ताबड़तोड़ मिसाइल परीक्षण कर रहे किम जोंग उन चाहते क्या हैं
१४ अक्टूबर २०२२सोमवार को उत्तर कोरिया ने घोषणा की किदो अक्टूबर को उसने उत्तरी जापान की ओर जो मिसाइल दागी थी वह ‘जमीन से जमीन पर मार करने वाली मध्यम दूरी की नई बैलिस्टिक मिसाइल' थी. हालांकि उसी दिन सरकारी मीडिया ने बताया था कि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने हाल ही में देश की परमाणु इकाइयों में भी कुछ परीक्षणों का निरीक्षण किया था.
उत्तर कोरियाई सेना के दो हफ्ते के अभ्यास में परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल, युद्धक विमान और ऐसे कई अन्य हथियार थे जो दक्षिण कोरिया और अमरीकी ठिकानों को लक्ष्य बना सकते थे. इस बात की काफी चर्चा है कि आने वाले दिनों में किम जोंग उन पुंग्ये-री टेस्टग्राउंड में एक भूमिगत परमाणु परीक्षण का आदेश दे सकते हैं.
उत्तर कोरिया ने जोर देकर कहा है कि मिसाइल प्रक्षेपण और सैन्य अभ्यास रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए हैं और ये कोरियाई प्रायद्वीप में अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान की नौसैना के संयुक्त अभ्यास की प्रतिक्रिया मात्र हैं.
ज्यादा आक्रामक रुख
विश्लेषकों का कहना है कि कई साल तक की शांति और संयम के बाद उत्तर कोरिया अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एक बार फिर और आक्रामकता के साथ खड़ा हो रहा है. हालांकि इस दौरान उसने छिटपुट मिसाइल भी दागे हैं और पांच साल पहले परमाणु परीक्षण भी किया था.
दुनिया के अन्य हिस्सों में चल रही गतिविधियों की भी उत्तर कोरिया ने अनदेखी नहीं की होगी.
ट्रॉय यूनिवर्सिटी की सियोल कैंपस में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर, डान पिंक्स्टन कहते हैं, "यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है, उससे उत्तर कोरिया ने काफी सीख ली है. परमाणु हथियारों की उपयोगिता और उनका महत्व वह साफतौर पर देख रहे हैं कि कैसे उनके दम पर रूस ने नाटो के संभावित हमलों को रोक रखा है. ये हथियार दुश्मनों को दूर रखने में तो कारगर हो सकते हैं लेकिन किसी दुश्मन को कुछ भी करने के लिए उकसाने के संदर्भ में परमाणु हथियार बिल्कुल कारगर नहीं हैं.”
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पिंक्स्टन कहते हैं, "उत्तर कोरिया के राजनीतिक उद्देश्य समय के साथ काफी सुसंगत रहे हैं और वो आज भी वही हैं. मूल रूप से उत्तर कोरिया कहता रहा है कि वो अभी क्रांति से लड़ रहा है और तब तक लड़ता रहेगा जब तक कि उसे अंतिम रूप से जीत हासिल नहीं हो जाती. अंतिम जीत का मतलब है- उत्तर कोरिया के अधीन एक संयुक्त प्रायद्वीप.”
पिंक्स्टन कहते हैं कि सबसे पहले वह इस बात के लिए दबाव डाल रहा है कि बैलिस्टिक मिसाइल और परमाणु परीक्षण के कारण उसके ऊपर जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हैं, वो हट जाएं और उसे परमाणु शक्ति मान लिया जाए. पिंक्स्टन जोर देकर कहते हैं कि यह सही है या गलत है लेकिन उत्तर कोरिया का स्पष्ट मानना है कि इस तरह की मान्यता शासन को प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाती हैं.
वो कहते हैं, "लंबी अवधि के संदर्भ में देखें तो वो चाहता है कि इस क्षेत्र में अमेरिकी गठबंधन खत्म हो जाए, खासकर दक्षिण कोरिया और जापान के साथ और अमेरिकी सेनाएं पूर्वोत्तर एशिया से बाहर चली जायें.”
ताकत का प्रदर्शन
सियोल स्थित कोरिया इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल यूनिफिकेशन में रिसर्च कर रही मिन ते उन इस बात से सहमत हैं कि हाल ही में जो मिसाइलें दागी गईं और सैन्य परीक्षण हुए वो सिर्फ ‘ताकत का प्रदर्शन' भर थे ताकि अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ-साथ अपने देश के लोगों को भी ताकत दिखाई जा सके.
हालांकि वो कहती हैं कि इसके निहितार्थ और दूर तक जाते हैं. मिन ते उन कहती हैं, "वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सिर्फ एक संदेश भर नहीं दे रहे हैं, वह बता रहे हैं कि हम परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और यह बहुत गंभीर मामला है. वे बहुत आत्मविश्वास से कह रहे हैं कि हम परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और भले ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमें यह दर्जा नहीं देता, हम अपने रास्ते पर जाने के लिए स्वतंत्र हैं.”
उन जोर देकर कहती हैं कि उन तरीकों की पहचान करना जरूरी है जिनसे उत्तर कोरिया लंबी अवधि में अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र पर अपने व्यवहार को बदलता रहता है. वह कहती हैं, "अमेरिका और दक्षिण कोरिया के पास फिलहाल कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है कि वे उत्तर कोरिया को बदल सकें और ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध विफल साबित हुए हैं. यदि वह फिर एक परमाणु परीक्षण कर लेगा तो अमेरिका और दक्षिण कोरिया क्या कर लेंगे?”
संकल्प कमजोर नहीं हैं
पिंक्स्टन कहते हैं कि कमजोर संकल्प के चलते उत्तर कोरिया द्वारा हालिया बम विस्फोट की घटना का इस क्षेत्र में विपरीत असर पड़ा है. बहुस्तरीय सैन्य अभ्यास के अलावा इस महीने की शुरुआत में जापानी सैनिकों के साथ जर्मन लड़ाकू जहाजों के अभ्यास ने किम जोंग की आक्रामकता को बढ़ा दिया, जिसके नतीजे में दक्षिण कोरिया और जापान ज्यादा नजदीक आ गये.
दो साल पहले स्थिति अलग थी और दक्षिण कोरिया और जापान की सरकारें इस मामले में बहुत कम बातचीत करती थीं और दोनों के बीच सैन्य सहयोग भी बहुत कम था लेकिन दोनों देशों की नौसेनाओं ने इस महीने अमेरिकी सेना के साथ एंटी-सबमरीन युद्ध अभ्यास में हिस्सा लिया है.
दोनों देशों का यह सहयोगात्मक रवैया इसी वजह से है कि दोनों को उत्तर कोरिया से डर लग रहा है, साथ ही यह आशंका भी दोनों को करीब ला रही है कि इस इलाके में चीन की महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं. यूक्रेन में जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शांति को हल्के में नहीं लिया जा सकता.
पिंक्सटन कहते हैं, "लेकिन थोड़ा हटकर देखें तो पता चलता है कि उत्तर कोरिया की परमाणु हथियारों की धमकी खोखली दिखती है. यदि किम जोंग कभी परमाणु हमले की इजाजत देते हैं तो यह आत्महत्या होगी. इन हथियारों का महत्व सिर्फ इसी बात में है कि इनके जरिए हमले को रोका जा सकता है और मुझे नहीं लगता कि कोई दूसरा देश उत्तर कोरिया पर हमले की योजना बना रहा है.”