कार्बन को कैप्चर करने और उसे भंडार करने का सबसे अच्छा तरीका
८ जुलाई २०२३जलवायु परिवर्तन को रोकने का एक प्रमुख उपकरण बेहद महंगा है और दशकों से यह उस तरह से काम नहीं कर रहा है जैसा कि जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने कहा था. यह उपकरण है कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज. इसके जरिए धरती को गर्म करने वाली गैस को रोककर या कैप्चर कर उसे जमीन के भीतर ही जमा कर दिया जाता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीक की उन क्षेत्रों में प्रदूषण कम करने में जरूरत है जहां सफाई की दूसरी तकनीक बहुत पीछे हैं.
जर्मनवॉच नाम के पर्यावरण एनजीओ में औद्योगिक सफाई मामलों के विशेषज्ञ जॉर्ज कोबीला कहते हैं कि कई मामले हैं जहां कार्बन को कैप्चर करना यानी पकड़ना बहुत मायने रखता है लेकिन हमें उन सभी विकल्पों पर जोर देने की जरूरत है जिससे CO2 को पहले स्थान पर आने से रोका जा सके. जॉर्ज कोबीला कहते हैं, "कुछ प्रयोग तो जीवाश्म ईंधन के कारोबारी मॉडल को चलाए रखने में बस अपनी शर्मिंदगी को छिपाने का एक तरीका भर हैं.”
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क्या है कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज?
कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) कार्बन को पकड़ने और उसे धरती के भीतर स्टोर करने का एक तरीका है. यह तकनीक कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) से बिल्कुल अलग है जिसमें कार्बन को वायुमंडल से बाहर निकाला जाता है. हालांकि कुछ तकनीक ओवरलैप भी करती हैं. पर मुख्य अंतर यही है कि सीडीआर वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को कम करता है जिससे धरती ठंडी रहती है, जबकि सीसीएस जीवाश्म ईंधन संयंत्रों और फैक्ट्रियों में गैस को बाहर निकलने से रोकता है.
वैज्ञानिक शोध की नवीनतम समीक्षा में कहा गया है कि उन उत्सर्जनों के लिए दोनों विकल्पों की जरूरत होगी जिन्हें पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल है. यह समीक्षा इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी ने की है. कार्बन डाइऑक्साइड निकालने वाली रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को सीधे कैप्चर करने अथवा बाद में हवा से सोखने के लिए कुछ विकल्प मौजूद हैं.
वैज्ञानिक कूड़ा जलाने वाले संयंत्रों और उन फैक्ट्रियों में सीसीएस की बड़ी भूमिका को देख रहे हैं जहां सीमेंट या फर्टिलाइजर का निर्माण होता है. हालांकि इस बारे में वैज्ञानिकों के विचार बंटे हुए हैं कि क्या इनका उपयोग स्टील और हाइड्रोजन बनाने में किया जा सकता है जिसके लिए कुछ हरित विकल्प भी मौजूद हैं.
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उनका संदेह सबसे ज्यादा बिजली बनाते समय कार्बन कैप्चर करने पर जाता है, क्योंकि इसके लिए पहले से ही काफी सस्ते विकल्प हैं जो बेहतर काम भी करते हैं, मसलन- पवन टरबाइन और सौर पैनल. सैद्धांतिक रूप में, यह गैस संयंत्रों में उस समय एक बैकअप के तौर पर भूमिका निभा सकता है जब धूप ना हो और हवा ना चल रही हो. विशेष तौर पर उन देशों में जो आज भी जीवाश्म ईंधन संयंत्र का निर्माण कर रहे हैं. हालांकि इसे जल्दी से जल्दी सस्ता और अधिक प्रभावी बनाना होगा.
पर्यावरण समूहों के लिए सलाहकार के रूप में काम करने वाली दिग्गज तेल कंपनी शेल के पूर्व इंजीनियर मार्गरेट कुइपर कहती हैं कि जलवायु मॉडल समृद्ध दुनिया के बाहर तेल और गैस की कुछ भूमिका को दिखाते हैं. वो कहती हैं, "फिर भी मैं उन लोगों से सहमत हूं जो कहते हैं कि हम शायद मुख्य रूप से नवीकरणीय ऊर्जा से छुटकारा पा सकते हैं.”
सीसीएस कितनी अच्छी तरह काम करता है?
