कोरोना काल में क्यों बढ़ रही है कॉन्सपिरेसी थ्योरी
२८ सितम्बर २०२०ब्रिटेन में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और सरकार से लोगों की नाराजगी भी. ऐसे में हाल के दिनों में लंदन में कई प्रदर्शन भी देखे गए, जहां कुछ लोग अपनी आजादी वापस मांग रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो "स्टॉप चाइल्ड ट्रैफिकिंग" के नारे लगा रहे थे. लेकिन कोरोना का बच्चों की तस्करी से क्या लेना देना है? दरअसल ये वे लोग हैं जो खुद को "QAnon" नाम के आंदोलन का हिस्सा मानते हैं और सरकार के खिलाफ किसी भी वजह से हो रहे प्रदर्शनों में जुड़ जाते हैं. वहां ये लोगों को अपने आंदोलन के बारे में बताते हैं और उनसे साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं. ये लोग एक बहुत ही बड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास रखते हैं जिसके अनुसार दुनिया भर के कुछ रईस लोग बच्चों की तस्करी करवा रहे हैं.
QAnon मूवमेंट की शुरुआत अमेरिका में इंटरनेट पर हुई. कई वेबसाइटों पर ऐसी बातें फैलीं कि बच्चों का शोषण करने वाले कुछ रईस लोगों का नेटवर्क चुपचाप बच्चों का अपहरण करवाता है, उनका शोषण करता है और फिर उनके खून का इस्तेमाल कर एक "यूथ सीरम" बनाता है. इस थ्योरी के अनुसार हिलेरी क्लिंटन जैसे दुनिया के कुछ प्रभावशाली लोग बच्चों के खून से बनी इस दवा का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया पर राज करने की कोशिश करते हैं. QAnon समर्थकों का दावा है कि ये रईस लोग एक तरह की खुफिया सरकार चलाते हैं. इसे ये "डीप स्टेट" का नाम देते हैं. इनके अनुसार ये लोग दुनिया भर की और विशेष रूप से अमेरिका की राजनीति को अपने इशारों पर चलाते हैं. डॉनल्ड ट्रंप को ये मसीहा के रूप में देखते हैं जो इस गंदी राजनीति का सफाया करने में लगे हैं.
लेकिन इनका विश्वास यहीं तक सीमित नहीं है. कई बार कई अन्य कॉन्सपिरेसी थ्योरी भी इसमें जुड़ जाती हैं. लंदन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक डायलॉग के जैकब गूल का कहना है, "क्यू एनॉन पनीर जैसा है. आप इसमें जो भी मसाला डाल दें, ये उसके जैसा हो जाता है." मिसाल के तौर पर हाल के दिनों में ये उन प्रदर्शनकारियों के साथ जुड़ गए हैं जिनका मानना है कि कोरोना से निपटने के सरकारों के प्रयास धोखा हैं. ये लोग मानते हैं कि टीकाकरण के जरिए दुनिया भर की सरकारें जनसंख्या को नियंत्रित करना चाह रही हैं. टीकाकरण विरोधी और अतिदक्षिणपंथी इस थ्योरी का समर्थन करते हैं.
आंकड़े दिखाते हैं कि कोरोना महामारी ने क्यू एनॉन मूवमेंट को और हवा दे दी. इस साल मार्च से जून के बीच ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन लोगों ने खूब प्रचार किया. यही वजह है कि अब अमेरिका के बाहर भी इसे काफी समर्थक मिल गए हैं. अमेरिका के बाद दूसरा नंबर है ब्रिटेन का. इसके बाद कनाडा, फिर ऑस्ट्रेलिया और फिर जर्मनी. गूल का कहना है कि जर्मनी में इस आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता हैरान करती है क्योंकि इंटरनेट में इससे जुड़ी सभी सामग्री अंग्रेजी में है. जर्मनी के जानेमाने गायक जेवियर नायडू और स्टार शेफ अटिला हिल्डमन कोरोना लॉकडाउन के दौरान खुल कर क्यू एनॉन आंदोलन के समर्थन में आए. सिलेब्रिटियों का इस सूची में जुड़ जाना समर्थकों की संख्या बढ़ाने के लिए काफी था.
इस आंदोलन की शुरुआत अक्टूबर 2017 में हुई जब Q नाम के एक इंटरनेट यूजर ने कुछ कॉन्सपिरेसी थ्योरी फैलानी शुरू की. इस व्यक्ति ने लिखा कि वॉशिंगटन के एक पिज्जा रेस्तरां में बच्चों का शोषण किया जा रहा था और इस मामले के तार हिलेरी क्लिंटन से जुड़ते थे. हालांकि यह अफवाह 2016 के चुनाव अभियान के दौरान से ही चल रही थी लेकिन इस व्यक्ति के पोस्ट करने के बाद यह वायरल हो गई क्योंकि इस व्यक्ति ने लिखा कि वह खुफिया एजेंसी से नाता रखता है और उसके पास गोपनीय सूचना है जिसके अनुसार हिलेरी क्लिंटन की इस मामले में गिरफ्तारी तय है. हालांकि ऐसा कभी हुआ नहीं लेकिन यह व्यक्ति अमेरिका में बेहद लोकप्रिय हो गया.
इसके बाद से Q की और भी कई कॉन्सपिरेसी थ्योरी आई और लोगों ने उन पर विश्वास भी किया. जानकारों का कहना है कि इसे बकवास कह कर खारिज जरूर किया जा सकता है लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इसके समर्थक लगातार बढ़ते जा रहे हैं. ये लोग ना केवल ब्रेक्जिट से जुड़े प्रदर्शनों में, लॉकडाउन के खिलाफ प्रदर्शनों में और बच्चों की तस्करी के खिलाफ प्रदर्शनों में नजर आते हैं, बल्कि 2019 में ये इतने उग्र हो गए थे कि एफबीआई ने इन्हें संभावित आतंकवादी करार दिया था.
इसी तरह फरवरी 2020 में जर्मनी के हनाउ शहर में जिस व्यक्ति ने गोलियां चला कर 11 लोगों की जान ले ली, उसके पास मिले कागजों ने भी जिस तरह की उसकी सोच उजागर की, वह क्यू एनॉन से बहुत मेल खाती है. इस बीच फेसबुक और ट्विटर ऐसे कई अकाउंट ब्लॉक कर चुके हैं. लेकिन गूल बताते हैं कि सोशल मीडिया के एल्गोरिदम ही कुछ इस तरह से बने होते हैं कि वे कॉन्सपिरेसी थ्योरी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं और लोगों में इसके भरोसे को बढ़ाते हैं. उनके अनुसार इसे रोकने के लिए सरकारों को लोगों को जागरूक करना होगा लेकिन कोरोना काल में ऐसा करना काफी मुश्किल होगा.
रिपोर्ट: आई आइजेल, एम बेनेक/आईबी
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