60 साल में कितना बदल गया फिल्मी जासूस जेम्स बॉन्ड
७ अक्टूबर २०२२करीब 60 साल पहले 5 अक्टूबर, 1962 को जेम्स बॉन्ड सीरीज की पहली फिल्म ‘डॉ. नो' लंदन में रिलीज हुई थी. जेम्स बॉन्ड की पहली भूमिका अभिनेता शॉन कॉनरी ने निभाई थी और दुनिया को खलनायक से बचाया था. यह फिल्म काफी ज्यादा हिट रही. अब तक इस सीरीज की 25 फिल्में आ चुकी हैं. इन फिल्मों ने 7 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई की है.
यह फिल्म सीरीज, उपन्यास लेखक इयान फ्लेमिंग के जासूसी उपन्यासों पर आधारित है. फ्लेमिंग ने 12 उपन्यासों और दो लघुकथा संग्रहों में जेम्स बॉन्ड के किरदार का इस्तेमाल किया है. फ्लेमिंग के बाद 8 अन्य लेखकों ने भी जेम्स बॉन्ड के किरदार के साथ कहानियां लिखीं. समय के साथ किरदार भी बदलते गए और कहानियां भी. कभी बॉन्ड गर्ल्स की भूमिका की तारीफ हुई तो कभी एजेंट 007 के कारनामों की.
शॉन कॉनरी ने निभाया एजेंट 007 का किरदार
पहली फिल्म ‘डॉ. नो' में सबसे पहले हमें एजेंट 007 के जिस किरदार से परिचित कराया जाता है वह एक खूबसूरत महिला के सामने कसीनो में बैठा होता है और अपने भाग्य को आजमा रहा होता है. जब वह महिला एजेंट 007 से उसका नाम पूछती है, तो कैमरा बॉन्ड की ओर घूमता है. वह व्यक्ति अलग अंदाज में सिगरेट जला रहा होता है. नशीली आंखों के साथ वह बोलता है, "बॉन्ड, जेम्स बॉन्ड.” यह शब्द फिल्मी दुनिया के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है.
फिल्म में जेम्स बॉन्ड का किरदार निभाने वाले शॉन कॉनरी एक सामान्य अभिनेता थे. पहले उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते थे, लेकिन इस फिल्म सीरीज की सफलता ने उन्हें अलग पहचान दिलाई.
कसीनो वाले दृश्य के तुरंत बाद फिल्म में एजेंट 007 को जमैका के लिए उड़ान भरने और एम16 के एजेंट की हत्या के मामले की जांच करने का जिम्मा सौंपा जाता है. अपने साथी की तलाश करते-करते बॉन्ड डॉक्टर नो के अंडरग्राउंड अड्डे पर पहुंच जाता है. डॉक्टर नो चीनी-जर्मन वैज्ञानिक है, जो रेडियो बीम हथियार से अमेरिका के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नष्ट करके पूरी दुनिया पर राज करना चाहता है. जेम्स बॉन्ड डॉक्टर नो के नापाक मंसूबों को विफल कर दुनिया को बचाता है.
जेम्स बॉन्ड सीरीज की रिलीज हुई सभी 25 फिल्मों की कहानी इसी तरह की है. हर फिल्म में खलनायक बदल जाते हैं. कभी वो डॉक्टर नो होता है तो कभी ब्लोफेल्ड, लेकिन सभी खलनायकों की इच्छा दुनिया पर राज करने की ही होती है. हालांकि, हर बार जेम्स बॉन्ड उनके मंसूबों पर पानी फेर देता है. फिल्म में जेम्स बॉन्ड के गोली चलाने और जंगलों में खलनायकों के पीछा करने के दृश्य काफी बेहतरीन लगते हैं.
महिलाओं की कमजोर छवि
प्रशंसकों के कई ऐसे समूह हैं जिनका मानना है कि ‘डॉ. नो' जेम्स बॉन्ड सीरीज की सबसे बेहतर फिल्म रही. उस तरह की फिल्म शायद ही अब बन सकती है.
