अंतरिक्ष से शांति का संदेश लिए लौटा पहला अफगान
१३ अगस्त २०२१बचपन में अब्दुल अहद मोहम्मद ने उड़ने का सपना देखा था लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे. उनका जन्म 1959 में काबुल के दक्षिण में एक सुदूर गांव सरदेह में हुआ था. वह 1988 में रूस के मीर अंतरिक्ष स्टेशन पर पहला और एकमात्र अफगान अंतरिक्ष यात्री बन गए.
मोहम्मद अब जर्मनी के नागरिक बन गए हैं. उनकी उम्र 62 साल हो गई है. वे पिछले करीब 30 सालों से श्टुटगार्ट शहर में रह रहे हैं. उन्होंने टेलीकांफ्रेंस के जरिए डीडब्ल्यू से बात की. मोहम्मद ने कहा कि हाई स्कूल में जाने के बाद उन्होंने पहली बार अंतरिक्ष का फुटेज देखा था. साथ ही, वे उस समय टेलिविजन देखने और समाचार पत्र पढ़ने लगे थे.
जब वह 1978 में काबुल पॉलिटेक्निक संस्थान में पढ़ाई कर रहे थे, तब सोवियत-गठबंधन कम्युनिस्टों ने अफगानिस्तान पर अधिकार कर लिया था. मोहम्मद को क्रास्नोडार और कीव मिलिट्री एविएशन स्कूलों में सैन्य शिक्षा के लिए यूएसएसआर भेजा गया था.
मोहम्मद का एक छोटा सा कदम
घर वापस लौटने के बाद, मोहम्मद मॉस्को में प्रतिष्ठित यूरी गगारिन वायु सेना अकादमी में चुने जाने से पहले अफगान वायु सेना में शामिल हो गए थे. तीन साल बाद वह गैर-सोवियत देशों के पुरुषों को अंतरिक्ष में भेजने वाले यूएसएसआर कार्यक्रम इंटरकोस्मोस में भाग लेने के लिए 400 वॉलंटियर के एक समूह के बीच चुने गए आठ लोगों में से एक थे.
मोहम्मद याद करते हुए बताते हैं, "सीरिया, मंगोलिया या वियतनाम से लेकर हर जगह के लोगों से मैं मिला.” मीर अंतरिक्ष स्टेशन के नौ दिनों के मिशन के लिए सोयूज चालक दल में शामिल होने के लिए उन्हें अफगान की तरफ से चुना गया था.
पहले ऐसा था अफगानिस्तान
वह कहते हैं, "कई वर्षों की पढ़ाई और तैयारी के बावजूद जब तक आप अंतरिक्ष यान में प्रवेश नहीं करते हैं, तब तक आप नहीं जानते हैं कि अंतरिक्ष में जाने का आपका सपना आखिरकार सच हो जाएगा.”
29 अगस्त 1988 की सुबह कजाख्स्तान के बैकोनूर कॉस्मोड्रोम में यूक्रेनी व्लादिमीर ल्याखोव और रूसी वालेरी पॉलाकोव के साथ मोहम्मद ने पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया.
मोहम्मद का शांति का संदेश
उनका मिशन आसान लग रहा था: मीर अंतरिक्ष स्टेशन के लिए डॉक, "कुछ एस्ट्रोफिजिकल, बायोलॉजिकल और मेडिकल एक्सपेरिमेंट" का संचालन करें और सुरक्षित रूप से घर लौट आएं.
मोहम्मद अपने साथ अफगानिस्तान का झंडा और कुरान की दो प्रतियां ले गए थे. हालांकि "अंतरिक्ष में पहला मुस्लिम" होने का खिताब तीन साल पहले ही सऊदी सुल्तान बिन सलमान अल सऊद ने अपने नाम कर लिया था. इन्होंने एक अमेरिकी दल के साथ अंतरिक्ष की यात्रा की थी. इसके बाद दूसरे मुसलमान के तौर पर सीरिया के रहने वाले मोहम्मद फारिस और तीसरे के तौर पर अजरबैजान के मूसा मनारोव, मोहम्मद से पहले अंतरिक्ष में जा चुके थे.
11 सितंबर के बाद ऐसे बदली दुनिया
मोहम्मद बताते हैं, "अंतरिक्ष से आप चीजों को बहुत अलग नजरिए से देखते हैं. जब आप इस धरती को देखते हैं, तो आपका मन नई भावनाओं से भर जाता है. आप कोई देश या सीमा नहीं देखते हैं, आप केवल पृथ्वी देखते हैं, और यह सब आपका घर है.”
