रूस पर कड़े संकल्प की कीमत चुकानी पड़ सकती है जापान को
१२ मार्च २०२२यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने विशाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ देते हुए रूस के केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंध लगा दिया है और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली स्विफ्ट से रूस को हटाने का समर्थन किया है. जानकारों का कहना है कि जापान के ये कदम व्लादिमीर पुतिन के शासन के खिलाफ उठाए गए पहले के कदमों की तुलना में अधिक निर्णायक और प्रभावी हैं.
इससे पहले जापान ने रूस के खिलाफ साल 2014 में प्रतिबंध लगाया था जब रूसी सेनाओं ने यूक्रेन के क्राइमिया क्षेत्र पर जबरन कब्जा कर लिया था. हालांकि उस वक्त रूस के यूक्रेनी जमीन हड़पने के खिलाफ जापान की प्रतिक्रिया कमजोर थी क्योंकि शिंजो आबे की तत्कालीन जापानी सरकार पुतिन के विरोध से बचना चाहती थी. इसकी वजह यह थी कि दोनों देशों के बीच उत्तरी जापान से दूर द्वीपों की एक श्रृंखला के भविष्य पर बातचीत चल रही थी.
इन द्वीपों को रूस में दक्षिणी कुरील और जापान में उत्तरी क्षेत्रों के रूप में जाना जाता है. इन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के आखिरी दिनों में सोवियत संघ की रेड आर्मी ने जब्त कर लिया था.
विवादित क्षेत्र
आज तक, जापान का दावा है कि द्वीप उसका संप्रभु क्षेत्र है और उसे उसके नियंत्रण में वापस कर दिया जाना चाहिए. रूस की पिछली सरकारों के साथ इस बारे में जापान की चर्चा होती रही है लेकिन राष्ट्रपति पुतिन ने हाल के वर्षों में अपने इस संकल्प को और मजबूत कर दिया है कि इन द्वीपों को वो अपने नियंत्रण में ही रखेंगे. विवाद के परिणामस्वरूप, जापान और रूस ने अभी भी युद्ध खत्म करने वाली आधिकारिक घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
हालांकि शिंजो आबे ने 2014 में माना था कि अभी भी एक मौका है कि द्वीपों को सौंप दिया जा सकता है या फिर संयुक्त आर्थिक विकास पर कोई समझौता संभव हो सकता है, लेकिन किशिदा ऐसा कोई भ्रम नहीं पाले हुए हैं.
रविवार को प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, "रूस का यूक्रेन पर आक्रमण ताकत का इस्तेमाल करते हुए यथास्थिति को एकतरफा बदलने का एक प्रयास है और यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नींव को हिला देता है. यह अंतरराष्ट्रीय कानून का स्पष्ट उल्लंघन है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं.”
जापान ने पुतिन समेत कई वरिष्ठ रूसी अधिकारियों की संपत्ति को फ्रीज कर दिया है. रूसी केंद्रीय बैंक से जुड़े लेन-देन को रोक दिया है और स्विफ्ट सिस्टम तक रूसी फर्मों की पहुंच को अवरुद्ध कर दिया है. इसके अलावा, जापान यूक्रेन को 10 करोड़ डॉलर का कर्ज के साथ ही 10 करोड़ डॉलर की आपातकालीन मानवीय सहायता भी प्रदान कर रहा है.
किशिदा और जापान के विदेश मंत्रालय ने विवादित क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं किया है लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री को पता है कि वे जापान की समझ से बाहर हैं.
टोकियो कैंपस ऑफ टेंपल यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हिरोमी मुराकामी कहती हैं, "जापान के पास अंतरराष्ट्रीय समुदाय में शामिल होने और यूक्रेन के आक्रमण पर एक स्टैंड लेने के अलावा बहुत कम विकल्प थे.”
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "सच में, मुझे लगता है कि द्वीपों पर चर्चा कुछ समय के लिए अप्रासंगिक हो गई है. लेकिन जापान इस बार प्रतिबंध लगाने या केवल कमजोर प्रतिबंधों को लागू करने से नहीं बच सका. द्वीप जीवन या मृत्यु का प्रश्न नहीं हैं, वे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, लेकिन यूक्रेन में जो हो रहा है वह स्पष्ट रूप से बहुत गंभीर है.”
जापान को साथ लेकर चलना
किशिदा शिंजो आबे के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश मंत्री रहे हैं और यह भली-भांति जानते हैं कि पुतिन ने शिंजो आबे को यह भरोसा दिया था कि वो इन द्वीपों की संप्रभुता को वापस जीतने वाले नेता हो सकते हैं. मुराकामी कहती हैं कि किशिदा का इस जाल में फंसने का कोई इरादा नहीं है.
अपने सुदूर पड़ोसियों के साथ रूस के संबंधों के जानकार और टेम्पल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सहायक प्रोफेसर जेम्स ब्राउन कहते हैं कि जापान के नेता जनता की उम्मीदों को बनाए रखने के लिए उत्तरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कार्रवाइयां कर रहे हैं. लेकिन द्वीपों की वापसी की कोई भी उम्मीद अब स्पष्ट रूप से दूर हो गई है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "पुतिन ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक पड़ोसी देश पर आक्रमण किया है कि यह एक यूरोपीय अर्थव्यवस्था या नाटो का सदस्य नहीं बनता है. इसलिए यह सोचना अकल्पनीय लगता है कि वह इन द्वीपों को जापान में स्थानांतरित करने की अनुमति देंगे वो भी उसे जो कि अमेरिका का एक सुरक्षा सहयोगी भी है. इस बारे में किसी भी संभावित सुझाव का कोई आधार नहीं दिखता है.”
जापान के लिए सबसे ज्यादा तात्कालिक चिंता उसकी ऊर्जा सुरक्षा होगी. हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जापान के कच्चे तेल का केवल 4 फीसदी और इसके तरल प्राकृतिक गैस के 9 फीसदी की आपूर्ति रूस की ओर से की जाती है.
ब्राउन कहते हैं कि जापान घरेलू ऊर्जा आपूर्ति की कमी और अन्य देशों पर निर्भरता के बारे में ‘अत्यंत संवेदनशील' है, क्योंकि 1970 के दशक में वह इसका दंश झेल चुका है.
जापान की तेल परियोजनाएं
फिर भी, जापान के सखालिन ऑयल एंड गैस डेवलपमेंट (SODECO) के पास सखालिन-1 तेल परियोजना में 30 फीसदी हिस्सेदारी है और मित्सुई और मित्सुबिशी सहित जापानी व्यापारिक फर्मों के पास सखालिन-2 में शेयर हैं. जापान पर कई अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा फर्मों, खासतौर पर शेल और एक्सॉन मोबिल के नक्शेकदम पर चलने का दबाव बढ़ने की संभावना है, जिन्होंने घोषणा की है कि वे रूस में परिचालन से हट रहे हैं.
ब्राउन कहते हैं, "टोक्यो में ऊर्जा सुरक्षा बहुत संवेदनशील है लेकिन जैसा कि ये अन्य कंपनियां रूस से बाहर निकल रही हैं, मुझे लगता है कि जापान पर भी सखालिन-1 और सखालिन-2 परियोजनाओं के साथ ऐसा करने का भारी दबाव होगा.”
सखालिन से उस निवेश को वापस लेना, जो सीधे विवादित द्वीपों के उत्तर में है, यह साफ करता है कि जापानी सरकार का रूस से संबंध अच्छा नहीं है और जापान का यह फैसला निश्चित तौर पर द्वीपों के भविष्य के सवाल पर प्रतिरोध को और सख्त कर देगा.