पाकिस्तान: जबरन गुमशुदगी की घटनाओं से उठते सवाल
२ सितम्बर २०२२11 मई 2022 की दोपहर में पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित एरिड एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के छात्र फिरोज बलोच ने अपनी पुस्तकें लीं और विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की ओर गए. लेकिन वह पुस्तकालय नहीं पहुंचे और गायब हो गए. वो कहां हैं, यह अब तक रहस्य बना हुआ है.
उनके चचेरे भाई और साथ रहने वाले रहीम बलोच बताते हैं कि शाम को वक्त वो आमतौर पर आ जाते थे लेकिन उस दिन नहीं आए. रहीम डीडब्ल्यू को बताते हैं, "पहले मैंने उन्हें वॉट्सऐप पर मेसेज भेजा, लेकिन मेसेज उन्हें मिला नहीं. मैंने उन्हें फोन किया पर उनका फोन स्विच ऑफ था. मुझे लगा कि शायद फिरोज का फोन डिस्चार्ज हो गया हो और वो जल्दी हॉस्टल में आ जाएगा.”
रहीम बताते हैं, "जैसे-जैसे समय बीतता गया मैं और ज्यादा चिंतित होने लगा. मैंने उन्हें बलूचिस्तान के तुर्बत स्थित उनके घर पर फोन किया कि उनके मां-बाप का उनसे कोई संपर्क हुआ या नहीं, लेकिन उन लोगों को भी फिरोज के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. हम पूरी रात फिरोज के इंतजार में जगते रहे कि शायद वो आ जाए. अगले दिन हमने विश्वविद्यालय प्रशासन को सूचित करने की कोशिश की कि फिरोज नहीं मिल रहा है लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. हम गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कराने पास के पुलिस स्टेशन गए. लेकिन पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया और कहा कि फिरोज की गुमशुदगी रिपोर्ट वही दर्ज करा सकता है जो उसका सगा संबंधी हो.”
फिरोज के पिता नूर बख्श बलूचिस्तान में पुलिस विभाग में नौकरी करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्हें जैसे पता चला तो उन्होंने तुरंत एफआईआर दर्ज कराई. बख्श कहते हैं, "12 मई को हमने एफआईआर दर्ज कराई जब रहीम ने हमें बताया कि फिरोज लापता हो गया है.”
वो कहते हैं, "हम लोगों के लिए दिल तोड़ देने वाली खबर थी यह. फिरोज की मां और उसके भाई-बहनों से इस बारे में बताने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी पड़ी. उस दिन के बाद से हम एक भी रात शांति से सो नहीं पाए हैं. मैं और मेरा परिवार पूरी रात जगते हैं, फिरोज को याद करते हैं और उसकी वापसी की दुआ करते हैं. हमारे घर की शांति और खुशी गायब हो गई है. हम लोग बहुत कष्ट में जी रहे हैं और हँसना तक भूल गए हैं. मेरी पत्नी ने जब से फिरोज के लापता होने की खबर सुनी है, तभी सो वो बीमार हो गई है.”
फिरोज बलोच के लापता होने की घटना ने पाकिस्तान में गायब होने वाले लोगों के मामले में जागरूकता पैदा कर दी है. साल 2000 के बाद से, जब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ करके राष्ट्रपति बने थे, तभी से पाकिस्तान में जबरन गायब करने का मुद्दा प्रमुखता से छाया है.
विभिन्न क्षेत्रों के लाखों लोग तब से गायब हो चुके हैं. सबसे ज्यादा गायब होने वाले बलोच और पख्तून समुदाय के हैं. मार्च 2011 में जबरन गायब किए गए लोगों की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया था.
जुलाई 2022 में जारी हुए इस आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 8,696 लोगों के गायब होने के मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें से 6,513 मामले हल किए जा चुके हैं जबकि 2,219 मामले अभी भी लंबित हैं.
आंकड़े सही तस्वीर नहीं दिखाते
इस्लामाबद में मानवाधिकार मामलों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार गौहर महसूद कहते हैं, "ये आंकड़े वास्तविक आंकड़ों की तुलना में बहुत कम हैं. आयोग का गठन 2011 में किया गया था जबकि लोगों के लापता होने की घटनाएं 2000 में ही शुरू हो गई थीं. बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वाह, सिंध जैसे दूर-दराज के लोगों के लिए यह बड़ा मुश्किल है कि वो अपने लोगों के गायब होने की रिपोर्ट आयोग के समक्ष आकर दर्ज कराएं.”
मानवाधिकार आंदोलन पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट यानी पीटीएम के मुताबिक, करीब पांच हजार पख्तून लोग अभी भी लापता हैं. पीटीएम के प्रमुख मंजूर अहमद पश्तीन डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं कि लोगों को अभी भी यह नहीं पता है कि जब उनका कोई अपना लापता हो जाए तो उन्हें कहां और कैसे रिपोर्ट दर्ज करानी है. पीटीएम के सदस्य खुद ही कई इलाकों में जा-जाकर लापता होने वाले लोगों के आंकड़े जुटा रहे हैं. पश्तीन पाकिस्तानी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों पर आरोप लगाते हैं कि उन लोगों को इस काम को करने से रोका जाता है.
वो कहते हैं, "सुरक्षा एजेंसियों ने मेरे ऊपर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं और कई स्थान ऐसे हैं जहां मैं और पीटीएम के दूसरे सदस्य जा नहीं सकते हैं. ऐसे में हम लोग उन जगहों के आंकड़े इकट्ठा नहीं कर पा रहे हैं.”
वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स (VBMP) नामक संस्था के मुताबिक अल्पसंख्यक समुदाय के करीब 6,500 लोग ऐसे हैं जिनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.
