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राजनीतिब्रिटेन

ब्रिटेन के स्कूलों में हिंदू छात्रों के खिलाफ घृणाः रिपोर्ट

विवेक कुमार
२० अप्रैल २०२३

ब्रिटेन में एक संस्था द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि स्कूलों में हिंदू छात्रों के साथ भेदभाव और हेट स्पीच के मामले बढ़ रहे हैं. कई छात्रों और शिक्षकों ने ऐसे भेदभाव की घटनाएं सुनाई हैं.

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ब्रिटेन के स्कूल (प्रतीकात्मक तस्वीर)
ब्रिटेन के स्कूल (प्रतीकात्मक तस्वीर)तस्वीर: Jon Super/AP/picture alliance

एक ताजा अध्ययन के मुताबिक युनाइटेड किंग्डम के स्कूलों में हिंदुओं के प्रति नफरत बड़े पैमाने पर पसरी हुई है और बहुत से बच्चों को घृणास्पद टिप्पणियों से लेकर हिंसा तक का सामना करना पड़ा है. ब्रिटिश संस्था हेनरी जैक्सन सोसायटी द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि बच्चों को हिंदू होने के कारण भेदभाव का साममना करना पड़ा है.

हेनरी जैक्सन सोसायटी के लिए शार्लोट लिटलवुड ने यह अध्ययन किया है जिसमें 988 हिंदू माता-पिताओं, बच्चों और शिसे उनके अनुभवों पर बात की गई है. ‘एंटी हिंदू हेट इन स्कूल्स' नाम की रिपोर्ट कहती है कि 51 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों को स्कूलों में हिंदू होने के कारण नफरती टिप्पणियों का सामना करना पड़ा जबकि सूचना के अधिकार के तहत हासिल जानकारियों के मुताबिक एक फीसदी से भी कम स्कूलों में हिंदू छात्रों के साथ हुई किसी अप्रिय घटना को रिपोर्ट किया गया.

'पाकी और आतंकवादी कहा'

रिपोर्ट में ऐसे अनुभवों के बारे में बताया गया है, जो छात्रों के साथ हुए. मसलन, एक बालक ने बताया कि उसे उसके सहपाठियों ने पाकी और आतंकवादी कहा. ब्रिटेन में अक्सर पाकिस्तान के लोगों को पाकी नामक आपत्तिजनक संबोधन से पुकारा जाता है.

एक अन्य बालक ने कहा कि उसे उसके सहपाठियों ने कहा, "वापस भारत चले जाओ.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि 19 प्रतिशत अभिभावक इस बात से सहमत थे कि स्कूल हिंदू विरोधी घृणा की पहचान में सक्षम हैं जबकि 15 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि स्कूल हिंदू विरोधी घृणा से उचित रूप में निपट रहे हैं. 

इस रिपोर्ट में हिंदू शिक्षकों के अनुभवों पर भी बात की गई है. कई शिक्षकों ने कहा कि उन्हें उनके धर्म के कारण छात्रों और सहकर्मियों से टिप्पणियां सुनने को मिलीं. एक शिक्षक ने बताया कि उनसे कहा गया कि "उनके कपड़ों से मसालों की गंध आ रही है.”

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रिपोर्ट में ऐसे कई तथ्य उजागर किए गए हैं, जो स्कूलों में हिंदू छात्रों और शिक्षकों के प्रति पूर्वाग्रहों के लिए जिम्मेदार हैं. इनमें जागरूकता की कमी, उचित प्रशिक्षण नीतियों की कमी और घृणस्पद टिप्पणियां करने वालों की जवाबदेही तय करने में ढिलाई प्रमुख हैं. 

जरूरी कदम उठाए जाएं

रिपोर्ट लिखने वालीं शार्लोट लिटलवुड कहती हैं कि स्कूलों को इस समस्या से निपटने के लिए फौरन कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा, "स्कूलों में उचित नीतियां बनाए जाने की जरूरत है. कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. विविधता और समेकन बढ़ाया जाना चाहिए और हेट स्पीच के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.”

ब्रिटेन में रहने वाले हिंदू समाज के बीच इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया भी देखने को मिल रही है. हिंदू काउंसिल यूके ने इस रिपोर्ट में उजागर तथ्यों के प्रति चिंता जताई है. एक बयान जारी कर हिंदू काउंसिल यूके ने कहा, "स्कूलों में ऐसी हिंदू विरोधी घटनाएं चिंता की बात हैं. हम सरकार और स्कूलों से आग्रह करते हैं तुरंत कुछ उपाय करें ताकि हिंदू छात्रों और शिक्षकों को हर तरह के भेदभाव से सुरक्षित रखा जाए.”

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ब्रिटेन की नेशनल एसोसिएशन ऑफ हेड टीचर्स (एनएएचटी) ने इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है. स्थानीय मीडिया को दिए एक बयान में एनएएचटी ने कहा, "हमारे स्कूलों में किसी भी तरह के भेदभाव या हेट स्पीच के लिए कोई जगह नहीं है. हम इन आरोपों की गंभीरता को समझते हैं और अपने सदस्यों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि उचित कार्रवाई की जाए.” 

प्रोपेगैंडा तो नहीं?

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जबकि यूके में अन्य धर्म और पहचानों के कारण भेदभाव बढ़ने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. वहां के गृह मंत्रालय ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि देश में पिछले एक साल में घृणा के कारण होने वाले अपराधों में सात फीसदी की वृद्धि हुई है और अधिकतर घटनाओं में धार्मिक संगठनों को निशाना बनाया गया. 

यहां एक बात जानना अहम है कि पिछले कुछ महीनों से विदेशोें में बसे भारतीयों के हिंदू संगठनों ने हिंदू हेट स्पीच को मुद्दा बनाने के लिए मुहिम छेड़ रखी है. अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सक्रिय ये संगठन लगातार हिंदुओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं को मुद्दा बनाकर उसे ‘हिंदू हेट स्पीच' और हिंदूफोबिया का नाम देते हैं.

कई जानकार मानते हैं कि यह भारत में बढ़ती मुस्लिम विरोधी हिंसा के जवाब के रूप में सुनियोजित तरीके से चलाई जा रही मुहिम है. ऑस्ट्रेलिया में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर डॉयचे वेले हिंदी से कहा, "यह एक प्रोपेगैंडा है जिसे भारत में मानवाधिकार उल्लंघनों की घटनाओं से ध्यान हटाने के लिए चलाया जा रहा है. मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि हिंदुओं के साथ भेदभाव उचित है लेकिन हिंदूफोबिया को जिस तरह पेश किया जा रहा है, मेरे ख्याल से इसमें सच्चाई कम है और प्रोपेगैंडा ज्यादा.”