1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
राजनीतिब्रिटेन

ब्रिटेन में भारतीय मूल का पहला पीएम बनने का सपना बरकरार

स्वाति बक्शी
२१ जुलाई २०२२

ऋषि सुनक की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उन्हें ब्रिटेन का पहला भारतवंशी प्रधानमंत्री बनने के बहुत करीब ले आई हैं. नतीजा आने में सात हफ्तों का इंतजार अब भी बाकी है लेकिन अगर ऐसा हुआ तो कई मायनों में इतिहास बनेगा.

https://p.dw.com/p/4EQsM
ऋषि सुनक भारतीय मूल के ब्रिटिश हैं
ऋषि सुनक भारतीय मूल के ब्रिटिश हैंतस्वीर: PA Media/dpa/picture alliance

ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री के चुनाव की प्रक्रिया निर्णायक चरण में पहुंच चुकी है. भारतीय मूल के ऋषि सुनक इस दौड़ के अंतिम दो उम्मीदवारों में हैं जिनकी किस्मत का फैसला कंजर्वेटिव पार्टी के एक लाख साठ हजार सदस्य करेंगे. पांचवें और आखिरी दौर में सुनक के अलावा विदेश मंत्री लिज ट्रस और वाणिज्य मंत्री पेनी मोरडॉन्ट मुकाबले में थीं. अंतिम दौर में ऋषि सुनक ने एक सौ सैंतीस वोट हासिल किए जबकि ट्रुस को एक सौ तेरह वोट मिले और मोरडॉन्ट सबसे कम एक सौ पांच वोट के साथ मुकाबले से बाहर हो गईं. अब पार्टी सदस्य पूरे देश में पोस्टल बैलेट के जरिए चुनाव करेंगे जिससे विजेता का चयन होगा जिसकी घोषणा पांच सितंबर को होगी. ब्रिटेन के राजनैतिक इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई ब्रिटिश-भारतीय नेता प्रधानमंत्री बनने के इतने करीब पहुंचा है हालांकि इस वक्त विश्लेषक भी नतीजे पर कयास लगाने से परहेज कर रहे हैं. सुनक चुनाव के पहले दौर से ही बढ़त बनाए हुए थे जो अंत तक कायम रही हालांकि बाहर होते गए उम्मीदवारों के समर्थक उनके साथ चले गए हों ऐसा नहीं हुआ.

प्रधानमंत्री पद की रेस तब शुरू हुई जब बॉरिस जॉनसन सरकार की नींव उनके कैबिनेट मंत्रियों के इस्तीफों ने हिला दी और उन्हें पद छोड़ने का ऐलान करना पड़ा. जॉनसन सरकार पिछले कुछ वक्त से लगातार विवादों से जूझ रही है जिसमें देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान डाउनिंग स्ट्रीट स्थित जॉनसन के दफ्तर में सरकारी अधिकारियों की पार्टी करना और अभद्र यौन-व्यवहार के आरोपी सांसद क्रिस पिंचर को उच्च संसदीय पद देना सबसे बड़े कारक रहे. इस सिलसिले का अंत ये हुआ कि पूर्व चांसलर ऋषि सुनक और स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद समेत कई कैबिनेट मंत्रियों और कनिष्ठ अधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. जॉनसन के त्यागपत्र की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर ऋषि सुनक ने ‘रेडी फॉर ऋषि' कैंपेन शुरू कर पद के लिए दावेदारी का ऐलान कर दिया.

क्या रच पाएंगे इतिहास?

