क्यों पोलियो अभी भी कुछ देशों में एक समस्या बना हुआ है
विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके सहयोगियों की कोशिशों की वजह से पोलियो को दुनिया के अधिकांश हिस्सों से मिटा दिया गया था. लेकिन यह बीमारी अभी भी कुछ देशों में फैल रही है. आखिर क्यों हो रहा है ऐसा?
गाजा में पोलियो
गाजा में हाल ही में टीका नहीं लेने वाले एक बच्चे में पोलियो इन्फेक्शन पाया गया. यहां 25 सालों में पहली बार पोलियो का मामला सामने आया है. यह मामले इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पोलियो अभी भी कुछ देशों में मौजूद है. जब तक इसके वायरस को पूरी तरह से धरती से मिटा नहीं दिया जाता तब तक उसके कारण ऐसी किसी भी जगह यह बीमारी फैल सकती है जहां बच्चों का पूरी तरह से टीकाकरण नहीं हुआ है.
एक गंभीर खतरा
पोलियो का वायरस ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि पोलियो के हर 200 मामलों में से एक मामले में हमेशा के लिए लकवा मार देता है (अमूमन, टांगों में). पैरालाइज होने वाले बच्चों में करीब 10 प्रतिशत बच्चे सांस लेने की मांसपेशियों के भी पैरालाइज हो जाने की वजह से मर जाते हैं.
सदियों से मौजूद
पोलियो सदियों से धरती पर मौजूद है. प्राचीन मिस्र के चित्रों में विकृत हाथ-पैर की वजह से लाठियों के सहारे चलने वाले बच्चों को दिखाया गया है. टीके की खोज होने तक यह दुनिया की सबसे डरावनी बीमारियों से में था. न्यूयॉर्क में 1916 में इसकी वजह से 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए. 1952 में एक मामले में 3,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. बचने वालों पर जीवन भर रहने वाला असर हुआ, जैसे पक्षाघात और मुड़े हुए हाथ-पैर.
सफल टीकाकरण
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1988 में पोलियो को जड़ से मिटाने एक प्रस्ताव पारित किया. मूल लक्ष्य था 2000 तक पोलियो को जड़ से खत्म करना. संगठन और उसके साझेदारों ने एक ओरल टीके के उत्पादन को बढ़ाया और व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू किए. इसके फलस्वरूप पोलियो के मामले 99 प्रतिशत तक कम हो गए.
कुछ देश अभी भी प्रभावित
सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान वो देश हैं जहां पोलियो का फैलना कभी रोका नहीं जा सकता. करीब एक दर्जन और देशों में पोलियो के फैलने के मामले सामने आते रहते हैं. इनमें से अधिकांश देश अफ्रीका में हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब 2026 तक इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है.
इतना समय क्यों लगा
पोलियो के मामलों को रोकने के लिए हर देश की कम-से-कम 95 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करना पड़ेगा. इनमें ऐसे देश में शामिल हैं जहां कई तरह के जातीय या राजनीतिक संघर्ष चल रहे हैं और ऐसे देश भी जो गरीब हैं और जिनके स्वास्थ्य तंत्र काफी खराब हालत में हैं.
टीके की कमजोरी
ओरल टीका सस्ता, कारगर और इस्तेमाल में आसान है. लेकिन उसमें जीवित, कमजोर वायरस मौजूद होते हैं जो कुछ दुर्लभ मामलों में फैल सकते हैं और उन लोगों को संक्रमित कर सकते हैं जिन्होंने टीका नहीं लिया. कुछ बेहद दुर्लभ मामलों में यह जीवित वायरस म्यूटेट होकर एक नया संक्रामक रूप भी धारण कर सकता है.
किस तरह के मामले अब आते हैं सामने
स्वास्थ्य एजेंसियां पोलियो वायरस से संक्रमण के मामलों को कम करने में सफल रही हैं. अब दुनिया भर में सामने आने वाले संक्रमण के मामलों में ज्यादातर मामले टीके वाले वायरस से जुड़े हैं. सीके/आरपी (एपी)