रूस-यूक्रेन युद्ध से कार्बन प्रदूषण बढ़ने का खतरा
१९ मार्च २०२२रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जब फरवरी महीने के अंत में यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूसी सैनिकों को भेजा, तो उन्होंने उसी ऊर्जा प्रणाली को खत्म कर दिया जो उनके इस अवैध युद्ध को अप्रत्यक्ष तौर पर आर्थिक रूप से मदद कर रही है. रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के स्थानीय इमारतों, अस्पतालों और यहां तक की परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर बमबारी की है. तीन हफ्ते बाद भी दोनों देशों के बीच युद्ध जारी है.
इस युद्ध की वजह से दुनिया की चार सबसे बड़ी जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने रूस से बाहर निकलने का फैसला किया है. इसकी वजह से, इन कंपनियों को करीब 20 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति को छोड़ना पड़ रहा है. जर्मनी रूसी गैस के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है, लेकिन युद्ध की वजह से जर्मनी ने पूरी तरह तैयार पाइपलाइन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है. इस पाइपलाइन से रूसी गैस सीधे जर्मनी तक लाई जानी थी.
अमेरिका ने भी सभी रूसी जीवाश्म ईंधन की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि ब्रिटेन ने कहा कि वह रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा. यूरोपीय संघ ने इस साल रूसी गैस आयात को 80 फीसदी तक कम करने की योजना की घोषणा की. साथ ही, यह भी कहा कि वह कोयला और तेल सहित गैस की खरीद को 2027 तक चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह बंद कर देगा.
जलवायु थिंक टैंक ई3जी में एनर्जी ट्रांजिशन की भू-राजनीति विशेषज्ञ मारिया पास्तुखोवा बर्लिन में रहती हैं. उन्होंने कहा, "फिलहाल, ऊर्जा बाजार कीमत और आपूर्ति के अपने सबसे गहरे संकटों में से एक का सामना कर रहा है. बीते कुछ दशक का यह सबसे बड़ा संकट है. हमें नहीं पता कि यह संकट कब तक जारी रहेगा.”
रूसी गैस पर निर्भरता खत्म करने के लिए, यूरोप ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के अपने प्रयास को तेज कर दिया है. वहीं, दूसरी ओर वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को रोकने के लिए इस ईंधन के इस्तेमाल को कम करना होगा और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा.
संयुक्त राष्ट्र की एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. इसमें यह चेतावनी दी गई है कि जलवायु के अनुकूल किसी तरह की कार्रवाई में देरी "सभी के लिए रहने लायक और भविष्य को सुरक्षित बनाने के अवसर को तेजी से खत्म कर देगी.”
रूसी आक्रमण के दो सप्ताह के भीतर, यूरोपीय संघ ने पहले से कहीं अधिक तेजी से विंड टरबाइन, सौर पैनल और हीट पंप स्थापित करने की योजना की घोषणा की. जर्मनी ने 2035 तक अपनी बिजली आपूर्ति को डिकार्बोनाइज करने के लिए 200 अरब यूरो खर्च करने की घोषणा की है. इसके साथ ही, जर्मनी ने लिक्विफाइड नेचुरल गैस के आयात के लिए दो टर्मिनल बनाने की भी घोषणा की है, ताकि रूस की जगह अन्य देशों से जीवाश्म ईंधन का आयात किया जा सके.
जर्मनी में गैस की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. साथ ही, यह भी आशंका जताई जा रही है कि पुतिन कभी भी गैस सप्लाई को बंद कर सकते हैं. इससे यह खतरा पैदा हो गया है कि एक बार फिर से कोयले के इस्तेमाल पर वापस लौटना पड़ सकता है, जबकि ईयू के नेताओं ने काफी ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले इस ईंधन के इस्तेमाल को बंद करने का वादा किया था.
आयरलैंड स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क में टिकाऊ ऊर्जा के व्याख्याता हन्ना डेली ने कहा, "यह एक मौका है कि स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेजी से बढ़ा जाए, लेकिन खतरनाक संकेत भी हैं कि नीतियां विपरीत दिशा में काम करेंगी.”
रूसी जीवाश्म ईंधन की जगह दूसरा विकल्प
रूस तेल और जीवाश्म गैस का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है. यूक्रेन पर हमले के बाद से, इसने यूरोपीय संघ को 11 अरब यूरो से अधिक का ईंधन बेचा है. इस ईंधन का इस्तेमाल घरों को गर्म रखने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है. नीति निर्माताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगली सर्दियों के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त ईंधन हासिल करने की है, ताकि अगर रूस आपूर्ति बंद भी कर दे, तो ज्यादा परेशानी न हो.
ब्रसेल्स स्थित आर्थिक थिंक टैंक ब्रूगल के जलवायु विश्लेषक जॉर्ज जैचमैन ने कहा कि अगर किसी तरह का प्रतिबंध लगाया जाता है या रूस गैस की सप्लाई बंद कर देता है, तो हमें कोयले का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़ेगा और इससे काफी कम समय में कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन होगा. वह आगे कहते हैं, "हालांकि, हम बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा और हीट पंप के संयंत्र स्थापित करेंगे. हमने इसके लिए जो योजना बनाई है उस पर तेजी से काम करेंगे.”