सुनक को राजनीति में उतरे ज्यादा वक्त नहीं हुआ है लेकिन वे कम वक्त में ही एक जाना-पहचाना चेहरा बन कर उभरे हैं. जिस मजबूती के साथ उन्होंने शुरूआत से दावेदारी पेश की और सांसदों के वोटों के जरिए लड़ाई के अंतिम दौर तक पहुंचे उससे साफ है कि सांसदों में उनकी पैठ है लेकिन इस बात पर लगातार संशय बना हुआ है कि वो पार्टी के आम सदस्यों का वोट हासिल करके पद तक पहुंच जाएंगे. एक ब्रिटिश इंटरनेट मार्केट रिसर्च और डेटा कंपनी-यूगव के ताजा पोल इस बात के संकेत दे रहे हैं कि कंजर्वेटिव सदस्य सुनक के खिलाफ उतरने वाले किसी भी अन्य उम्मीदवार को वोट देंगे.

लिज ट्रस हैं ऋषि सुनक की मुकाबिल
लिज ट्रस हैं ऋषि सुनक की मुकाबिलतस्वीर: dpa/picture alliance

पार्टी सांसदों में भले ही सुनक की पहुंच हो लेकिन आम सदस्यों का साथ पाने की डगर मुश्किल लगती है. हालांकि यह तकरीबन सात सौ पार्टी सदस्यों पर किया गया त्वरित सर्वे हैं और जानकार मानते हैं कि इस बारे में अटकलें लगाना आसान नहीं है. ब्रिटेन की रॉयल हॉलॉवे यूनिवर्सिटी में ब्रिटिश राजनीति के विशेषज्ञ प्रोफेसर निकलस एलेन का मानना है कि "ऋषि सुनक के साथ जो सबसे बड़ी बात रही है वो ये कि वो सही वक्त पर सही जगह पर थे. ये देखना होगा कि वो किन बातों की नुमाइंदगी करते हैं और उनसे क्या मिलने की उम्मीद है. सबसे बड़े पहलू ये हैं कि वो ब्रेक्सिट समर्थक रहे हैं और शायद एशियाई होने का कुछ फायदा भी इसमें जुड़े. उनकी पढ़ाई और वित्त में प्रोफेशनल पृष्ठभूमि के साथ चांसलर के तौर पर महामारी में पद की जिम्मेदारियां निभाना, लाखों पाउंड का राहत पैकेज, व्यवसायों की मदद के लिए उठाए गए कदम- ये सब उनकी सकारात्मक छवि के आधार हैं. उनके चुनाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.”

सुनक का राजनीतिक सफर 

ये जानना दिलचस्प है कि ऋषि सुनक की राजनीतिक उड़ान बेहद तुरत-फुरत की रही है. वे 2015 में कंजर्वेटिव पार्टी की परंपरागत सीट रिचमंड से चुनाव लड़ कर संसद पहुंचे. इस सीट पर कंजर्वेटिव विलियम हेग 1989 से 2015 में रिटायर होने तक काबिज रहे. 2018 से 2019 के बीच सुनक टेरीसा मे की सरकार में स्थानीय शासन के लिए संसदीय अवर-सचिव बने और फरवरी 2020 में ब्रिटिश इतिहास के सबसे युवा चांसलर का पद संभाला जहां से उन्होंने इसी महीने इस्तीफा दिया और बॉरिस जॉनसन के उत्तराधिकारी बनने का दावा पेश किया.

राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में वर्तमान कंजर्वेटिव सरकार में एशियाई चेहरों की चर्चा होती रही है. तीन सबसे महत्वूपूर्ण पदों पर गृह मंत्री प्रीति पटेल, पूर्व चांसलर और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद और पूर्व चांसलर ऋषि सुनक की मौजूदगी सकारात्मक संकेत माना जाता है. गौर करने लायक बात ये भी है कि भारतीय मूल के लोगों की राजनीतिक भागीदारी लगातार बढ़ रही है. साल 2019 में चुनकर आए संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस में भारतीय मूल के पंद्रह सांसद हैं जिनमें से चार पहली बार सदन पहुंचे. अगर ऋषि सुनक पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री पद की इस रेस में विजेता साबित होते हैं तो वो ब्रिटिश इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेंगे.

