पहली बार यूएन में म्यांमार के खिलाफ प्रस्ताव, भारत रहा बाहर
२२ दिसम्बर २०२२यूएन में पहली बार म्यामांर के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित हुआ है जिसमें आंग सान सू ची समेत हिरासत में लिए गए सभी सत्ता विरोधियों को रिहा करने और लोकतांत्रिक संस्थानों को फिर से स्थापित करने का आग्रह किया गया है.
15 सदस्य देशों वाली सुरक्षा परिषद में 12 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि तीन देशों, भारत, चीन और रूस ने मतदान नहीं किया. इस प्रस्ताव में सभी पक्षों को बातचीत और समझौते का रास्ता अपनाने और "मानवाधिकारों, मूलभूत आजादियों और कानून के राज” के सम्मान का आग्रह किया गया है.
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ब्रिटेन की राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने इस प्रस्ताव को पेश किया था. 1948 में यूएन का सदस्य बनने के बाद से यूएन में म्यांमार के बारे में यह पहला प्रस्ताव था. 1 फरवरी 2021 को म्यांमार की सैन्य जुंटा ने लोकतांत्रिक चुनावों के नतीजों को पलटते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया था. उसके बाद से देश लगातार हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में फंसा हुआ है वुडवर्ड ने कहा कि इसके कारण "क्षेत्र की स्थिरता के लिए नकारात्मक परिणाम” हुए हैं.
और प्रयासों की जरूरत
वुडवर्ड ने कहा, "आज हमने सेना को एक ठोस संदेश भेजा है कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए हम चाहते हैं यह प्रस्ताव को पूर्ण रूप में लागू किया जाए. हम म्यांमार के लोगों के साथ खड़े हैं. वक्त आ गया है कि जुंटा देश लोगों को ही लौट दे.”
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने इस प्रस्ताव को अपनाए जाने का स्वागत किया है. हालांकि उन्होंने कहा कि इस संकट का हल निकालने के लिए परिषद को और प्रयास करने होंगे. उन्होंने कहा, "सुरक्षा परिषद को इस मौके का लाभ उठाना चाहिए और लोकतंत्र की वापसी के लिए अन्य रास्तों को खोजना चाहिए ताकि आसियान के पांच सूत्री सहमति को लागू करने के प्रयासों में मदद की जा सके.”
एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) म्यांमार और क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए पांच सूत्री सहमति पत्र तैयार किया था.
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफान दुजारिक ने इस प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि महासचिव अंटोनियो गुटेरेष ‘म्यांमार में मानवाधिकार उल्लंघन और मानवीय हालात को लेकर अत्याधिक चिंतित हैं.'
म्यांमार पांच दशक से सैन्य राज से जूझ रहा है. इससे देश को अंतरराष्ट्रीय अलगाव और प्रतिबंध झेलने पड़े हैं. 2015 में देश में लोकतांत्रिक चुनाव हुए थे जिसके बाद आंग सान सू ची को सत्ता मिली थी. उसका नतीजा यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने प्रतिबंध हटाया और देश में निवेश भी बढ़ा.
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नवंबर 2020 में चुनाव हुए और सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी को जीत मिली. लेकिन सेना ने इन नतीजों को बिना किसी सबूत के फ्रॉड करार दिया और ठीक उसी दिन सत्ता को दोबारा कब्जा लिया, जिस दिन संसद का सत्र दोबारा शुरू होना था. सू ची को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमे दर्ज कर दिए गए. हालांकि जनता ने इस तख्तापलट का जोरदार विरोध किया और देश में भारी उथल-पुथल मच गई, जिसे कुछ विशेषज्ञों ने तो गृह युद्ध जैसी स्थिति बताया.
हजारों लोगों की मौत
पिछले महीने ही मानवाधिकार संगठन असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स ने कहा था कि तख्तापलट के बाद से 16 हजार लोगों को राजनीतिक आरोपों में हिरासत में लिया गया जिनमें से 13 हजार तो आज भी जेल में हैं. संगठन के मुताबिक फरवरी 2000 में तख्तापलट से अब तक 2,465 लोगों की जान जा चुकी है.
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म्यांमार खुद भी आसियान का सदस्य है. आसियान के सदस्य देश म्यांमार के संकट को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. अप्रैल 2021 में आसियान ने एक योजना तैयार की थी जिस पर म्यांमार के जनरलों ने सहमति भी जताई थी लेकिन उस योजना को लागू करने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए गए हैं.
इस योजना में हिंसा को तुरंत रोकने और सभी पक्षों के भी मध्यस्था के जरिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही गई थी. साथ ही देश में मानवीय मदद के लिए रास्ता देने की भी बात है. आसियान के विशेष दूत प्राक सोखोन और संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत नोएलीन हेजर दोनों ने ही म्यांमार की यात्रा की लेकिन उन्हें सू ची से मिलने नहीं दिया गया.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एपी)