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कारोबार

क्या गेहूं की कीमतें भविष्य में भी ऐसे ही बढ़ी रहेंगी

आंद्रेयास बेकर
१७ जून २०२२

दुनिया भर में तमाम चीजों की कीमतें हाल में दोगुनी तक बढ़ गई हैं जिनमें गेहूं भी है. कीमतों में वृद्धि के लिए यूक्रेन पर रूस का हमला भी जिम्मेदार है. डीडब्ल्यू ने गेहूं की कीमतों में तेजी का कारण जानने की कोशिश की है.

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Ukraine Getreide Weizenanbau
यूक्रेन युद्ध के कारण वहां से गेहूं के निर्यात पर बना हुआ है खतरातस्वीर: Olena Mykhaylova/Zoonar/picture alliance

फरवरी के अंत तक कुछ लोगों को गेहूं के व्यवसाय में काफी लाभ दिख रहा था. पिछले कई साल से वैश्विक स्तर पर इसकी कीमत 200 यूरो प्रति टन के आस-पास बनी हुई थी लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने सब कुछ बदल दिया. रूस के यूक्रेन पर हमले की वजह से गेहूं की वैश्विक कीमत 400 यूरो प्रति टन तक पहुंच गई है, यानी लगभग दोगुनी हो गई है. यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, खासकर गरीब देशों के लिए जो कि अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खाने-पीने की चीजों पर ही खर्च करते हैं.

दुनिया भर में करीब 785 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है और इसका सिर्फ एक चौथाई हिस्सा ही वैश्विक बाजार में बेचा जाता है. ज्यादातर गेहूं, उन देशों के नागरिक अपने दैनिक उपभोग में खर्च करते हैं जहां इसका उत्पादन होता है. गेहूं की गुणवत्ता और कीमत क्षेत्रों के हिसाब से अलग-अलग होती है.

वैश्विक विपणन के दो प्लेटफॉर्म

हालांकि गेहूं आमतौर पर एक स्थानीय उत्पाद है लेकिन इसकी कीमतें कमोडिटी एक्सचेंज नाम के उन वैश्विक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स पर तय होती हैं जो खासतौर पर इसीलिए बने होते हैं. क्लॉपेनबर्ग स्थित कृषि उत्पादों के विपणन में वित्तीय सेवा देने वाली कंपनी काक टर्मिनहांडेल से जुड़े वोल्फगांग साबेल कहते हैं, "दुनिया भर में गेहूं के विपणन से जुड़ी दो महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म हैं- शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड यानी सीबीओटी और पेरिस स्थित यूरोनेक्स्ट. ये दोनों एक्सचेंज वैश्विक मानकों के आधार पर कीमतें तय करने के लिए नियम और शर्तें बनाते हैं. कीमतें सिर्फ मांग और पूर्ति के आधार पर तय होती हैं.”

मानकों के आधार पर कीमतें तय करने का मतलब यह है कि वस्तु की मात्रा और गुणवत्ता को खासतौर पर ध्यान में रखा जाता है और कीमतें तय करने में इन दोनों का कड़ाई से पालन किया जाता है. मसलन, गेहूं की कीमत का निर्धारण इन मापदंडों के आधार पर होता है, यूरोपीय संघ में पैदा होने वाले 50 टन गेहूं जिसमें 11 फीसद प्रोटीन हो और नमी की मात्रा अधिकतम 15 फीसद हो. गेहूं के इस मानक के आधार पर दुनिया भर में उसके विपणन का आधार तय होता है.

Infografik Führende Weizenproduzenten weltweit EN
ये हैं दुनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादक

साबेल कहते हैं कि गेहूं के उत्पादकों, व्यापारियों और रिफाइनरों के लिए एक्सचेंज मार्केट में जो कीमतें तय होती हैं, वही उनके लिए थोक कीमतें होती हैं और उन्हीं के आधार पर आगे चलकर गेहूं से बनने वाले उत्पादों की कीमतें तय होती हैं. हालांकि स्थानीय स्तर पर बाजार की स्थिति के अनुसार कीमतों में कुछ अंतर भी आ जाता है.

बीमा और अनुमान

वैश्विक बाजार के लिए कीमतें निर्धारित करने के अलावा सीबीओटी और यूरोनेक्स्ट गेहूं के व्यापार में लगी कंपनियों और लोगों को कई और सुविधाएं भी देती हैं ताकि उन्हें बाजार की अनिश्चितताओं की वजह से नुकसान न होने पाए. साबेल इसे एक उदाहरण के जरिए समझाते हैं. वो कहते हैं, "मान लीजिए कि कोई मिल एक पाउंड यानी पांच सौ ग्राम के आटे के बहुत सारे पैकेट बनाने और उन्हें सितंबर तक देने के लिए किसी सुपरमार्केट चेन से डील कर रही है. सितंबर में गेहूं की कीमत क्या होगी, यह किसी को पता नहीं है. लेकिन इन एक्सचेंज के जरिए गेहूं खरीद के लिए एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदा जा सकता है.”

Getreide Mehl, Symbolbild
गेहूं की आपूर्ति पर वैश्विक संकट बाजारों में दिख रहा हैतस्वीर: Nicolas Armer/picture alliance/dpa

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट वो कॉन्ट्रैक्ट हैं जो सीबीओटी और यूरोनेक्स्ट के जरिए इसलिए किए जाते हैं ताकि भविष्य में किसी वस्तु की कीमतों के घटने-बढ़ने का असर न पड़े. इस स्थिति में मिल कॉन्ट्रैक्ट कर लेगी लेकिन गेहूं वो तब खरीदेगी जबकि उसे आटे के पैकेट डिलीवर करने हैं. मिल को गेहूं की वही कीमत देनी होगी जो कॉन्ट्रैक्ट करते समय थी. सितंबर में यदि कीमत बढ़ भी जाती है, तो भी उस पर कोई असर नहीं होगा.

साबेल कहते हैं, मान लीजिए कि गेहूं मिल ने 300 यूरो में खरीदा है और सितंबर में कीमत इससे ज्यादा 400 यूरो प्रति टन है. तो गेहूं मिल का मालिक अपने सप्लायर को पहले तो ज्यादा कीमत देगा लेकिन जिससे उसने फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट किया होगा, वो इसे 100 यूरो प्रति टन वापस कर देगा. यानी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वजह से गेहूं मिल के मालिक को गेहूं की वही कीमत सितंबर में भी चुकाने पड़ेगी जो कीमत उससे पहले थी. फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट दो साल तक के लिए खरीदे जा सकते हैं.

गणना का सवाल

साबेल बताते हैं कि कीमतों में उछाल जैसी स्थिति से बचने के लिए किसान भी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स का फायदा ले सकते हैं. मसलन, यदि कोई किसान तीन सौ यूरो का कॉन्ट्रैक्ट करता है और गेहूं की कीमत अचानक चार सौ यूरो हो जाती है तो किसान गेहूं को चार सौ यूरो में बेच सकता है लेकिन सौ यूरो उसे उस व्यक्ति या एजेंसी को चुकाने होंगे जिससे उसने फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट किया होगा.

लेकिन यह घाटा कई बार तब फायदे में तब्दील हो सकता है जब गेहूं की कीमत घट जाती है. यदि यही कीमत घटकर दो सौ यूरो पर पहुंच गई तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के जरिए उसे सौ यूरो की भरपाई हो जाएगी.