मामलों में ये मां-बाप बड़े ही लाचार नजर आते हैं. कई बार तो ये कोई शिकायत ही दर्ज नहीं कराते, बस इसी उम्मीद में रहते हैं कि उनकी बेटियां घर लौट आएंगी. कभी इन्हें कुछ हजार रुपये देकर यही तसल्ली दे दी जाती है कि सब कुछ ठीक है.
ओरान के ही घर के पास ही रुक्मिणी नाइक का भी घर है जो अपनी 14 साल की बेटी की तस्वीर लिए उसे खोज रहे हैं. नाइक ने बताया कि पिछले साल भी ये लोग उनकी बच्ची को ले गए थे लेकिन उस वक्त तो जैसे-तैसे उसे खोज निकाला था. इस बार भी उनके पड़ोस में रहने वाला एक आदमी उन्हें मनाता रहा और एक दिन अचानक उनकी बेटी गायब हो गई. बाल तस्करी रोकने की दिशा में काम कर रहे लोग बताते हैं कि इन लड़कियों से एजेंट सीधे संपर्क करते हैं और इन्हें कपड़े और मेकअप आदि का लालच देते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में मानव तस्करी के मामलों में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है.
इन चाय बागानों में भूख और मौत तेजी से पनप रही है लेकिन अब भी यहां करीब दो लाख परिवार रह रहे हैं. जो महिलाएं पहले बागानों से चाय चुनती थीं वे अब 150 रुपये की दिहाड़ी के लिए नदी किनारे पत्थर तोड़ती हैं. राष्ट्रीय महिला आयोग की एक टीम ने इन बागानों का मुआयना भी किया जहां इस टीम को गुमशुदा बच्चों के माता-पिता के सवालों का सामना करना पड़ा.
ऐसे ही हालात में काम कर रहे शांतिकेश कहते हैं कि बच्चे हमारा ये संघर्ष देखते हैं और पैसा कमाने के लिए बाहर चले जाते हैं. लेकिन इनमें से कुछ लौट नहीं पाते, कुछ की मौत हो जाती है और इनसे संपर्क भी टूट जाता है. शांतिकेश कहते हैं कि हम अपना काम वापस चाहते हैं ताकि हमारे बच्चे हमारे साथ सुरक्षित रह सकें.
एए/वीके (रॉयटर्स)