क्या है जेनरेटिव एआई, कैसे करेगा मदद
२० जुलाई २०२३क्या आप जानते हैं कि चैटजीपीटी एक जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल है. जहां चैटजीपीटी टेक्स्ट और कोड लिख सकता है, वहीं बाजार में कई और ऐसे मॉडल उपलब्ध हैं जो नए ऑडियो, वीडियो, तसवीरें, इत्यादि भी बना सकते हैं. तो आखिर क्या है जेनरेटिव एआई जिसकी मदद से मशीन इंसानों जैसी बुद्धिमता पा रहे है?
जेनरेटिव एआई क्या है?
अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो जेनरेटिव एआई (जीएआई) ऐसे एल्गोरिदम हैं जिनकी मदद से हम नया कंटेंट बना सकते हैं जैसे टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो, कोड और भी बहुत कुछ. यह मशीन लर्निंग (एमएल) का ही एक रूप है. आप जेनरेटिव एआई को लिखित आदेश देकर टेक्स्ट लिखवा सकते हैं, या फिर इमेज, वीडियो भी बनवा सकते हैं. यानी यह जरूरी नहीं है कि जिस माध्यम में आउटपुट चाहिए, आदेश का माध्यम भी वही हो.
जहां पारंपरिक एआई एल्गोरिदम एक ट्रेनिंग डाटा सेट के अंदर रहकर पैटर्न की पहचान करते हैं और भविष्यवाणी करते हैं, वहीं जीएआई एमएल की मदद लेते हैं कुछ नया बनाने के लिए. चैटजीपीटी नवंबर 2022 में आया था. इसके अलावा जीएआई के और भी कई उदहारण हैं, जैसे मार्च 2023 में आया बार्ड और जनवरी 2021 में आया डीएएलएल-ई. यह लोगों के दिए टेक्स्ट इनपुट या संवाद से नया टेक्स्ट या नई तस्वीरें बना सकते हैं. कुछ पॉपुलर उदहारण हैं डीपमाइंड, जो गूगल के अल्फाबेट की एक सहायक कंपनी है.
क्या हैं फायदे
पारंपरिक एआईअमूमन कोई विशिष्ट कार्य करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. फिर वह चाहे किसी डाटा का विश्लेषण करना हो या स्वयं संचालित कार को चलने में मदद. अगर जेनरेटिव एआई की बात करें तो इसका इस्तेमाल नया कंटेंट बनाने के लिए किया जाता है. मनोरंजन तो एक बड़ा क्षेत्र है ही जहां जीएआई का इस्तेमाल होता है. इसके आलावा, मान लीजिए आपको इंटरव्यू के लिए तैयारी करनी है, तो इसके लिए चैटजीपीटी से ना आप केवल सवाल पूछ सकते हैं, बल्कि तर्क वितर्क भी कर सकते हैं, जिससे आपकी तैयारी और पक्की हो सके. साथ ही कई तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर, आप नए गीत बना सकते हैं, या कोई शैक्षणिक लेख लिखने के लिए जानकारी ले सकते हैं.
ऑटोमोटिव से लेकर स्वास्थ्य सेवा और वैज्ञानिक अनुसंधान तक के उद्योगों में जीएआई मददगार साबित हो सकता है. अगर उपभोक्ताओं के स्तर पर देखें तो मीडिया और गेमिंग उद्योगों में जीएआई बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. खुद को अभिव्यक्त करने के लिए अब पहले से कहीं ज्यादा तरीके मौजूद हैं. जीएआई मदद करता है ऐसे नए गेम बनाने में जो ज्यादा इंटरैक्टिव हों. अभिजीत कट्टे जेटपुल्ट नाम की कंपनी में डेटा और एआई के उपाध्यक्ष हैं. वे कहते हैं, "कुछ ही सालों में कोई भी रचनात्मक व्यक्ति या डेवलपर एआई से उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली चीजें तैयार कर पाएंगे. ऐसी चीजें जो अभी तक शायद बड़े स्टूडियो में ही बनाना मुमकिन है."
क्या हैं सवाल
जीएआई को लेकर एक बहुतबड़ी चिंता डाटा प्राइवेसी की हैऔर ऐसे कंटेंट के समाज में फैलने से भारी हानी भी हो सकती है. अतीत में पोप फ्रांसिस की बलेंसीआगा के जैकेट पहनी हुई एक फोटो खूब वायरल हुई थी, जो कि फेक और एआई से बनाई हुई निकली. इस बात का तो चलिए एक मनोरंजक पहलू है, लेकिन इसका इस्तेमाल समाज में डर और प्रोपेगंडा फैलाने के लिए भी हो सकता है. ऐसे ही टूल्स का इस्तेमाल करके किसी एक राजनितिक पार्टी के लोग विपक्ष के खिलाफ ऐसी तस्वीरें या वीडियो बना कर इंटरनेट पर फैला सकते हैं, जो उनकी छवि या लोगों के मन में उनके बारे में बनी राय को बिगाड़ सकती है.
कट्टे के अनुसार, "जीएआई ने दस्तक दे दी है और इसी कारण चीजें और जटिल होने वाली हैं. एक तरीका खोजना जिससे यह सुनिश्चित हो कि हम जीएआई के फायदों का त्याग किए बिना, उसके नकारात्मक पहलुओं को रोक सकें, नीति निर्माताओं के लिए कठिन काम होने वाला है." जीएआई से जुड़ी चिंताओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है. डाटा प्राइवेसी के लिए यह जरूरी है कि लैंग्वेज मॉडल को ट्रेन करते समय, चाहे वे छोटे हो या बड़े, यह ध्यान रखा जाए कि लोगों की प्राइवेसी और डाटा सुरक्षित है और उनका उल्लंघन नहीं हो रहा है. दूसरा है पूर्वाग्रह और नैतिक मुद्दे जिनको जीएआई पर बनाए गए फेक कंटेंट की वजह से बढ़ावा मिलता है.
तीसरा, यह जरूरी है कि ये जीएआई मॉडल जिन सूत्रों से ट्रेनिंग ले रहा है, उनकी साफ-साफ पहचान दिखाई जाए ताकि इस्तेमाल करने वाले को यह पता रहे कि यह डाटा कहां से आया है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार एआई बड़ी मात्रा में ओपन सोर्स से सीखते हैं, जो जरूरी नहीं है कि हमेशा सही हों. यह किसी के पूर्वाग्रह भी हो सकते हैं.