कक्षा में रहते हुए उन्होंने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह के साथ फोन पर बात की थी. अंतरिक्ष पहुंचे इस पहले अफगानी नागरिक का संदेश था, "अपने पड़ोसी का हाथ थाम लो, अपनी बाहें फैला दो. आइए बातचीत के जरिए अपनी समस्याओं का हल करें.”
लौटने के दौरान उथल-पुथल
अफगानिस्तान में पूरी तरह अराजकता का माहौल बन गया था. अन्य देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान और सऊदी अरब के समर्थन से अफगान प्रतिरोध आंदोलन ने देश में सोवियत कब्जे के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी थी. मोहम्मद के पांवों से 400 किलोमीटर नीचे भयंकर शीत युद्ध लड़ा जा रहा था.
अंतरिक्ष में एक मिशन तब तक पूरा नहीं होता जब तक चालक दल सुरक्षित घर वापस नहीं आ जाता है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है. मीर से अलग होने के कुछ ही समय बाद, सोयूज कैप्सूल में तीन लोगों को पता चलता है कि सहायक इंजन पृथ्वी के वायुमंडल तक पहुंचने के लिए पर्याप्त उर्जा पैदा नहीं कर सकता है. इसके बाद मोहम्मद ने मैनुअल तरीके से कंट्रोल करने का सुझाव दिया.
मोहम्मद याद करते हुए कहते हैं, "जमीनी नियंत्रण से हमारा संपर्क टूट गया था इसलिए हम उतर नहीं सके. हमने 24 घंटे और इंतजार करने का फैसला किया जब तक कि उन्हें हमारे लिए दूसरी जगह नहीं मिल जाती. मुख्य समस्या ऑक्सीजन थी. हमारे पास जितनी ऑक्सीजन था वह तीनों के लिए पर्याप्त नहीं थी.”
तीन दशक से अधिक समय के बाद, मोहम्मद को याद है कि वे लोग हादसे से "बिल्कुल दो सेकेंड दूर" थे. उन्होंने कहा, "अगर हमने ऑटोपायलट को बंद नहीं किया होता, तो इंजन समय पर बंद हो जाते और हम कभी भी वायुमंडल में नहीं पहुंच पाते.” वे लगभग नौ दिनों की उड़ान के बाद 6 से 7 सितंबर की मध्यरात्रि से कुछ समय पहले कजाख स्टेपी में उतरे.
काबुल में, हवाई अड्डे पर एक स्वागत समारोह शुरू हुआ, जहां से अंतरिक्ष यात्री को शहर भर में ले जाया गया और अफगानों की भीड़ ने जयकारा लगाकर स्वागत किया. हालांकि, काबुल पर तोपखाने के तूफान ने सभी को याद दिलाया कि एक युद्ध अभी भी चल रहा था.
जब सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने 1989 में अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों की वापसी का आदेश दिया, तो सरकारी बलों और प्रतिद्वंदी अफगान गुटों के बीच लड़ाई तेज हो गई.
घर से दूर एक नई जिंदगी
मोहम्मद को नागरिक उड्डयन का उप-मंत्री नियुक्त किया गया था, लेकिन वे इस पद पर 6 महीने से ज्यादा नहीं रहे. 1992 में, विभिन्न मुजाहिदीन गुटों के बीच गृहयुद्ध शुरू हुआ. इस दौरान पूर्व अंतरिक्ष यात्री भारत की व्यापारिक यात्रा पर थे और फिर अफगानिस्तान नहीं लौटे. उनका अगला पड़ाव जर्मनी था, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण का अनुरोध किया.
वह कहते हैं, "देश को बांटा गया था. हर सेनापति के लिए एक प्रांत. सभी एक-दूसरे से लड़ते हुए, अपने-अपने विदेशी समर्थकों के आदेशों का पालन करते हुए, अफगानिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप किया. उन्होंने देश को बर्बाद कर दिया. कई लोग मारे गए.”
तस्वीरों मेंः आतंकवाद की बलि चढ़ीं ये धरोहरें
मोहम्मद अब सेवानिवृत होने वाले हैं. वे स्टुटगार्ट में एक कंपनी में अकाउंटेंट का काम करते हैं. यहां वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं. समय-समय पर उन्हें सम्मेलन में बुलाया जाता है. उनका कहना है कि यह उनके पिछले जीवन से एकमात्र संबंध है.
वे पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई के निमंत्रण पर अंतरिक्ष में पहुंचने की 25वीं वर्षगांठ मनाने के लिए अप्रैल 2013 में फिर से अफगानिस्तान गए थे. स्वागत समारोह के दौरान उन्होंने फिर से शांति का वही संदेश पढ़ा जो उन्होंने 1988 में अंतरिक्ष से अफगान लोगों को भेजा था. यह आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना तब था.
रिपोर्टः कार्लोस जुरुत्सा