दशकों से इंजीनियरों ने संक्रेंदित गैस स्ट्रीम्स से कार्बन को कैप्चर किया है. इसे टैंकों में डालना, साफ करना और फिर उद्योगों में इसका इस्तेमाल करते रहे हैं या फिर जमीन के अंदर स्टोर करते रहे हैं. कुछ बायोईथेनॉल संयंत्र जहां गैस स्ट्रीम शुद्ध होती है, वो पहले से ही 95 फीसदी से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन को कैप्चर करते हैं. हालांकि जब गंदी गैस स्ट्रीम्स से कार्बन कैप्चरिंग की बात आती है, जैसे फैक्ट्रियों और बिजली संयंत्रों से, तो सीसीएस परियोजनाएं बार-बार बढ़ा-चढ़ाकर वादे तो करती हैं लेकिन हर वादा पूरा नहीं कर पातीं.
क्लीन एनर्जी रिसर्च फर्म ब्लूमबर्ग एनईएफ में सस्टेनेबल मटीरियल्स की प्रमुख जूलिया एटवुड कहती हैं, "आपको हर चीज से कार्बन डाइऑक्साइड लेने के लिए किसी ना किसी रसायन का इस्तेमाल करना होगा. मैं कहना चाहूंगी कि ऐसी तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया जा चुका है लेकिन इस तकनीक का अभी बड़े पैमाने पर पूरी तरह से व्यवसायीकरण नहीं हो सका है.”
हालांकि कुछेक परीक्षणों में गंदी गैस स्ट्रीम्स से 90 फीसदी से ज्यादा उत्सर्जन को कैप्चर करने में कामयाबी जरूर मिली है लेकिन इनसे संबंधित व्यावसायिक परियोजनाओं में अभी कई दिक्कतें आ रही हैं. कुछ टूट गए हैं या फिर हर समय चलने लायक नहीं हैं. जबकि दूसरी परियोजनाएं कुल उत्सर्जन के महज एक छोटे हिस्से को ही कैप्चर करने के लिए बनी हैं.
फिर भी, विशेषज्ञ सीसीएस की विफलता को तकनीकी समस्या की बजाय आर्थिक समस्या के रूप में ज्यादा देख रहे हैं. उनका कहना है कि कंपनियों को अपने प्रदूषण को कैप्चर करने में ज्यादा फायदा नहीं दिखता है. आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के एक प्रमुख लेखक क्रिस बेटेली कहते हैं, "यह मौजूदा इंजीनियरिंग है लेकिन हमें इस पर पैसा खर्च करना होगा, चीजों का निर्माण करना होगा और तब तक उन्हें तोड़ना होगा जब तक कि वो काम ना करने लगें. यह किया जा सकता है लेकिन यह सस्ता नहीं है.”
सीसीएस इतना विवादास्पद क्यों है?
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऊर्जा कंपनियां एक ओर तो ज्यादा कार्बन कैप्चर करने में विफल रही हैं वहीं दूसरी ओर तेल निकालने और जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में बने कानूनों के विरोध में एकजुट होने में उत्साह दिखा रही हैं. उन्होंने नीति निर्धारकों से कहा है कि वे कमजोर तकनीकों पर भरोसा करने की बजाय ऊर्जा मांग में कटौती जैसे सामाजिक बदलावों के बारे में सोचें तो कहीं अच्छे परिणाम आ सकते हैं.
एंड क्लाइमेट साइलेंस एक कैंपेन ग्रुप है जो पत्रकारों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को ज्यादा से ज्यादा और प्राथमिकता के तौर पर कवर करने के लिए प्रेरित करता है. इस ग्रुप की फाउंडर जेनेवी गुंटेर कहती हैं कि खतरा सिर्फ यह नहीं है कि तकनीक उस तरह से काम नहीं कर रही है जैसी कि प्रचारित की गई है.
अपने व्यावसायिक मॉडल की सार्वजनिक स्वीकृति का जिक्र करते हुए वो कहती हैं कि सीसीएस उन कंपनियों की नीतिनिर्धारकों तक पहुंच बनाने और ‘संचालन के लिए सोशल लाइसेंस' में भी मदद करती है जो जीवाश्म ईंधन जलाने के खिलाफ लड़ रहे हैं. वो कहती हैं, "वे जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए कार्बन कैप्चर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. वे तो इसका इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा निष्कर्षण बढ़ाने के लिए कर रहे हैं.”
