भारत में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन फिर से महामारी से पहले के स्तर पर
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत दुनिया के सात सबसे बड़े प्रदूषक देशों के उत्सर्जन का स्तर कोविड-19 से पहले के स्तर पर पहुंच गया है. हालांकि भारत का औसत उत्सर्जन वैश्विक उत्सर्जन से काफी नीचे है.
महामारी के स्तर से भी ऊपर
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत दुनिया के सात सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों के उत्सर्जन का स्तर कोविड-19 महामारी के दौरान गिरने के बाद फिर से महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच गया है, बल्कि उस समय के स्तर से भी ऊपर चला गया है.
जी-20 देशों का विनाशकारी उत्सर्जन
रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में चीन, यूरोपीय संघ के 27 देश, भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील, रूस, अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय यातायात का 55 प्रतिशत योगदान रहा. जी-20 देशों का कुल योगदान 75 प्रतिशत है.
भारत वैश्विक औसत से काफी नीचे
2020 में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 6.3 टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर था. अमेरिका का स्तर इससे कहीं ऊंचा है (14 टन), उसके बाद रूस का नंबर है (13 टन), फिर चीन (9.7), ब्राजील और इंडोनेशिया (करीब 7.5 टन) और फिर यूरोपीय संघ (7.2 टन). भारत वैश्विक औसत से काफी नीचे 2.4 टन पर है.
हासिल नहीं हो पाएंगे लक्ष्य
रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से अधिकांश देशों में 2021 में 2019 के मुकाबले उत्सर्जन में फिर से बढ़त देखी गई. जी-20 देशों ने हाल ही में अपने नए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काम शुरू किया है, लेकिन आशंका है कि वो 2030 के लिए किए गए अपने वादे पूरे नहीं कर पाएंगे. 2015 में अंगीकार किए गए पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय हुआ था कि 2030 तक ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रोक दिया जाएगा.
और बढ़ सकती है ग्लोबल वॉर्मिंग
यूएनईपी के मुताबिक इस समय लागू नीतियों को अगर और मजबूत नहीं किया गया तो वॉर्मिंग में 2.8 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो सकती है. पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना है तो अगले आठ सालों में ग्रीन हाउस गैसों में अभूतपूर्व कटौती करनी होगी.
नए लक्ष्य बनाने होंगे
अनुमान है कि मौजूदा नीतियों की बदौलत 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में पांच से 10 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है. ग्लोबल वार्मिंग को दो या 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए उत्सर्जन में 30 से 45 प्रतिशत तक की कमी करनी होगी. (एएफपी/एपी)