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महाराष्ट्र: अब क्या भविष्य है विपक्षी एकता का

३ जुलाई २०२३

अजित पवार की बगावत से एनसीपी और महा विकास अघाड़ी को बड़ा झटका लगा है. महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम ने एमवीए और अन्य विपक्षी दलों की एकता के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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अजित पवार
अजित पवारतस्वीर: Anshuman Poyrekar/Hindustan Times/Imago

अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के विधायकों के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो जाने को सिर्फ महाराष्ट्र नहीं बल्कि पूरे देश में विपक्ष के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि स्थिति अभी भी पूरी तरह से साफ नहीं हुई है. विधान सभा में एनसीपी के कुल 53 विधायक हैं और अजित पवार ने दावा किया है कि सभी उनके साथ हैं.

लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पवार ने जब राज्य सरकार में मंत्रिपद की शपथ ली, उस समय वहां एनसीएपी के सिर्फ 16 या 17 विधायक मौजूद थे. इनमें से शपथ सिर्फ नौ विधायकों ने ली. लेकिन दल-बदल विरोधी कानून के तहत अगर पवार अपने साथ एनसीपी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई विधायकों (यानी 36) का समर्थन नहीं दिखा पाए तो वो और उनका साथ दे रहे सभी विधायक अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं.

पड़ेगी अदालत की जरूरत?

एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने मीडिया को बताया कि पार्टी ने विधान सभा स्पीकर को इन नौ विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका भेज दी है. पार्टी ने चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी दे दी है. साथ ही पार्टी ने जीतेन्द्र अव्हाड को चीफ व्हिप भी नियुक्त कर दिया है, जिसके बाद अब पार्टी के सभी विधायक उनके निर्देश मानने के लिए बाध्य होंगे.

भारत: क्या निरंकुश हो रहा है लोकतंत्र

अभी तक किसी भी पक्ष ने न्यायपालिका के दरवाजे नहीं खटखटाये हैं, लेकिन पिछले चार सालों के घटनाक्रम को देख कर ऐसा लगता नहीं है कि कोई न कोई पक्ष न्यायपालिका की शरण में जाने से रुक पाएगा. 2019 में राज्य में हुए विधान सभा चुनावों के बाद काफी उठापटक हो चुकी है और कई बार न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ा है.

बीते दो दिनों के घटनाक्रम की ही तरह जून 2022 में शिवसेना दो धड़ों में बंट गई थी, जिसके बाद उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार गिर गई और शिवसेना के दूसरे धड़े के नेता के रूप में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बना ली. उसके बाद ठाकरे की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गईं.

बीजेपी पर सवाल

इनमें से एक में उन्होंने विश्वास मत के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने के आदेश को चुनौती दी थी. मई 2023 में इस याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के उस फैसले को गलत बताया था और कहा था कि शिंदे गुट के विधायकों के अनुरोध राज्यपाल द्वारा फैसला लेना गलत था क्योंकि राज्यपाल के पास यह निर्णय करने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं थे कि उद्धव ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया है.

इस समय यह कहा नहीं जा सकता कि मौजूदा घटनाक्रम किस तरफ बढ़ेगा लेकिन विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी सत्ता में बने रहने के लिए बार बार कई राज्यों में विपक्ष को तोड़ने का काम कर रही है. पिछले कुछ सालों में इसी तरह का घटनाक्रम मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी देखने को मिला है.

आरजेडी के सांसद मनोज झा ने कहा है कि बीजेपी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों के नेताओं को डराने के लिए कर रही है और जेल जाने के दबाव में उन्हें बीजेपी का साथ देने पर मजबूर कर रही है.

अन्य विपक्षी पार्टियां भी बीजेपी पर इस तरह के आरोप लगा रही हैं. देखना होगा कि एनसीपी में भी शिव सेना की तरह विभाजन हो जाएगा या बगावत करने वाले विधायक अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे.