ट्रेड डील में अमेरिका से किए वादे पूरे करने में पीछे चीन
९ फ़रवरी २०२२दो साल पहले डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते अमेरिका और चीन के बीच एक ट्रेड डील हुई थी. इस समझौते के तहत चीन ने 'फेज 1' के तहत दो साल में अमेरिका से जितना सामान खरीदने का वादा किया था, दिसंबर में उसमें भारी कमी आई है.
अमेरिकी सेंसस ब्यूरो ने बताया है कि 2021 में अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 45 अरब डॉलर बढ़ गया. व्यापार घाटे में 14.5 फीसदी की इस बढ़ोतरी के साथ अब कुल घाटा 355.3 अरब डॉलर का हो गया है. यह साल 2018 में दर्ज किए गए रिकॉर्ड 418.2 अरब डॉलर के व्यापार घाटे के बाद से सबसे ज्यादा है.
साल 2020 में दोनों के बीच व्यापार में अंतर 310.3 अरब डॉलर का था. यह बीते 10 बरसों में सबसे ज्यादा अंतर था, लेकिन इसमें कोरोना वायरस महामारी भी एक बड़ी वजह थी. पूरी दुनिया की बात करें, तो 2021 में अमेरिका का व्यापार घाटा पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी बढ़कर कुल 859.1 अरब डॉलर हो गया है.
क्या होता है व्यापार घाटा
व्यापार घाटा यानी किसी देश के आयात और निर्यात के बीच होने वाला अंतर. जैसे अगर कोई देश अपना 80 रुपए का सामान बाकी देशों को बेचता यानी निर्यात करता है और बाकी दुनिया से 100 रुपये का सामान खरीदता यानी आयात करता है, तो उसका व्यापार घाटा 20 रुपये होगा. वजह, उसे अपने सामान के बदले दुनिया से 80 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन बाकी दुनिया के सामान के बदले वह 100 रुपये चुका रहा है.
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अमेरिका का दुनिया को निर्यात 18 फीसदी बढ़कर 25 खरब डॉलर से भी ज्यादा हो गया है, लेकिन आयात इससे भी ज्यादा 21 फीसदी बढ़कर करीब 34 खरब डॉलर हो गया है. इसकी एक वजह कोरोना महामारी भी बताई जा रही है, क्योंकि एक तरफ घर में बैठे लोगों का बाहर खाने, फिल्में देखने और कॉन्सर्ट जाने का खर्च हवा हो गया, लेकिन फोन, घर का सामान और फर्नीचर खरीदने पर खर्च बढ़ गया.
चीन नहीं खरीद रहा अतिरिक्त सामान
अमेरिका का डाटा बताता है कि चीन को अमेरिका से अतिरिक्त 200 अरब डॉलर की कीमत का खेती से जुड़ा और उत्पादन किया हुआ सामान, ऊर्जा और सेवाएं खरीदनी थीं. वादे के तहत चीन को साल 2017 के स्तर से ज्यादा सामान खरीदना था, लेकिन इसे पूरा करने में वह कहीं पीछे रहा.
साल 2017 ही वह साल है, जब दुनिया की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर शुरू हुआ था. इसके बाद दोनों देशों के बीच हुआ यह समझौता ही ट्रंप की फेज 1 ट्रेड डील का केंद्र था. ट्रेड वॉर के दौरान दोनों देशों के बीच खरीदी-बेची जाने वाली कई चीजों पर टैरिफ बढ़ा दिए गए थे और कई चीजों पर टैरिफ बढ़ाने की धमकियां दी जा रही थीं. फिर फरवरी 2020 में यह समझौता लागू होने के बाद ही यह खींचतान थमी थी.
क्या कहता है विश्लेषण
पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्री चैड बॉन ने पूरे 2021 के सेंसस ट्रेड डाटा का विश्लेषण किया है. उनकी रिपोर्ट बताती है कि चीन ने दो साल में जितना सामान और सेवाएं खरीदने का लक्ष्य रखा था, उसका सिर्फ 57 फीसदी ही पूरा किया है.
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उन्होंने कहा कि चीन ने समझौते के फेज 1 के लक्ष्य के तहत अमेरिका से जितना सामान, ऊर्जा और सेवाएं खरीदी हैं, वह 2017 जितना भी नहीं है. 2017 में चीन अमेरिका से बहुत कम सामान आयात कर रहा था, जिसके बाद अमेरिका ने 2018 और 2019 में उस पर कई टैरिफ लाद दिए थे.
'वादे से पीछे रहा चीन'
बॉन कहते हैं, "इसी बात को दूसरे शब्दों में कहूं, तो चीन ने डॉनल्ड ट्रंप के साथ हुए समझौते में जो 200 अरब डॉलर का अतिरिक्त सामान खरीदने का वादा किया था, उसके तहत चीन ने कुछ भी नहीं खरीदा है." उनका विश्लेषण बताता है कि चीन खेती से जुड़ी खरीद में 2017 के स्तर से ऊपर तो गया, लेकिन यह दो साल में 73.9 अरब डॉलर की खरीद के लक्ष्य के 83 फीसदी ही करीब पहुंच पाया.
अमेरिका के पास चीन को सेवाओं का निर्यात करने का सुनहरा मौका था, लेकिन महामारी की वजह से चीन का पर्यटन गिरने और अमेरिका में व्यापारिक यात्राएं कम होने से यह मुंह के बल गिरा. चीन के कई छात्रों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी जाना था, लेकिन कोरोना की वजह से तय लक्ष्य के सिर्फ 52 फीसदी बच्चे ही अमेरिका पहुंच पाए.
वीएस/एमजे (रॉयटर्स, एपी)