यूरोपीय संघ ने रूस की गैस पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए दोहरी रणनीति सामने रखी है: रूसी गैस की जगह अन्य देशों से ईंधन का आयात करते हुए ग्रीन एनर्जी में निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा. संघ ने कतर, मिस्र और अमेरिका जैसे देशों से हर साल 50 अरब क्यूबिक मीटर एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) आयात करने की योजना बनाई है. ये देश अपनी गैस का दो-तिहाई हिस्सा फ्रैंकिंग के जरिए उत्पादन करते हैं जिससे पर्यावरण को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा, यूरोपीय संघ पाइपलाइन के जरिए अजरबैजान, अल्जीरिया और नॉर्वे जैसे देशों से 10 अरब क्यूबिक मीटर और गैस आयात करना चाहता है.
तेल को तरल अवस्था में ही दुनिया भर में आसानी से एक-जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जाता है. वहीं, गैस को ले जाने के लिए पाइपलाइन की जरूरत होती है या इसे बेहद ठंडा करके तरल अवस्था में लाया जाता है और इसके बाद विशेष टैंकर के जरिए इसे दूसरी जगह भेजा जाता है.
जर्मनी 2026 तक अपने उत्तरी तट पर एलएनजी शिपमेंट के लिए नए टर्मिनल बनाने की योजना बना रहा है. ऐसी आशंका है कि इन नए टर्मिनल के निर्माण से, जर्मनी की निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर बढ़ जाएगी और इससे बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने की योजना अधूरी रह सकती है.
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा कि बाद में हाइड्रोजन के शिपमेंट पाने के लिए टर्मिनलों को फिर से तैयार किया जाएगा. यह एक स्वच्छ ईंधन है जिसे नवीकरणीय स्रोत से पैदा होने वाली बिजली के जरिए बनाया जाता है. हालांकि, विशेषज्ञों ने संदेह जताया कि क्या यह तकनीकी रूप से संभव है?
गैस की मांग में कमी
इस वर्ष यूरोपीय संघ की एक तिहाई से अधिक गैस बचत की योजना जीवाश्म ईंधन की मांग में कटौती की नीतियों से की वजह से है. इन नीतियों में ज्यादा से ज्यादा सौर पैनल और विंड टरबाइन का निर्माण, इमारतों को कम ऊर्जा खपत करने लायक बनाना और हीट पंप स्थापित करना शामिल है.
बिजली क्षेत्र को डिकार्बोनाइज करने के लिए काम करने वाले संगठन रेगुलेटरी असिस्टेंस प्रोजेक्ट के यूरोपीय निदेशक यान रोजेनो ने कहा कि जब तक जमीनी हकीकत में बदलाव नहीं होता, तब तक ये आंकड़े ‘किसी काम के नहीं हैं'. उन्होंने कहा कि कई सारे ठोस कदम उठाने की जरूरत है. नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन के लिए अनुमति देने की प्रक्रिया में सुधार करना, गैस बॉयलर के इस्तेमाल को बंद कर हीट पंप के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी देना और घर में ऊर्जा बचाने को बढ़ावा देने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है.
कार्नेजी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस नामक थिंक टैक में जलवायु विशेषज्ञ नोओ गॉर्डन कहते हैं कि अब तक यूरोपीय नेताओं ने एक चीज पर बात करने से काफी हद तक परहेज किया है. उन्होंने कहा, "मुझे यह नहीं समझ में आता कि वे इस पर बात क्यों नहीं करते हैं. लोगों को अपनी खपत को कम करने के लिए कहना बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा है, यहां तक कि अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ ऊर्जा इस्तेमाल करने वाले यूरोप में भी.”
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, यूरोपीय संघ के घरों में थर्मोस्टैट औसतन 22 डिग्री सेल्सियस (71 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक पर सेट है. अगर इसे 1 डिग्री सेल्सियस भी कम किया जाता है, तो गैस की मांग में 7 फीसदी की कमी आएगी. थोड़े प्रयास से इसे कुछ और डिग्री कम करने पर, उतनी गैस बचाई जा सकती है जितनी आईईए एलएनजी बाजारों से गैस देने की उम्मीद करता है.
मुट्ठी भर राजनेताओं ने व्यक्तिगत तौर पर बदलाव के पक्ष में बात की है. जर्मनी के अर्थव्यवस्था और जलवायु संरक्षण मंत्री रोबर्ट हाबेक ने कहा, "अगर आप पुतिन को थोड़ा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, तो ऊर्जा बचाएं.” यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन ने जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ से बात करते हुए अपनी इस भावना को जाहिर किया. उन्होंने कहा, "हम सभी ऊर्जा की बचत करके रूसी गैस पर निर्भरता को खत्म करने में योगदान दे सकते हैं.”
यूरोपीय संघ के शीर्ष विदेश नीति अधिकारी जोसेप बोरेल ने यूरोपीय संसद में भाषण के दौरान घरों के तापमान को व्यवस्थित करने की जरूरत पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, "यूरोपीय नागरिकों को अपने घरों में तापमान को कम रखने की आवश्यकता है.”
इस लेख के लिए जितने भी विशेषज्ञों से बात की गई उन सभी ने कहा कि हमें संरचनात्मक बदलाव के तौर पर व्यक्तिगत कार्यों को प्रोत्साहित करने पर जोर देना चाहिए. उन्होंने बताया कि लोगों को इस बात को लेकर जागरूक करना चाहिए कि यूरोप में किस तरह बिजली पैदा होती है और घरों को कैसे गर्म रखा जाता है.
ई3जी के पास्तुखोवा ने कहा, "अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने, हीट पंप लगाने, और तापमान को नियंत्रित रखने वाले इमारत बनाने जैसी नई योजनाएं बहुत पहले ही लागू हो जानी चाहिए थी. फिलहाल, यह ऐसा सबक है जिसे यूरोपीय संघ को कठिन तरीके से सीखना है.”