सुनक की मौजूदगी इस बात का भी प्रतीक है कि ऐतिहासिक तौर पर लेबर पार्टी का समर्थक रहे भारतीय समुदाय को कंजर्वेटिव पार्टी अपनी तरफ खींचने में सफल हो रही है. इस मसले पर हुए शोध बताते हैं कि लेबर पार्टी की अंदरूनी दिक्कतें तो इसकी वजह हैं ही लेकिन भारतीय समुदाय की संरचना भी इसकी वजह है. यह देश के सबसे युवा, नौकरीशुदा और सपनीले लोगों का वर्ग है जिसे लेबर पार्टी की नीतियों का समाजवादी झुकाव अब रिझा नहीं पाता. ऋषि सुनक इस यथार्थ का मूर्त रूप दिखाई देते हैं.  

भारतीय जड़ें

‘डिशी ऋषि' कहलाने वाले बयालीस साल के सुनक इंग्लैंड में उत्तरी यॉर्कशर की रिचमंड (यॉर्क्स) सीट से सांसद हैं. वे साउथैंप्टन शहर में जन्मे लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उत्तर-भारतीय है. उनके दादा-दादी का जन्म पंजाब में हुआ था जो भारत छोड़ कर पहले पूर्वी-अफ्रीका में बसे और 1960 के दशक में ब्रिटेन आ गए. उनके पिता यशवीर सुनक पेशे से डॉक्टर और मां ऊषा सुनक फार्मासिस्ट हैं. ऋषि सुनक की स्कूली पढ़ाई ब्रिटेन के बेहद मंहगे बोर्डिंग स्कूल विन्चेस्टर कॉलेज से हुई है. जिसके बाद वो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से राजनीति, दर्शन और अर्थशास्त्र में स्नातक और अमरीका की स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्रियां लेकर फाइनैंस की दुनिया में करियर बनाने उतरे. कुछ साल नौकरी करने के बाद उन्होंने साझेदारी में अपनी कंपनी खड़ी की और इसी दौर में वो कंजर्वेटिव पार्टी के साथ जुड़ गए.

ब्रिटेन में पहली बार जारी की गई रेड वॉर्निंग

ऋषि सुनक की शादी भारतीय उद्यमी और सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति के साथ हुई है. सुनक अपने पुराने साक्षात्कारों में अपनी भारतीय जड़ों का जिक्र बार-बार करते हैं कि उनका संबंध ऐसे भारतीय परिवार सेहै जिसे एक नई जिंदगी की तलाश में अपना देश छोड़ना पड़ा.

विवादों से वास्ता

यूं तो सुनक ने राजनीति में इतना कम वक्त गुजारा है कि उन्हें दुश्मन पैदा करने का भी वक्त नहीं मिला होगा लेकिन विवाद उनके साथ जुड़े रहे हैं. लॉकडाउन में डाउनिंग स्ट्रीट में हुई आधिकारिक पार्टियों के मामले में उन पर फाइन लग चुका है. मौतों और तालाबंदी के वक्त में नेताओं का गैर-जिम्मेदारी भरा ये बर्ताव लोगों के जेहन में कड़वाहट छोड़ गया है. 

इसी साल अप्रैल में ही इस बात पर विवाद उठा था कि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति ने ब्रिटेन में नॉन-डॉमिसाइल होने का फ़ायदा उठाकर, अपनी कुल आय पर वाजिब टैक्स नहीं चुकाया है. अक्षता की इंफोसिस में हिस्सेदारी है जिससे उन्हें सालाना करोड़ों रुपयों की आमदनी होती है. अनुमानों के मुताबिक ये टैक्स राशि कई करोड़ पाउंड की हो सकती है. इस मसले पर सुनक को घेरने वालों में लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक सदस्य ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी में बॉरिस जॉनसन के वफादार नेता भी रहे हैं. इसके अलावा सुनक के पास अमरीकी ग्रीन कार्ड का होना एक और विवादास्पद मसला है. ग्रीन कार्डधारक अमरीका में टैक्सदाता होता है और इसका सीधा संबंध वहां बसने की संभावनाओं से है. 

