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परमाणु बम बनाने में अमेरिका से क्यों पिछड़ा नाजी जर्मनी

फ्रेड श्वालर
१९ अगस्त २०२३

नाजी जर्मनी में परमाणु बम बनाने की कोशिशों की खबरें बाहर आते ही दुनिया में खलबली मचना लाजमी था लेकिन बम की खतरनाक रेस में अमेरिका ने जर्मनी को पछाड़ दिया. इसके पीछे कईं वजहे रहीं.

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ब्रिटेन में परमाणु बम का विरोध
तस्वीर: Peter Macdiarmid/Getty Images

 1938 में जर्मनी के दो रसायन विज्ञानियों ओटो हान और फ्रित्स स्ट्रास्मन ने न्यूक्लियर फिजन यानी परमाणु विखंडन की खोज की. विखंडन वह प्रतिक्रिया है जिसमें एटम या परमाणु का केंद्र दो या उससे अधिक छोटे केंद्रों में बंट जाता है. इससे बेहत ताकत के साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है. इस खोज के बाद, भौतिक विज्ञानियों ने कहा कि इस ऊर्जा का इस्तेमाल करके इतना शक्तिशाली बम बनाया जा सकता है कि एक बार में पूरा शहर खत्म हो जाए. इसके तुरंत बाद जर्मन वैज्ञानिकों ने परमाणु बम बनाने की परियोजना पर काम शुरू कर दिया.

जर्मनी के मजबूत औद्योगिक ढांचे और सेना की सहायता से यूरानफराइन (यूरेनियम क्लब) ने दुनिया के कुछ शीर्ष परमाणु विशेषज्ञों को नियुक्त किया. यह परियोजनापूरी तरह गुप्त थी, लेकिन नाजी जर्मनी में उत्पीड़न की वजह से दूसरी जगहों पर भाग रहे वैज्ञानिकों के जरिए यह बात फैल गई. इनमें अल्बर्ट आइंस्टाइन भी शामिल थे जिन्होंने 1939 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट को पत्र लिखकर इस बारे में आगाह किया था.

यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट का कंट्रोल सेंटर
वर्नर हाइजेनबर्ग के प्रयोगात्मक न्यूक्लियर रिएक्टर ने परमाणु ऊर्जा विकसित करने का रास्ता दिखायातस्वीर: Gleb Garanich/REUTERS

नाजियों के गुप्त हथियार विकसित करने की बात से दुनिया भर में चिंता और डर का माहौल कायम हो गया. इसकी प्रतिक्रिया में रॉबर्ट ओपेनहाइमर के नेतृत्व में अमेरिकाने 1942 में परमाणु बम बनाने का कार्यक्रम शुरू किया. इसमें यूरेनियम और प्लूटोनियम के तत्वों का इस्तेमाल करके विखंडन वाले बम बनाने के तरीकों पर शोध हुआ.

अमेरिकी सरकार नाजी जर्मनी के गुप्त हथियार बनाने की खबर से चिंता और डर में थी. इसलिए उसने इस परियोजना के लिए काफी ज्यादा वित्तीय सहायता दी. ओपेनहाइमर और उनकी टीम को अपने पहले परमाणु हथियार का सफलतापूर्वक परीक्षण करने में महज तीन साल लगे. इसके बाद, पहला "लाइव फायर" परमाणु हथियार तीन सप्ताह बाद 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर गिरा.

फार्म हॉल रिकॉर्डिंग

जर्मन परमाणु अनुसंधान कार्यक्रम के तत्कालीन प्रमुख वर्नर हाइजेनबर्ग ने जब हिरोशिमा के बारे में खबर सुनी तो उन्होंने कहा, "मुझे पूरी बात पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं है.”

अन्य जर्मन भौतिकविदों को भी हिरोशिमा की खबर पर विश्वास नहीं हो रहा था. अधिकांश का मानना था कि यह जापानियों पर आत्मसमर्पण का दबाव डालने के लिए किया गया एक धोखा था. ओटो हान ने कहा था, "मैंने नहीं सोचा था कि ऐसा अगले 20 वर्षों तक संभव होगा.”

1927 में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस
1927 में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस तस्वीर: Darchivio/opale.photo/picture alliance

उस समय हाइजेनबर्ग और जर्मन परियोजना पर काम कर रहे नौ अन्य वरिष्ठ परमाणु भौतिकविदों को अंग्रेजों के मालिकाना हक वाले फार्म हॉल नामक एक जगह में नजरबंद करके रखा गया था. नाजी परमाणु परियोजनाओं के रहस्यों को जानने के लिए अंग्रेजों ने इन वैज्ञानिकों की बातों और उनकी गतिविधियों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया था.

हाइजेनबर्ग और हान की बातों से यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि परमाणु हथियार बनाने के मामले में जर्मनी कितना पीछे था. जर्मनी के हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के इतिहासकार ताकुमा मेल्बेर ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब तक फार्म हॉल से जुड़ी गतिविधियों की खबर अमेरिका तक नहीं पहुंची थी, तब तक वह यूरानप्रोजेक्ट को लेकर यह अनुमान लगा रहा था कि जर्मनी इस मामले में काफी आगे है.”

खत्म कर दिया गया परमाणु कार्यक्रम

जब तक मैनहैटन परियोजना चालू हुई, तब तक जर्मन परमाणु कार्यक्रम खत्म हो चुका था. जर्मन शोधकर्ताओं को ऐसा लगा था कि परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी आइसोटोप को अलग करने में कम से कम पांच साल लगेगा. वे कभी भी सफलतापूर्वक चेन रिएक्शन नहीं करा पाए और उनके पास यूरेनियम को बेहतर बनाने का कोई तरीका नहीं था.

