ताकि होलोकॉस्ट को कभी भुलाया ना जाए
२० जनवरी २०२२20 जनवरी, 1942 को 15 नाजी नेता बर्लिन के एक उपनगरीय इलाके वानसे के एक बंगले में मिले. अपनी 90 मिनट की चर्चा में उन्होंने उन्होंने "यहूदियों के सवाल पर आखिरी जवाब" देने की योजना को अंजाम देने का फैसला लिया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों के चरणबद्ध नरसंहार का यह आधिकारिक गुप्त नाम था और यह सम्मेलन वानसे कॉन्फ्रेंस कहलाई.
आज वह बंगला होलोकॉस्ट मेमोरियल और शिक्षा का केंद्र है. यहां स्थाई तौर पर जो प्रदर्शनी लगी रहती है उसमें इस कुख्यात सम्मेलन के अलावा भी बहुत कुछ है. दिसंबर 2020 से मेमोरियल की निदेशक के तौर पर काम करने वाली देबोरा हार्टमन कहती हैं, "यह इन 15 लोगों से कहीं ज्यादा है, केवल उन पर ही फोकस करेंगे तो बाकी सबको इसकी जिम्मेदारी उठाने से छुटकारा मिल जाएगा."
हार्टमन के लिए मेमोरियल सेंटर 80 साल पहले की उस घटना के अलावा युद्ध के बाद होलोकॉस्ट को ना स्वीकारने वाले जर्मनी का भी प्रतीक है. आउशवित्स सर्वाइवर और इतिहासकार योसेफ वुल्फ साल1965 में ही इस बंगले को मेमोरियल और रिसर्च सेंटर बनाने का प्रस्ताव रख चुके थे. हालांकि उस समय तमाम राजनेता इस प्रोजेक्ट के खिलाफ थे. इस इमारत को स्कूली बच्चों की कैंपिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता था. जीते जी वुल्फ को जान से मारे जाने की धमकियां मिलीं और धीरे धीरे सरकार से उनका विश्वास उठ गया. जब उन्हें लगने लगा कि सरकार कभी नाजी अपराधियों को सजा नहीं देगी तो निराश होकर उन्होंने साल 1974 में आत्महत्या कर ली.
1980 के दशक में फिर से शुरु हुए इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन 50वीं वर्षगांठ पर 20 जनवरी 1992 को हुआ. तब से यह होलोकॉस्ट मेमोरियल और म्यूजियम चल रहा है. अपनी रिसर्च के माध्यम से वुल्फ ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि कैसे युद्ध खत्म होने के बाद भी पश्चिमी जर्मनी की राजनीति में पहले जैसी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का असर बरकरार है. इस निरंतरता के बारे में बताते हुए हार्टमन कहती हैं कि होलोकॉस्ट को याद रखने का उनका काम केवल अतीत की घटनाओं को याद रखने तक सीमित नहीं है बल्कि उसे आज के नजरिये से जोड़ कर देखने की सतत प्रक्रिया है.
'सबसे जरूरी है ईमानदार रहना'
आज भी दिखने वाले वैसे रवैये की ओर ध्यान दिला कर 2018 में हार्टमन विवादों में घिर गई थीं. इस सेंटर की निदेशक बनने से पहले वह याद वाशेम इंटरनेशनल स्कूल फॉर होलोकॉस्ट स्टडीज में जर्मन डेस्क की प्रमुख थीं. इस भूमिका में हार्टमन ने इस्राएल के इस होलोकॉस्ट मेमोरियल का टूर ऑस्ट्रिया के तत्कालीन चांसलर सेबास्टियन कुर्त्स को करवाया था. जिसके बाद उन्होंने कुर्त्स की निंदा करते हुए कहा था कि वह खुलेआम यहूदियों से घृणा करने वालों के साथ सरकार में रहते हुए उस घृणा से लड़ने का दावा कैसे कर सकते हैं. ऑस्ट्रिया में उनके साथ सरकार बनाने वाली पार्टियों में फ्रीडम पार्टी ऑफ ऑस्ट्रिया भी थी, जिसके कुछ नेता यहूदियों के खिलाफ बयान देते आए थे.
हार्टमन को अपने बयान के लिए काफी लेकर कुछ सुनना पड़ा. उनके संस्थान याद वाशेम को इस्राएल में ऑस्ट्रिया के राजदूत से माफी मांगनी पड़ी. उनकी नौकरी पर खतरा आ गया था लेकिन हार्टमन कहती हैं कि वह "आज भी उससे अलग कुछ नहीं करतीं क्योंकि अपने साथ तो ईमानदार रहना ही चाहिए." विएना में पैदा हुई हार्टमन के परदादा-परदादी को विएना से डिपोर्ट किया गया था और होलोकॉस्ट के दौरान उनकी हत्या कर दी गई थी. हालांकि उनका मानना है कि इसके लिए संवेदनशील होने के लिए खुद यहूदी होना कोई शर्त नहीं है.
वैक्सीन-विरोधियों और यहूदी विरोधियों का कनेक्शन
आज कल हमारे आसपास के लोगों के दिमाग पर भी उस दौर के जैसी सोच नजर आती है. पिछले साल वैक्सीन के विरोध में आंदोलन करने वाले सदस्यों ने होलोकॉस्ट म्यूजियम में भी पर्चियां छोड़ी थीं. उन्होंने मेमोरियल के गेस्ट बुक में अपनी टिप्पणी भी लिख छोड़ी थी. इस संदेश में "क्वेयरडेंकर" यानि "वैकल्पिक सोच रखने वाले" इन लोगों ने आजकल की कोविड संबंधी पाबंदियों की तुलना नाजीकाल के यहूदी विरोधी कानूनों से की है. इस पर हार्टमन कहती हैं, "क्वेयरडेंकर आंदोलन तरह तरह के साजिशी सिद्धांतों पर आधारित है. तो इस लिहाज से एंटीसेमीटिज्म और एंटीसेमिटिक सोच से इसका गहरा संबंध तो है ही."
हार्टमन आगे कहती हैं कि इस कारण से यह मेमोरियल सेंटर की भी जिम्मेदारी बन जाता है कि इसे साफ साफ बताएं और इस बारे में कुछ करें. लेकिन सवाल यह है कि क्या वानसे कॉन्फ्रेंस जैसा होलोकॉस्ट मेमोरियल सेंटर जर्मनी में ऐसे साजिशी सिद्धांत रखने वालों और एएफडी जैसी अतिदक्षिणपंथी पार्टियों का मुकाबला कर सकती है?
इस पर हार्टमन कहती हैं, "यह संदेश हमेशा नहीं पहुंच पाता. लेकिन जो भी हमसे बात करने को तैयार हैं उनसे बात करने की कोशिश तो हमें करनी ही चाहिए." इतिहास की पढ़ाई करवाने भर से शायद यह मकसद पूरा ना हो पाए लेकिन ऐसी हर साजिशी सोच में समानताओं को उजागर करना एक अहम कदम है."