क्या है ग्रीडफ्लेशन, जिसकी दुनियाभर में चर्चा है
११ अगस्त २०२३चारों तरफ महंगाई की मार है. आटा, दाल, चावल से लेकर टमाटर तक हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं. दाम बढ़ने की इस प्रक्रिया को इन्फ्लेशन यानी मुद्रास्फीति कहते हैं. लेकिन जब दाम अपने आप ना बढ़ें बल्कि लालचवश जानबूझकर बढ़ाए जाएं, तो उसे एक नया नाम दिया गया है, ग्रीडफ्लेशन.
पिछले एक साल से दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अपने-अपने यहां महंगाई कम करने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं. इस वृद्धि का असर यह हुआ है कि अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार धीमी पड़ गयी है. लेकिन बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्याज दरें बढ़ने के बाद इन्फ्लेशन तो कम हुई है पर दाम कम नहीं हो रहे हैं क्योंकि बड़ी कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए दाम जानबूझ कर बढ़ा रही हैं. इसे ग्रीडफ्लेशन नाम दिया गया है.
कहां से आया ग्रीडफ्लेशन शब्द?
अभी यह शब्द सिर्फ मीडिया में सुनाई दे रहा है और किसी शब्दकोश में इसकी परिभाषा को जगह नहीं मिली है. इसकी शुरुआत 2021 में हुई थी जब अमेरिका के मसैचुसेट्स विश्वविद्यालय की अर्थशास्त्री इजाबेला वेबर ने एक नया सिद्धांत दिया, जिसे उन्होंने ‘सेलर्स इन्फ्लेशन' यानी विक्रेताओं द्वारा तैयार मुद्रास्फीति कहा था. अपने शोध में वेबर ने कॉरपोरेट घरानों और बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते मुनाफे पर चर्चा की.
जल्दी ही यह सिद्धांत शोधपत्रों से राजनीतिक भाषणों में पहुंच गया. हालांकि बहुत से अर्थशास्त्रियों ने इस सिद्धांत को कॉन्स्पिरेसी थ्योरी बताते हुए खारिज भी किया लेकिन 2023 में यह सिद्धांत ‘ग्रीडफ्लेशन' के रूप में जगह-जगह सुनाई और दिखाई देने लगा. अमेरिका के डेमोक्रैट सांसदों ने इस शब्द का खासा इस्तेमाल किया और महंगाई के लिए बड़ी कंपनियों को जिम्मेदार बताया.
गरीबी के खिलाफ काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम के लिए एक लेख में संस्था के नीति सलाहकार एलेक्स मेटलैंड ने जनवरी 2023 में लिखा कि ‘ग्रीडफ्लेशन का युग' शुरू हो गया है. मेटलैंड लिखते हैं कि पहले कोविड महामारी और फिर यूक्रेन युद्ध के कारण बीते दो साल में सप्लाई और डिमांड के दबाव के कारण कीमतों में वृद्धि तो हुई है लेकिन एक और कारण ने कीमतों को ऊपर की ओर धेकला है जिसे कुछ लोगों ने ग्रीडफ्लेशन का नाम दिया है.
ग्रीडफ्लेशन को समझाते हुए मेटलैंड लिखते हैं, "विचार बहुत साधारण है. जब सप्लाई और डिमांड के दबाव के कारण वैश्विक स्तर पर चीजों के दाम बढ़े तो कॉरपोरेशंस ने अपने दाम बढ़ा दिये. लेकिन उन्होंने कीमतों में वृद्धि सिर्फ अपनी बढ़ी हुई लागत कम करने के लिए नहीं की. उन्होंने युद्ध और महामारी के बहाने अपना मार्जिन और मुनाफाबढ़ाया. आपको याद होगा जब तेल की कीमतें आसमान पर चली गयी थीं. उसके कुछ महीने बाद थोक बाजार में तेल की कीमतें घट गयीं लेकिन खुदरा कीमतों में कोई ज्यादा कमी नहीं आयी.
मेटलैंड ऊर्जा और खाद्य क्षेत्रों का उदाहरण देते हुए कहते हैं, "अमेरिका में चार कंपनियां मांस की 55 से 85 प्रतिशत तक बिक्री पर नियंत्रण रखती हैं. छह तेल महाकंपनियों का अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा उत्पादन पर कब्जा है. अमेरिका, युनाइटेड किंग्डम और ऑस्ट्रेलिया में हुए अध्ययन बताते हैं कि कॉरपोरेट मुनाफा मुद्रास्फीति की वजह से क्रमशः 54, 59 और 60 फीसदी बढ़ा है.”
सच में है ग्रीडफ्लेशन?
अर्थशास्त्री लिंडी ओवेंस ने कॉरपोरेट मुनाफे का अध्ययन किया है. वह लिखती हैं कि कीमतों में इस वृद्धि को ऐसे पल के रूप में देखा जा सकता है जब ‘मुनाफा अधिकतम हो जाए और उसके लिए मौके भी उपलब्ध हो जाएं.'
नॉर्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी के विलियम डिकिंस ग्रीडफ्लेशन को एक राजनीतिक मजाक कहते हैं. पब्लिक पॉलिसी के विशेषज्ञ डॉ. डिकिंस ने एक लेख में लिखा कि अमेरिका में जून में मुद्रास्फीति 40 साल के सर्वोच्च स्तर पर (9.1 फीसदी) पहुंची तो इसका लालच से कोई ज्यादा लेना देना नहीं था.
कई देशों के केंद्रीय बैंकों के लिए सलाहकार काम करने वाले डिकिंस के मुताबिक, "जब सप्लाई कम होती है तो कोई भी अर्थशास्त्री ऐसा होने की उम्मीद करेगा. सही माहौल में बाजार तक जाने वाली वस्तुओं की मात्रा में छोटा बदलाव भी बाजार भाव में बड़े बदलाव की वजह बन सकता है.”
एक इंटरव्यू में डिकिंस से जब सीधा सवाल पूछा गया कि क्या ग्रीडफ्लेशन के कारण कीमतें बढ़ रही हैं, तो उन्होंने कहा, "हो सकता है ऐसा कुछ थोड़ा बहुत चल रहा हो लेकिन आमतौर पर ऐसी कोई साजिश नहीं है कि उद्योगपति उपभोक्ताओं का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.”
डिकिंस के शब्दों में इस मंहगाई के पीछे जो मुख्य वजह हैं उनमें एक बात है मालवाहक जहाजों के रास्ते में आने वालीं दिक्कतें, जिनके कारण सामान नहीं पहुंच पा रहा है. वह कहते हैं कि ऐसे में कीमतें बढ़ती हैं और मुनाफे में सबसे ज्यादा वृद्धि सबसे बड़ी कंपनियों को मिलती है क्योंकि उनके सामने ज्यादा कॉम्पिटिशन नहीं होता.
वैसे कुछ कंपनियों ने स्वीकार भी किया है कि उन्हें हाल की महंगाई का फायदा हुआ है. अकाउंटेबल यूएस नाम की एक संस्था ने कुछ महीने पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें इस बात का जिक्र था कि अमेरिका की सबसे बड़ी 500 कंपनियों में से कुछ ने मुद्रास्फीति का फायदा होने के बात स्वीकार की है.
अकाउंटेबल यूएस का अध्ययन दिखाता है कि अमेरिका की सबसे बड़ी उपभोक्ता कंपनियों का मुनाफा साल दर साल बढ़ा है और उनके हिस्सेदारों को अरबों डॉलर की कमाई हुई है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि एसएंडपी 500 कंपनियों ने 564.6 अरब डॉलर का लाभांश अपने शेयर धारकों को दिया है.