जुलाई 1942 में परमाणु हथियार कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया और इस अनुसंधान को जर्मनी के नौ अलग-अलग संस्थानों में विभाजित कर दिया गया था. मेल्बेर ने डीडब्ल्यू को बताया, "1942 से पहले तक यह सैन्य परियोजना थी, लेकिन फिर यह सिर्फ सिविल परियोजना बन गई.” इसके बाद, मुख्य लक्ष्य भी परमाणु हथियार बनाने से बदलकर परमाणु रिएक्टर के निर्माण पर केंद्रित हो गया.

हाइजेनबर्ग ने अपने शोध को जर्मनी के हाइगरलोख में मौजूद गुफानुमा प्रयोगशाला में स्थानांतरित कर दिया. यहां उन्होंने और उनकी टीम ने प्रयोग के तौर पर एक परमाणु रिएक्टर बनाया जिसमें तार से लटकते हुए यूरेनियम क्यूब पानी भरे टैंक में डूबे हुए थे. हालांकि, इस रिएक्टर ने कभी काम नहीं किया, क्योंकि चेन रिएक्शन के लिए पर्याप्त मात्रा में यूरेनियम मौजूद नहीं था.

इसके बावजूद, हाइजेनबर्ग परमाणु रिएक्टर बनाने के करीब पहुंच चुके थे. वैज्ञानिक अब मानते हैं कि अगर रिएक्टर में 50 फीसदी से अधिक यूरेनियम होता, तो हाइजेनबर्ग दुनिया का पहला परमाणु रिएक्टर बना सकते थे.

आखिर क्यों पिछड़ा जर्मनी

बड़ा सवाल यह है कि सबसे पहले परमाणु कार्यक्रम शुरू करने और प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों के होने के बावजूद जर्मनी क्यों पिछड़ गया?  

इसके कई जवाब हैं. जर्मनी अपने वैज्ञानिकों का खून बहा रहा था. लिज माइटनर जैसे कई यहूदी और पोलिश वैज्ञानिकों के साथ-साथ, हान और स्ट्रासमन की परमाणु विखंडन की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक यहूदी भौतिक विज्ञानी उत्पीड़न की वजह से भाग गए. इनमें से कई शरणार्थी के तौर पर यूके और अमेरिका पहुंचे और मैनहैटन परियोजना पर काम किया. वहीं कई अन्य वैज्ञानिकों को जर्मन सेना में शामिल कर दिया गया.

मेल्बेर ने कहा कि युद्ध के दबाव की वजह से जर्मनी में अनुसंधान के लिए जरूरी संसाधनों, जैसे कि बेहतर यूरेनियम की कमी हो गई थी. परमाणु रिएक्टर को ठंडा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी. साथ ही, परमाणु कार्यक्रम के लिए राजनीतिक सहायता का भी अभाव था.

उन्होंने कहा, "हिटलर इस कार्यक्रम को पूरी तरह समझ नहीं पाया और उसने 1942 में इसे सहायता देना कम कर दिया. ऐसे में इस कार्यक्रम के लिए संसाधनों का अभाव हो गया.” वहीं दूसरी ओर अमेरिकी मैनहैटन परियोजना में करीब पांच लाख लोग कार्यरत थे, जो अमेरिकी कार्यबल का एक फीसदी हिस्सा था. अमेरिकी सरकार ने अपनी परियोजना के लिए उस समय 2 अरब डॉलर की सहायता दी थी, जो आज के समय में 24 अरब डॉलर के बराबर है.

अगर जर्मन परमाणु कार्यक्रम की बात करें, तो यूरानफराइन और उसके बाद की परियोजनाओं में एक हजार से भी कम वैज्ञानिक शामिल थे और बजट महज 80 लाख राइषमार्क था, जो आज के समय के 2.4 करोड़ डॉलर के बराबर है.

रिएक्टर बनाओ बम नहीं

फार्म हॉल टेप से जर्मनी की विफलता का एक और कारण भी पता चलता है. दरअसल, वैज्ञानिक खुद नैतिक तौर पर परमाणु बम बनाने के विरोध में थे और उन्होंने गुप्त रूप से बम बनाने के प्रयास को विफल कर दिया था.

उन वैज्ञानिकों में से एक कार्ल फ्रीडरिश फॉन वाइत्सैकर ने कहा, "मेरा मानना है कि सभी भौतिक विज्ञानी चाहते थे कि सैद्धांतिक रूप से ऐसा करना सही नहीं है. अगर हम सभी चाहते कि जर्मनी युद्ध जीत जाए, तो हम परमाणु कार्यक्रम में सफल हो गए होते.” हाइजेनबर्ग भी परमाणु बम के विचार के खिलाफ थे.

फार्म हाल के जर्मन वैज्ञानिकों ने यह आशा व्यक्त की थी, "इतिहास में दर्ज किया जाएगा कि अमेरिकीयों और अंग्रेजों ने इस भयानक हथियार को विकसित किया और जर्मनी ने एक इंजन बनाया.” हालांकि, विडंबना यह है कि आज 80 साल बाद मौजूदा जर्मनी अमेरिकी परमाणु हथियारों को अपने देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानता है, लेकिन परमाणु ऊर्जा का जोरदार विरोध करता है.

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