इसका एक बड़ा हिस्सा वह है जिसे जीवाश्म ईंधन तेल कंपनियां ज्यादा तेल प्राप्त करना (एनहैन्स्ड ऑयल रिकवरी) कहती हैं यानी कार्बन डाइऑक्साइड को जमीन के नीचे पंप करना और सूखे कुंओं से ज्यादा से ज्यादा तेल निकालना. ऐतिहासिक तौर पर देखें तो कैप्चर की गई कार्बन का ज्यादातर हिस्सा इसी काम में इस्तेमाल हुआ है.
वैज्ञानिकों ने यह सवाल भी उठाया है कि यह उद्योग अपनी प्रतिबद्धताओं को लेकर कितना गंभीर है. तकनीक को दशकों तक बढ़ाने के बाद भी इस वक्त सिर्फ 30 सीसीएस सुविधाएं हैं जो काम कर रही हैं. साथ ही, 11 का निर्माण कार्य अभी चल रहा है और 150 की योजना बन रही है. 2020 के एक शोध के मुताबिक, 2020 तक 149 सीसीएस परियोजनाओं को कार्यशील बनाने की योजना थी लेकिन सौ से ज्यादा को या तो रद्द कर दिया गया है या फिर अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया है.
बेटेली कहते हैं, "यह बेहद खराब अभिनय था. एक बहुत ईमानदार, कम पैसों में किए गए प्रयास के साथ ऊपर से ग्रीनवॉशिंग भी किया गया.”
सीसीएस कैसे बेहतर काम कर सकता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि कार्बन को कैप्चर करने की रफ्तार बढ़ रही है. नॉर्वे में जर्मनी की बड़ी औद्योगिक कंपनी हाइडेलबर्ग मैटीरियल्स पहला संयंत्र बना रही है जो सीमेंट से कार्बन कैप्चर करेगी और जमीन में उसे स्टोर करेगी. कंपनी का दावा है कि इसमें कार्बन कैप्चर की दर सौ फीसदी तक संभव है. हालांकि अभी यह सिर्फ आधे उत्सर्जन को ही कैप्चर करने की योजना पर काम कर रही है.
हाइडेलबर्ग मटीरियल्स की ईएसजी प्रमुख करीन कॉम्स्टेड बेब कहती हैं कि यह सिर्फ इसे जल्द से जल्द बनाने और तकनीक के प्रदर्शन के लिए किया गया था. वो कहती हैं, "हमने इसे अपने यहां चारों ओर मौजूद अपशिष्ट गर्मी को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया था. इसलिए इसे पॉवर ग्रिड से जोड़कर अतिरिक्त बिजली पाने की कोशिश नहीं की गई. हम दुनिया भर में करीब दस नई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और उन जगहों पर हमारा लक्ष्य ज्यादा कैप्चर रेट का है.”
तेल और गैस कंपनियां भी सीसीएस उद्योग पर अपनी पकड़ कमजोर करने लगी हैं. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईए) पेरिस स्थित ज्यादातर अमीर देशों के ऊर्जा मंत्रियों के नेतृत्व वाला एक संगठन है. इसके मुताबिक, नई कंपनियां ट्रांसपोर्ट और स्टोरेज जैसी मुख्य समस्याओं की ओर ध्यान केंद्रित कर रही हैं.
आईईए के कार्बन कैप्चर विशेषज्ञ कार्ल ग्रीनफील्ड कहते हैं कि अब कार्बन डाइऑक्साइड को ज्यादा तेल निकालने में इस्तेमाल करने की बजाय उसे स्टोर करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. वो कहते हैं, "जिन परियोजनाओं को हम देख रहे हैं उनमें से ज्यादातर अब भंडारण पर जोर दे रहे हैं.”
जानकारों का कहना है कि तकनीक को सस्ता और बेहतर काम करने लायक बनाने के लिए सरकारों को कार्बन पर टैक्स लगाने की जरूरत है, सीसीएस परियोजनाओं की स्वीकृति को आसान बनाने की जरूरत है और उसके चारों ओर आधारभूत ढांचा तैयार करने में मदद करने की जरूरत है. वे तकनीक को सब्सिडी देने के बारे में ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं.
ब्लूमबर्गएनईएफ की एटवुड कहती हैं, "इस समय जो सबसे जरूरी चीज है वह यह है कि जो लोग इसका इस्तेमाल करें उन्हें प्रोत्साहित किया जाए. ग्रीन स्टील और ग्रीन सीमेंट को सब्सिडी दिए जाने की जरूरत है क्योंकि वास्तव में यही उन लोगों को प्रेरित करेगा जो कि सीसीएस के विकास को गति दे सकते हैं.”