कोविड संकट में मीडिया को सेंसर क्यों कर रहा है भारत?
२८ अप्रैल २०२१सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ट्विटर ने कहा है कि भारत सरकार के कहने पर उसने कुछ पोस्ट भारत में देखे जाने के लिए ब्लॉक कर दी हैं. हालांकि ट्विटर ने यह नहीं बताया है कि किन ट्वीट्स को ब्लॉक किया गया है लेकिन मीडिया में छपी खबरें बताती हैं कि अधिकतर पोस्ट कोविड-19 संकट के दौरान सरकार के रवैये को लेकर आलोचनात्कम थीं. फेसबुक और इंस्टाग्राम से भी ऐसी कुछ पोस्ट हटाए जाने की रिपोर्ट हैं. भारत इस वक्त कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से गुजर रहा है और विशेषज्ञ बताते हैं कि संकट अभूतपूर्व है. अस्पतालों के बाहर दवाओं, बिस्तर और ऑक्सीजन की कमी के कारण दर्जनों मौतें हो रही हैं. श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कार के लिए लाइनें लगी हुई हैं.
ऐसे में भारत सरकार की मेडिकल सप्लाई न करवा पाने को लेकर आलोचना भी हो रही है. आलोचक अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया वेबसाइटों का सहारा ले रहे हैं, जिन पर सरकार की निगाह रहती है. सरकार का कहना है कि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट हटाई गई हैं जो भ्रामक खबरें फैला रही थीं और संकट के दौरान डर का माहौल बना रही थीं. सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, "महामारी के खिलाफ लड़ाई में बाधाएं हटाने के लिए यह फैसला लिया गया है. ये पोस्ट आम-व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती थीं."
फरवरी में भी ट्विटर ने 500 ऐसे अकाउंट बंद कर दिए थे जो भारत में किसान आंदोलन के बारे में लिख रहे थे. ऐसा भारत सरकार द्वारा कंपनी को कानूनी नोटिस जारी करने के बाद किया गया था. मीडिया की आजादी पर निगाह रखने वालीं संस्थाओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती और लोगों की अवधारणा पर नियंत्रण चाहती है.
‘द वायर' वेबसाइट की ऑम्बड्समन और मीडिया पर लिखने वालीं पैमेला फिलिपोस कहती हैं, "सरकार की पहली कोशिश होती है कि सूचना पर नियंत्रण किया जाए. बेशक महामारी के दौरान गलत जानकारियां भी फैलती हैं लेकिन ऐसे सेंसर कर देना भी तो मदद नहीं करता क्योंकि यह सूचनाओं पर प्रतिबंध है." एक अन्य मीडिया विशेषज्ञ सेवंती नैनन ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि पहले तो सरकार संदेशवाहकों को निशाना बनाती थी, अब प्लैटफॉर्म को भी निशाना बना रही है.‘द हूट' की संस्थापक संपादक नैनन कहती हैं, "इस महामारी की रिपोर्टिंग मीडिया के लिए एक बड़ी चुनौती है और हमें पता होना चाहिए कि जमीन पर यह काम कैसे हो रहा है."
बीते कुछ सालों में भारतीय मीडिया में ध्रुवीकरण बढ़ा है और अक्सर भारत सरकार की आलोचना करती खबरों को भारत की छवि पर हमला बताया जाता है. ऐसे में बहुत से ऐसे टेलीविजन और वेब चैनल्स हैं जिन्हें सरकार विरोधी या भारत विरोधी कहा जाने लगा है जबकि कुछ अन्य चैनलों को सरकार का संरक्षण और समर्थन मिलता है. मसलन जब दिल्ली के अस्पताल ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे थे तो कुछ चैनलों ने खबर दी कि दिल्ली सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों की नाकेबंदी के कारण ऑक्सीजन शहर में नहीं आ पा रही है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने डॉयचे वेले को बताया कि सरकार के मीडिया सलाहकार टेलीविजन एंकरों को बहस के विषय भेजते हैं. यह अधिकारी बताते हैं, "कई चैनलों ने ऐसे विषयों पर बहसें की हैं कि क्या भारत विरोधी लॉबी देश की छवि खराब करने का षड्यंत्र कर रही है."
बात सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट हटाने तक ही नहीं रुकती है. आलोचना करने वालों को अन्य कई खतरे भी हैं. जैसे कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्य नाथ ने आदेश जारी किया है कि अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है जैसी ‘अफवाहें' फैलाने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की जाए. विदेशी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकारों को भी दवाब झेलना पड़ रहा है. अमेरिकी मीडिया समूह के लिए काम करने वाले एक पत्रकार ने डॉयचे वेले को बताया, "जब हमने खबर छापी कि महामारी में मौत के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं तो हमें कई बड़े लोगों से फोन आए."
एक अन्य सरकारी ब्रॉडकास्टर के ब्यूरो प्रमुख हालांकि सीधा दबाव होने से इनकार करते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "ऐसा कोई सीधा दबाव या आदेश नहीं है क्योंकि उससे तो सरकार की छवि पर उलटा ही असर पड़ेगा. लेकिन हमने देखा है कि सुनियोजित ट्रोल सोशल मीडिया पर खबरों को झूठा बताने का काम करते हैं."
इसी हफ्ते ऑस्ट्रेलिया में एक अखबार ‘द ऑस्ट्रेलियन' ने जब ‘मोदी के नेतृत्व में भारत में वायरल कयामत' (Modi leads India into viral apocalypse) के शीर्षक से खबर छापी तो वहां के उच्चायुक्त ने पत्र लिखकर अखबार की आलोचना की. सेवंती नैनन कहती हैं कि सरकार बाहर से हो रही आलोचना को लेकर ज्यादा चिंतित है क्योंकि उस पर नियंत्रण नहीं है.
पिछले हफ्ते रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स नामक संस्था ने भारत को ‘खराब' पत्रकारिता वाले देशों की सूची में शामिल किया है और पत्रकारों के लिए इसे दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में गिना है.
2021 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 180 देशों की सूची में भारत का 142वां स्थान है.