2019 में बलूचिस्तान सरकार और (VBMP) के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत इस एनजीओ को गुमशुदा लोगों के आंकड़े इकट्ठा करने की अनुमति दी गई. इस समझौते के तहत एनजीओ के लोग गुमशुदा लोगों के परिजनों से मिलकर और सभी चीजों की जांच करके रिपोर्ट दर्ज कराते हैं. VBMP ने हाल ही में इन आंकड़ों को बलूचिस्तान सरकार से साझा करना शुरू किया है.
VBMP के चेयरमैन नसरुल्ला बलोच ने डीडब्ल्यू को बताया, "2019 और 2020 ऐसे साल थे जब रिपोर्ट किए गए मामलों की तुलना में तलाश किए गए लोगों की संख्या ज्यादा थी और यह बात काफी राहत देने वाली थी. इस दौरान बलूचिस्तान सरकार के सामने 1050 मामले आए थे जिनमें से 650 लोगों को ढूंढ़ लिया गया था. लेकिन 2021 के बाद जबरन गुमशुदा लोगों की संख्या अचानक काफी बढ़ने लगी है.”
नसरुल्ला कहते हैं, "बलोच छात्रों के खिलाफ हालिया कार्रवाई तब शुरू हुई जब अप्रैल 2022 में एक उच्च शिक्षित महिला और दो बच्चों की मां शारी बलोच ने कराची विश्वविद्यालय के बाहर कुछ चीनी नागरिकों को निशाना बनाते हुए खुद को बम से उड़ा लिया था. शारी बलोच एक टीचर थीं और साथ में विश्वविद्यालय की छात्रा भी. इसीलिए सुरक्षा बलों को उन पर शक नहीं हुआ. इस घटना के बाद से देश भर में करीब 300 छात्रों को जबरन गायब कर दिया गया है.”
एरिड एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के एक और छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि कैसे छात्रों के परिवार खौफ में जी रहे हैं. इस छात्र के मुताबिक, "हमारे परिवार वालों ने हमें बलूचिस्तान के बाहर इसलिए भेजा है ताकि वहां सुरक्षा की जो समस्या है, हमें उससे रूबरू न होना पड़े. हालांकि यहां पढ़ाने का खर्च वहन करना उनके लिए बेहद मुश्किल है. वो अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा हमारे ऊपर ही खर्च कर दे रहे हैं ताकि हम सुरक्षित वातावरण में रहें और पढ़ लिखकर कुछ बन सकें. लेकिन हमारे लिए यह बड़ा मुश्किल है कि हम पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित करें या फिर जबरन गुमशुदा होने वाली समस्या से खुद को बचाएं. हमारे साथी छात्र और अध्यापक खुले तौर पर हमारे पहनावे, हमारी संस्कृति का मजाक उड़ाते हैं और हमें ‘आतंकवादियों का साथी' कहकर बुलाते हैं.”
‘सुरक्षा एजेंसियां बलोच लोगों को आतंकित करने की कोशिश कर रही हैं'
रहीम अपने चचेरे भाई के बारे में बताते हैं, "फिरोज बहुत ही रिजर्व और शर्मीला युवक था. उसके बहुत कम दोस्त थे और उसका सोशल सर्कल भी बहुत सीमित था. वह अपना ज्यादातर समय विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में बिताता था. अपनी पढ़ाई को लेकर वह बहुत गंभीर था और भविष्य में टीचर बनना चाहता था. उसे बलूचिस्तान की खराब साक्षरता दर के बारे में पता था और आगे चलकर वह इसे खत्म करने की इच्छा रखता था.”
मानवाधिकार कार्यकर्ता इमरान बलोच कहते हैं, "पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं के बाद सुरक्षा एजेंसियां बलोच छात्रों को आतंकित कर रही हैं. ऐसा वो सिर्फ आतंकवाद से न लड़ पाने की अपनी झुंझलाहट को कम करने के लिए कर रही हैं.”
मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील इमरान मजारी वो व्यक्ति हैं जो फिरोज के मामले को कोर्ट में ले गए हैं. डीडब्ल्यू से इस बारे में बात करते हुए इमरान मजारी कहते हैं कि शुरुआत में फिरोज का केस लाहौर हाईकोर्ट की रावलपिंडी बेंच में दर्ज हुआ था. लेकिन दूसरी सुनवाई के दौरान जज ने केस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसकी जांच के लिए एक आयोग की मांग की गई थी और उसके साथ कोई दूसरी कार्यवाही नहीं हो सकती है. मजारी कहते हैं, "फिलहाल फिरोज का केस इस्लामाबाद हाई कोर्ट में आयोग की निगरानी में है. उम्मीद है कि अगली सुनवाई 7 सितंबर को होगी.”
खुफिया सेवाएं कानून के दायरे में नहीं हैं
पूर्व सांसद और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के पूर्व चेयरमैन अफरासियाब खटक कहते हैं कि उनके पद पर रहते हुए उन्होंने जबरन गुमशुदा लोगों की जांच के लिए एक अलग कमेटी बनाई थी. कमेटी ने पाया कि देश की खुफिया एजेंसियां, खासकर आईएसआई ही जबरन गुमशुदगी में शामिल है.
खटक कहते हैं, "मैंने रक्षा मंत्रालय को सुझाव दिया कि खुफिया सेवाओं को कानून के दायरे में लाने के लिए एक पारदर्शी कानून बनाया जाए. कई बार याद दिलाने के बावजूद रक्षा मंत्रालय ने मेरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. खुफिया एजेंसियां किसी तरह की कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं करना चाहतीं जो कि उनकी शक्ति और उनके दंड से मुक्ति संबंधी अधिकार को खत्म कर दे.” (जहरा काजमी)