सबसे पहली बात तो यह कि शायद ही कोई ऐसी किताब लिख सके जिसमें एक किरदार, जो हर समस्या के समाधान के लिए तैयार हो, आकर्षक और रोमांटिक हो और चुस्त-दुरुस्त हो, जैसा कि जेम्स बॉन्ड ने दशकों तक निभाया.
निश्चित तौर पर, उनकी फिल्मों में महिलाओं को लेकर भी एक बड़ा अध्याय होना चाहिए था. हालांकि, उनकी फिल्मों में महिलाओं को काफी सीधा-सादा दिखाया गया है, जो खुद बॉन्ड की बांहों में जाना चाहती हैं और उससे मदद मांगती हैं. कभी-कभी विरोधी पक्ष की महिलाएं भी बॉन्ड के प्रति काफी ज्यादा आकर्षित हो जाती हैं और रोमांस करना चाहती हैं.
चाहे दुश्मन हो या दोस्त, हर फिल्म में कम से कम एक बॉन्ड गर्ल है. कभी-कभी इससे ज्यादा भी. इन 25 फिल्मों में 60 से ज्यादा प्रेम कहानियां दिखाई गई हैं. उनमें महिलाओं के नाम कभी ‘हनी' थे तो कभी ‘पुसी गैलोर'. आज के दौर में लोग ऐसे नामों का इस्तेमाल करने से बचते हैं. हालांकि, हाल के दशकों में बॉन्ड की फिल्मों में महिलाओं की भूमिकाएं बदल रही हैं.
पिछले पांच फिल्मों में डैनियल क्रेग ने बॉन्ड की भूमिका निभाई है. वे बॉन्ड का किरदार निभाने वाले छठे अभिनेता हैं. उनसे पहले शॉन कॉनरी, जॉर्ड लेजेन्बी, रोजर मूर, टिमोथी डाल्टन और पीयर्स ब्रोसनन यह भूमिका निभा चुके हैं. क्रेग को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो बाहर से सख्त और अंदर से नरम है. हालांकि, महिलाओं के मामले में हर बार जेम्स बॉन्ड की किस्मत साथ नहीं देती.
पर्दे पर महिलाओं की भूमिका के अलावा, 'डॉ. नो' की कई ऐसी बातें भी हैं जो बदलते समय के मुताबिक प्रासंगिक नहीं रहीं.
आपत्तिजनक जीवन शैली
1962 में रिलीज हुई फिल्म से ऐसा लगता है कि हर कोई सिगरेट पीता है. जबकि आज के हॉलीवुड फिल्मों में ऐसा नहीं दिखाया जाता. पुरानी फिल्मों में कसीनो से लेकर होटल बार तक और यहां तक कि बेडरूम में, हर जगह सिगरेट दिखाई गई है.
1970 के दशक में अमेरिका में सिगरेट पीना आम बात थी, इसलिए स्वाभाविक रूप से यह सिल्वर स्क्रीन पर सामने आया. 1970 के दशक की टीवी सीरीज ‘स्पेस:1999' में लोगों को चंद्रमा पर भी सिगरेट पीते दिखाया गया था, लेकिन 2000 के दशक तक स्वास्थ्य से जुड़े खतरों को देखते हुए दुनिया के कई हिस्सों में धूम्रपान पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
‘डॉ. नो' में यह भी देखा जा सकता है कि कुछ ही लोगों ने सीट बेल्ट लगाया हुआ है. जब बॉन्ड अपनी स्पोर्ट्स कार से एक महिला से मिलने जा रहा होता है, तो कुछ लोग उसका पीछा करते हैं. यहां देखा जा सकता है कि बॉन्ड सीट बेल्ट नहीं लगाए हुए हैं. बॉन्ड का पीछा कर रहे लोगों की कार ढलान से होते हुए गड्ढे में गिर जाती है और वे मर जाते हैं. जाहिर है कि उन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगायी थी और कारों में उस समय एयरबैग भी नहीं होते थे. गड्ढे में गिरने पर गाड़ी में विस्फोट हो जाता है और एजेंट 007 कहता है, "उन्हें अपने अंतिम संस्कार में जाने की जल्दी थी.”
