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डर्टी बम जान लेने से ज्यादा डर फैलाता है

२५ अक्टूबर २०२२

डर्टी बम को लंबे समय तक आतंकवादियों का हथियार माना जाता रहा है क्योंकि इन बमों का असल उद्देश्य वातावरण में रेडियोधर्मी धूल और धुआं उछाल कर घबड़ाहट, उलझन और चिंता पैदा करना है. डर्टी बम क्या है और कैसे नुकसान पहुंचाता है.

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डर्टी बम जान लेने से ज्यादा डर फैलाते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर तस्वीर: Slovak Police/CTK/dpa/picture-alliance

रूस का आरोप है कि यूक्रेन डर्टी बम का धमाका करने की तैयारी कर रहा है ताकि इसका आरोप रूस पर लगा कर जंग को और ज्यादा फैलाया जा सके. पश्चिमी देशों ने इस दावे को खारिज करते इसे "पारदर्शी झूठ" कहा है. अभी तक दुनिया में किसी डर्टी बम के धमाके का रिकॉर्ड नहीं है. दो दशक से ज्यादा पहले की बात है जब रूस के चेचेन्या प्रांत में इस तरह का बम धमाका करने की दो नकाम कोशिशें हुई थीं.

डर्टी बम कैसे काम करता है?

तकनीकी रूप से डर्टी बम का मतलब है रेडियोलॉजिक डिस्पर्सन डिवाइस. ये बम तुलनात्मक रूप से अपने विकास के शुरुआती चरण में हैं और बहुत सटीक नहीं होते. परमाणु बमों की तुलना में इन्हें बनाना आसान और काफी सस्ता है और साथ ही यह कम नुकसानदेह होते हैं.

डर्टी बमों में डायनामाइट जैसे पारंपरिक विस्फोटक का इस्तेमाल होता है. इन्हें रेडियोधर्मी पदार्थ के साथ रखा जाता है. धमाके के जोर से यह रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण में फैल जाता है. फैलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ की मात्रा इसे खतरनाक बनाती है लेकिन जरूरी नहीं है कि यह घातक भी हो.

जापोरिझिया प्लांट के पास रेडियेशन का स्तर मापते यूक्रेनी सैनिक
रेडियेशन का पता लगाने के लिए खास उपकरणों की जरूरत होती हैतस्वीर: Konstantin Mihalchevskiy/SNA/IMAGO

बम में इस्तेमाल होने वाला मटीरियल दवाओं में इस्तेमाल होने वाले और उद्योगों से या फिर रिसर्च केंद्रों जैसे रेडियोधर्मी स्रोतों से हासिल किया जा सकता है. वॉशिंगटन के गैर सरकारी संगठन द न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव के न्यूक्लियर मटीरियल सिक्योरिटी प्रोग्राम के वाइस प्रेसिडेंट स्कॉट रोएकर का कहना है, "डर्टी बम बनाना सचमुच काफी आसान है. यह एक अपरिपक्व उपकरण है."

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डर्टी बम से क्या नुकसान होता है?

डर्टी बम से होने वाले नुकसान या जान की हानि कई बातों पर निर्भर करती है. इसमें एक अहम कड़ी है कि इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक विस्फोटक की प्रकृति और मात्रा. विस्फोट का परिमाण इसी से तय होता है. रेडियोएक्टिव मटीरियल की मात्रा और टाइप इसे प्रभावित करने वाले दूसरे कारण हैं और साथ ही मौसम की स्थिति भी. खासतौर से धमाके के वक्त हवा की स्थिति इस पर बहुत असर डालती है. हवा के चलते एक बड़ा इलाका जहरीला हो  सकता है.

ज्यादातर डर्टी बम इस मात्रा में विकिरण नहीं फैलाते कि लोगों की जान जाए या फिर गंभीर बीमारी हो. कम मात्रा में विकिरण से आमतौर पर कोई बीमारी का लक्षण नहीं दिखता. लोगों को यह पता भी नहीं चलता कि वे उसके संपर्क में आये हैं क्योंकि विकिरण को ना तो देखा जा सकता है, ना इसकी कोई गंध होती है और ना कोई स्वाद.

विकिरण का कोई रंग, स्वाद और गंध नहीं होता
विकिरण का पता लगाने वाला उपकरणतस्वीर: Konstantin Mihalchevskiy/SNA/IMAGO

कितना खतरनाक है डर्टी बम?

डर्टी बम की वजह से सीमित संख्या में लोगों की मौत हो सकती है. इसका असली असर मनोवैज्ञानिक होता है. यही वजह है कि इन बमों को "व्यापक बाधा के हथियार" कहा जाता है. रोएकर का कहना है कि डर्टी बमों का युद्धक्षेत्र में कोई इस्तेमाल नहीं है, इन्हें शहरी क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए रखा जाता है. रोएकर ने कहा, "ये मोटे तौर पर मनोवैज्ञानिक हथियार हैं. जब आप लोगों को डराने धमकाने की कोशिश करते हैं तो इस तरह के हथियार का इस्तेमाल होता है."

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रेडियोधर्मी धूल और धुआं दूर तर फैल सकते हैं और धमाके वाली जगह के आस पास मौजूद लोगों में सांस के सहारे अंदर जा कर यह खतरनाक साबित हो सकते हैं. रेडियोधर्मी बादल दूर तक फैल सकते हैं. हालांकि वातावरण के सहारे फैल रहा रेडियोधर्मी पदार्थ कम सघन और कम नुकसानदेह होता है.

विकिरण के संपर्क में आने से नुकसान इस बात पर भी निर्भर है कि कोई कैसे संपर्क में आया, कितनी देर तक संपर्क में रहा और विकिरण त्वचा के जरिये शरीर में गई, सांस के जरिये या फिर मुंह के जरिये.

विकिरण का पता लगाने के लिए खास उपकरणों की जरूरत होती है. विकिरण के संपर्क में आए घरों, दुकानों और सार्वजनिक सेवाओं को कई महीनों तक लोगों से दूर रख कर महंगी प्रक्रिया के जरिये साफ सफाई कराने की जरूरत पड़ती है.

एनआर/वीके (एपी)