विश्लेषकों ने अपने लेखों में इस बात का जिक्र किया है कि अगर सुनक प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनका बेहद धनी होना लंबी अवधि में उनके लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है. उन पर हमेशा ये सवाल उठता रहेगा कि वो आम वर्ग से नहीं आते और जनता की हकीकत से उनका कोई सरोकार नहीं है. हालांकि ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन हाउस ऑफ लॉर्डस के सदस्य और सुनक को करीब से जानने वाले लॉर्ड रमिंदर सिंह रंगर कहते हैं कि "ऋषि एक बेहद कर्मठ और ईमानदार इंसान हैं. वो जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है. कोविड के दौर में उनका काम उनके व्यक्तित्व की झलक देता है. अगर इस तरह के विवादों को आधार बनाकर कोई फैसला लिया जाता है तो यह कंजर्वेटिव पार्टी के लिए एक बहुत बड़ा मौका गंवाने वाली बात होगी.”

चुनौतियां और वायदे

अगर धन-संपदा और अवसर ऋषि सुनक की अब तक की कहानी का हिस्सा हैं तो उनके हिस्से चुनौतियां भी कम नहीं रही. पार्टी के भीतर बॉरिस जॉनसन का वफादार गुट तो उनके लिए लगातार एक चुनौती बना हुआ है. एक युवा चांसलर के तौर पर वो कोविड महामारी के सबसे बुरे दौर, यूक्रेन युद्ध और अब भयंकर मुद्रास्फीति के कंटीले रास्ते से गुजर कर गए हैं. पार्टी नेता और प्रधानमंत्री पद की इस दौड़ के लिए हुई टेलीविजन बहसों में उन्हें लगातार ऊंचे-टैक्स वाला चांसलर और देश को सबसे ऊंची मुद्रास्फीति वाले काल में धकेलने के लिए जिम्मेदार कहा गया. अपने सभी प्रतियोगी उम्मीदवारों से उलट ऋषि सुनक ने अपनी आर्थिक नीतियों पर बात करते हुए बार-बार कहा है कि वो मुद्रास्फीति काबू में करने से पहले टैक्स कटौती के हक में नहीं हैं जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी लिज ट्रस टैक्स-कटौती का आश्वासन देती रही हैं. टैक्स का मसला इस चुनावी टक्कर में नतीजे को प्रभावित करने वाला कारक बन सकता है खासकर जब सुनक ये साफ कर चुके हैं कि वे बिजनेस पर लगने वाले टैक्स में आमूल-चूल बदलाव के हक में हैं. वे अपने चांसलर काल के दौरान राष्ट्रीय इंश्योरेंस और कॉरपोरेशन टैक्स में इजाफा कर चुके हैं.

कोविड के दौरान साल 2020 में सुनक ने 350 बिलियन पाउंड का पैकेज घोषित किया तो उनकी लोकप्रियता चरम पर थी लेकिन अब ये संकट का दूसरा दौर है. ऐतिहासिक मुद्रास्फीति दर (9.1%) के मद्देनजर लोगों के जीवन-यापन और खर्च करने की क्षमता पर पड़े गहरे असर का निदान नए प्रधानमंत्री की चुनौतियों में शुमार है. अपने दावेदारी को हवा देने के लिए ब्रेक्सिट-समर्थकों का साथ हासिल करने की मंशा से सुनक ने ये भी कहा है कि वो ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन के कानूनों से तुरंत निजात दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. दावों और वायदों का ये दौर अभी चंद हफ्ते और जारी रहेगा. जनता को इन दो नेताओं की आगामी नीतियों पर और बहुत कुछ सुनने को मिलेगा. नतीजा चाहे जो भी हो लेकिन ऋषि सुनक अपने छोटे कार्यकाल, बड़ी चुनौतियों और बड़े सपनों के साथ शायद कुछ और युवा भारतीयों को ब्रिटेन की राजनीति में कदम रखने का हौसला तो जरूर दे रहे हैं.