सभी सेक्रेट्री महिलाएं ही क्यों होती हैं?
बॉन्ड की पुरानी फिल्मों में सेक्रेट्री और रिसेप्शनिस्ट की भूमिका महिलाओं ने ही निभाई हैं. 1960 के दशक में इन्हें महिलाओं के लिए स्टैंडर्ड नौकरियां माना जाता था.
गोरी हों या सुनहरे बालों वाली, बॉन्ड रोमांस के लिए सेक्रेट्री को ही टारगेट करता है और वे सेक्रेट्री भी बॉन्ड के प्रति आकर्षित हो जाती हैं. अधिकांश फिल्मों में, बॉन्ड का अपने बॉस की सेक्रेट्री (मनीपेनी) के साथ रोमांटिक संबंध होता है. जबकि, जिस उपन्यास के आधार पर ये फिल्में बनाई गई हैं उसमें ऐसा कुछ नहीं है.
2012 में रिलीज हुई फिल्म ‘स्काईफॉल' में मनीपेनी को पहली बार किसी नाम से बुलाया गया जो कि ‘ईव' था. इस फिल्म में उसकी पुरानी कहानी भी दिखाई गई कि वह सिर्फ एक सेक्रेट्री नहीं है, बल्कि वह एक पूरी तरह प्रशिक्षित एजेंट है जो गलती से बॉन्ड को गोली मार देती है और सजा के तौर पर उसे डेस्क पर काम करने के लिए कहा जाता है.
खैर जो भी हो, आज ‘मनीपेनी' की नौकरी का टाइटल ‘सेक्रेट्री' की जगह ‘ऑफिस मैनेजर' या ‘एग्जिक्यूटिव असिस्टेंट' होगा.
किरदारों का गलत चयन
फिल्म में डॉ. नो जेम्स बॉन्ड को बताता है कि वह ब्रिटिश मिशनरी और चीनी महिला की संतान है. हालांकि, इस भूमिका को कनाडाई अभिनेता जोसेफ वाइसमैन ने निभाया है, जिन्होंने आंखों को ‘एशियाई' दिखाने के लिए मेकअप किया था.
पहले इस तरह की फिल्मों में पूर्वी एशियाई व्यक्ति की भूमिकाएं गोरे अभिनेता निभाते थे. आज ‘येलोफेस' के इन मामलों की अनुमति नहीं है. अगर भविष्य में कभी ‘डॉ. नो' का रीमेक बनता है, तो इस बात की काफी ज्यादा संभावना है कि कोई चीनी व्यक्ति ही यह भूमिका निभाएगा.
औपनिवेशिक विरासत
‘डॉ. नो' फिल्म में जमैका के काले लोग गोरे अंग्रेज को 'कैप्टन' कहते हैं. जब फिल्म की शूटिंग हुई थी, तब जमैका भी ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा था. 'डॉ. नो' के रिलीज होने के दो महीने पहले अगस्त 1962 में जमैका को आजादी मिली थी.
फिल्म में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा से पता चलता है कि उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता था. फिल्म में जमैका के लोगों को जिस भाषा में संबोधित किया गया है उसे आज की तारीख में काफी आपत्तिजनक माना जाता है.
हालांकि, एक आखिरी बदलाव किया जा सकता है. दरअसल, जमैका स्थित ब्रिटिश दूतावास में महारानी एलिजाबेथ की युवावस्था की तस्वीर है. जेम्स बॉन्ड की अगली फिल्म में वहां किंग चार्ल्स III की तस्वीर हो सकती है.