क्यों टूटा भारत में 1600 अरब रुपयों की फैक्ट्री का सपना
११ जुलाई २०२३जब से होन हाई टेक्नोलॉजी समूह (फॉक्सकॉन) ने वेदांता के साथ सेमीकंडक्टर बनाने के अपने ज्वाइंट वेंचर (जेवी) के रद्द होने का ऐलान किया है तब से सवाल उठ रहे हैं कि इतनी महत्वपूर्ण योजना आखिर असफल क्यों हो गई.
जेवी का नाम फॉक्सकॉन वेदांता सेमीकंडक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड (वीएफएसएल) है. भारत को सेमीकंडक्टर का वैश्विक केंद्र बनाना एक महत्वाकांक्षी सपना है जिसकी असलियत में तब्दील होने की नींव इस योजना की बदौलत रखी जानी थी.
क्यों टूटी डील
ऐसे में यह समझना जरूरी है कि डील क्यों टूटी, ताकि यह समझा जा सके कि वह सपना अभी भी जीवित है या नहीं. एक नजर फॉक्सकॉन के बयान पर डालिए.
ताइवानी कंपनी का कहना है, "फॉक्सकॉन इस कंपनी से अपना नाम हटा रही है जिस पर अब पूरी तरह से वेदांता का मालिकाना हक हो चुका है. फॉक्सकॉन का इस कंपनी से कोई संबंध नहीं है और इसका शुरुआती नाम बरकरार रखने से भविष्य के हिस्सेदारों को भ्रम हो जाएगा."
फॉक्सकॉन ने यह भी कहा कि यह एक लाभदायक अनुभव रहा जिससे दोनों कंपनियों को भविष्य के लिए मजबूती मिली है. ताइवानी कंपनी ने यह भी कहा कि दोनों कंपनियों के बीच आपसी समझौता हुआ है कि दोनों अब और ज्यादा विविध विकास के अवसर तलाशेंगी, और इसलिए फॉक्सकॉन इस जेवी पर आगे नहीं बढ़ेगी.
इसमें यह बात दिलचस्प है कि जिसे आज तक भारत और ताइवान की दो दिग्गज कंपनियां का ज्वाइंट वेंचर समझा जा रहा था वो अब सिर्फ वेदांता की कंपनी बन कर रह गया है. दरअसल, फॉक्सकॉन की घोषणा से ठीक पहले सात जुलाई को वेदांता ने एक बयान में कहा था कि वो अपनी होल्डिंग कंपनी से इस जेवी का मालिकाना हक लेने जा रही है.
सरकार को थी खबर
जेवी अभी तक वेदांता समूह की ही एक कंपनी ट्विन स्टार टेक्नोलॉजीज लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी थी. शायद इसकी असफलता का संकेत इस बात में भी था कि भारत सरकार ने अभी तक इस जेवी की फैक्ट्री बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी.
एक अज्ञात सरकारी अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि सरकार को पता था कि जेवी ठीक नहीं चल रहा है और यह भी कि कंपनियों में कुछ मतभेद थे. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को कुछ महीने पहले ही यह साफ हो गया था कि फॉक्सकॉन जेवी से निकलने वाली है.
मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा रहा है कि डील के टूटने का एक महत्वपूर्ण कारण वेदांता की वित्तीय हालत थी. रिपोर्टों के मुताबिक कंपनी काफी कर्ज में डूबी हुई है जिसकी वजह से वो सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए आवश्यक तकनीक को खरीदने के लिए संसाधन नहीं जुटा पा रही थी.
हालांकि वेदांता ने अपने बयान में कहा है कि उसने इस फैक्ट्री को बनाने के लिए दूसरे पार्टनर तैयार कर लिए हैं और उसके पास एक जानी मानी इंटीग्रेटेड उपकरण बनाने वाली कंपनी से 40 एनएम के सेमीकंडक्टर बनाने की टेक्नोलॉजी का लाइसेंस भी है.
ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि भारत सरकार ने फॉक्सकॉन से अलग से संपर्क बनाया हुआ है और वह उसे स्वतंत्र रूप से सेमीकंडक्टर बनाने की फैक्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इन रिपोर्टों पर सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बयान दिया है.
क्या भारत बना पाएगा सेमीकंडक्टर?
उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि वैसे तो दो कंपनियां कैसे साझेदारी में प्रवेश करती हैं या निकल जाती हैं इससे सरकार का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन सरल शब्दों में इसका मतलब है कि दोनों कंपनियां उपयुक्त टेक्नोलॉजी पार्टनरों के साथ भारत में अपनी अपनी रणनीतियों पर स्वतंत्र रूप से काम कर सकेंगी.
उन्होंने इस बात की पुष्टि भी की वीएफएसएल के जरिए वेदांता ने हाल ही में 40 एनएम के सेमीकंडक्टर बनाने के लिए एक फैक्ट्री बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिसका सरकार मूल्यांकन कर रही है.
कारण जो भी हो यह साफ है कि सेमीकंडक्टर का वैश्विक केंद्र बनने के भारत के सपने को झटका जरूर लगा है. इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा जा रहा है कि देश में सेमीकंडक्टर उत्पादन शुरू करने की दूसरी योजनाएं भी आगे नहीं बढ़ पाई हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सिंगापुर की कंपनी आइजीएसएस वेंचर ने भी एक प्रस्ताव रखा था लेकिन सरकार की सलाहकार समिति को वह ठीक नहीं लगा और उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
इसके अलावा अबू धाबी की कंपनी नेक्स्ट ऑर्बिट और इस्राएली कंपनी टावर सेमीकंडक्टर के जेवी आईएसएमसी ने भी एक प्रस्ताव दिया था लेकिन उसने अब खुद ही भारत सरकार से कहा है कि वो उस प्रस्ताव पर विचार ना करे.
आईएसएमसी ने कहा है कि टावर सेमीकंडक्टर और अमेरिकी कंपनी इंटेल के विलय की घोषणा हुई थी लेकिन यह विलय अब लंबित पड़ा है, लिहाजा इस प्रस्ताव पर अभी आगे नहीं बढ़ा जा सकता. विलय की घोषणा हुए एक साल बीत चुका है.