युद्ध से दूर बर्लिन के स्कूल में थोड़ी पढ़ाई, थोड़ी मस्ती करते यूक्रेनी बच्चे
यूक्रेन युद्ध के कारण लाखों लोगों ने देश छोड़कर यूरोपीय देशों में पनाह ली है. बर्लिन में भी हजारों की संख्या में लोग पहुंचे हैं. उनके बच्चे अब स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. देखिए, नए स्कूल में बच्चों की नई जिंदगी.
शरणार्थियों के लिए कक्षाएं
यूक्रेन से जर्मनी आने वाले शरणार्थियों के बच्चों के लिए राजधानी बर्लिन में एक खास योजना के तहत कक्षाएं शुरू की गईं हैं. बच्चे क्लास में आकर खुश नजर आ रहे हैं.
तनाव से दूर
कैमिला नाम की इस लड़की के परिवार ने भी बर्लिन में शरण ली है. कैमिला एक नए देश में आकर स्कूली जीवन में वापसी कर खुश है. क्लास में गणित की पढ़ाई करती कैमिला.
मिल गए नए दोस्त
क्लास में कैमिला को एक नई दोस्त मिल गई है. कैमिला की दोस्त का नाम सोफिया है. वह भी युद्ध के दौरान अपने परिवार के साथ बर्लिन चली आई थी. कैमिला और सोफिया अब साथ ही पढ़ना पसंद करते हैं.
जर्मन स्कूलों के लिए तैयारी
शरणार्थी बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाने का एक साधन पढ़ाई भी है. बच्चे नए स्कूल में नए दोस्त बना रहे हैं और जर्मनी के स्कूलों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
मातृभाषा में शिक्षा
कई जर्मन वॉलंटियर्स यूक्रेन के शरणार्थियों के साथ खड़े होने के लिए आगे आए हैं. कई निजी संगठनों ने इस संबंध में पहल की है. 'आर्शे नोवा' नाम के संगठन ने यूक्रेनी बच्चों के लिए उनकी मातृभाषा में पढ़ाई का इंतजाम किया है, ताकि उनके लिए पढ़ाई करना आसान हो सके.
शरणार्थी बच्चों की नई जिंदगी
ये बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के बाद जर्मनी के रेगुलर स्कूलों में जाने के लिए तैयार हो जाएंगे और इस तरह से वे आसानी से नई संस्कृति को अपना पाएंगे.
कम हुआ तनाव
बच्चों को पढ़ाने वाली एक टीचर ने बताया कि बच्चे अपने ही देश के अन्य बच्चों से मिलकर खुश हैं और इसका उन पर सकारात्मक असर हुआ है.
जर्मन भाषा भी
बच्चों को यूक्रेनी भाषा में पढ़ाने के साथ-साथ जर्मन भाषा भी सिखाई जाएगी. कुछ वॉलंटियर्स ने इन बच्चों की पढ़ाई के लिए धन इकट्ठा किया और फिर स्कूल की शुरूआत हो गई. इसका प्रचार टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप के जरिए भी किया गया.
पढ़ाई के साथ एक्टिविटी भी
स्कूल में बच्चे हर दिन तीन घंटे बिताते हैं. इस दौरान वे पेंटिंग और हैंडीक्राफ्ट भी करते हैं.
टीचर भी यूक्रेनी
बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर भी यूक्रेन से हैं और उन्हें दान के तौर 500 यूरो हर महीने दिया जाएगा, जब तक कि उनको जर्मनी में काम करने का परमिट ना मिल जाए. इस स्कूल में पढ़ाने वाली दो टीचर भी रूसी हमले के बाद देश से निकलकर जर्मनी आ गई थीं.
इस पहल के पीछे कौन
36 साल की सेव्लिगेन खुद बर्लिन में शिक्षिका हैं और उनकी 31 साल की दोस्त कार्लित्सकी ने रिफ्यूजी क्लास शुरू करने के बारे में सोचा और इसे अंजाम तक पहुंचाया.