पश्चिम बंगाल में क्यों अब भी गंभीर है बाल विवाह की समस्या
१२ नवम्बर २०२४राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में बाल विवाह का प्रतिशत वर्ष 1992-93 के 54.2 प्रतिशत से घट कर 2019-21 में भले 23.3 प्रतिशत तक पहुंच गया हो, बंगाल में यह 41 प्रतिशत बनी हुई है. इस मामले में यह बिहार और त्रिपुरा जैसे निचले पायदान वाले राज्यों की बराबरी पर खड़ा है.
अब राज्य की ममता बनर्जी सरकार की ओर से हाल में लागू नए नियम ने बाल विवाह करने वालों के लिए मुसीबत पैदा कर दी है. इसमें कहा गया है कि शादी का पंजीकरण उसी स्थिति में होगा जब शादी के समय लड़के और लड़की की उम्र क्रमशः 21 और 18 साल की हो. दरअसल, सरकार ने बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए ही यह नियम बनाया है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर इस गंभीर सामाजिक कुरीति का अध्ययन करने वाली मुंबई की संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन साइंस (आईआईपीएस) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पश्चिम बंगाल के तीन जिले - मुर्शिदाबाद, पूर्व मेदिनीपुर और पश्चिम मेदिनीपुर - बाल विवाह के मामले में देश के पांच शीर्ष जिलों में शामिल हैं.
इस सूची में बाकी दो जिले बिहार के समस्तीपुर और लखीसराय हैं. सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पूर्व मेदिनीपुर को राज्य में सबसे साक्षर जिला होने का दर्जा भी हासिल है. रिपोर्ट के मुताबिक, इन जिलों में सौ में से 62 से 66 युवतियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है. यह संख्या राष्ट्रीय औसत 23 के मुकाबले करीब तीन गुनी है.
कैसा है देश भर में बाल विवाह का हाल
इससे पहले राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण 2019-21 में कहा गया था कि वर्ष 2005-06 में भारत भर में बाल विवाह की दर 47 प्रतिशत थी.
वर्ष 2011 की जनगणना में अनुमान लगाया गया था कि 10 से 19 साल के बीच के करीब 1.7 करोड़ लोगों की शादी हो चुकी है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि 1.10 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल विवाह के लिहाज से बेहद संवेदनशील है.
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लेकिन सामाजिक संगठनों की राय में असली आंकड़ा कहीं ज्यादा है. चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया नेटवर्क की ओर से भारत बाल संरक्षण शीर्षक एक अध्ययन में बताया गया था कि वर्ष 2022 के दौरान देश में प्रति मिनट तीन लड़कियों की शादी हुई थी. लेकिन नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2018 से 2022 के दौरान बाल विवाह के महज 3,683 मामले ही दर्ज किए गए. अब निकट भविष्य में होने वाली जनगणना से इस मामले की सही तस्वीर सामने आने की संभावना है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश भी बेहद अहम हैं. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने बाल विवाह पर रोक की मांग में दायर एक याचिका की सुनवाई के बाद बीते महीने अपने फैसले में कहा था कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम की किसी भी व्यक्तिगत कानून की आड़ में अनदेखी नहीं की जा सकती.
'सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन' नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने वर्ष 2017 में दायर उक्त याचिका में आरोप लगाया था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम पर ठीक से अमल नहीं किया जा रहा है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कि बाल विवाह की बुराइयों के बारे में सबको जानकारी होने के बावजूद इसका प्रचलन चिंताजनक है. कोर्ट ने हर जिले में ऐसी शादियों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए एक बाल विवाह निषेध अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है. उसने इस सामाजिक कुरीति पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए 12-सूत्री दिशा निर्देश जारी किया था.
ताजा नियम से किसकी परेशानी बढ़ी
तमाम उपायों के बावजूद बाल विवाह पर अंकुश लगाने में नाकाम रही पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने हाल में लागू एक नए नियम में कहा है कि पंजीकरण के लिए शादी के समय लड़के-लड़की की उम्र क्रमशः 21 और 18 साल होना अनिवार्य है. इससे खासकर सरकारी कर्मचारियों की परेशानी बढ़ गई है. पूर्व मेदिनीपुर जिले के एक सरकारी कर्मचारी नाम नहीं छापने पर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "मेरी शादी करीब तीस साल पहले हुई थी. उस समय यह नियम कौन देखता था. अब मुझे अगले महीने रिटायर होना है. लेकिन शादी के पंजीकरण के बिना मैं अपनी पत्नी को नॉमिनेट नहीं कर सकता. लेकिन चूंकि शादी के समय उनकी उम्र 18 साल की थी, पंजीकरण का आवेदन खारिज हो गया है."
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पहले के नियम में कहा गया था कि शादी के पंजीकरण के समय लड़के-लड़की की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए, भले शादी उससे पहले ही हो गई हो.
मैरिज ऑफिसर्स वेलफेयर एसोसिएशन की प्रदेश सचिव ज्योत्सना महतो डीडब्ल्यू से कहती हैं, "अब वैसे लोगों की शादियों का पंजीकरण नहीं हो सकता जिन्होंने कम उम्र में शादी की है. इससे भविष्य़ में बाल विवाह पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी. नए नियम के तहत बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए भी मात-पिता का पंजीकरण प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया गया है."
सामाजिक कार्यकर्ता शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं, "सरकार के तमाम उपायों के बावजूद अगर बाल विवाह पर अंकुश नहीं लग पा रहा है तो साफ है कि इसकी जड़ें काफी गहरी हैं. इसकी वजह आर्थिक और सामाजिक हैं. इसके लिए सरकार को गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना होगा."