अफगानिस्तान: दुनिया की "चुप्पी" पर महिलाओं का विरोध
२७ अक्टूबर २०२१काबुल में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर विरोध प्रदर्शन किया. मंगलवार को उनके हाथों में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था "दुनिया हमें चुपचाप मरते हुए क्यों देख रही है?" अफगानिस्तान में संकट पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता का महिलाएं विरोध कर रही थीं.
लगभग एक दर्जन महिलाएं तालिबान के कोप का जोखिम उठाते हुए मंगलवार को काबुल की सड़कों पर उतरीं. तालिबान ने अगस्त में सत्ता संभालने के बाद से प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंसा का प्रयोग करके उन्हें बंद कर दिया. महिलाओं ने "शिक्षा के अधिकार" और "काम करने के अधिकार" जैसे पोस्टर लिए हुए थे. लेकिन तालिबान ने प्रेस को मार्च के करीब पहुंचने से पहले रोक दिया.
हक की मांग करतीं महिलाएं
अफगानिस्तान में महिला कार्यकर्ताओं के आंदोलन के आयोजकों में से एक वाहिदा अमीरी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अपने अधिकारों, शिक्षा, काम करने के लिए समर्थन करने के लिए कह रहे हैं. हम आज हर चीज से वंचित हैं."
पहले यह प्रदर्शन देश में "राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति" को संबोधित करते हुए अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएएमए) के पास करने की योजना बनाई गई थी. लेकिन आखिरी समय में इसे पूर्व ग्रीन जोन के पास कर दिया गया. ग्रीन जोन वह इलाका है जहां पश्चिमी देशों के दूतावास स्थित हैं. हालांकि तालिबान के देश पर कब्जे के बाद से मिशन खाली है.
एएफपी के एक रिपोर्टर ने तब एक दर्जन तालिबान लड़ाकों को देखा, जिनमें से अधिकांश हथियारबंद थे. तालिबान के लड़ाकों ने पत्रकारों को पीछे धकेल दिया और एक स्थानीय रिपोर्टर का मोबाइल फोन जब्त कर लिया, जो विरोध को फिल्मा रहा था.
अड़ी हुईं हैं महिलाएं
अमीरी कहती हैं, "हमारे पास तालिबान के खिलाफ कुछ भी नहीं है, हम सिर्फ शांतिपूर्वक प्रदर्शन करना चाहते हैं."
हाल के हफ्तों में काबुल में महिलाओं द्वारा प्रतीकात्मक प्रदर्शन एक नियमित घटना बन गई है क्योंकि तालिबान ने अभी भी उन्हें काम पर लौटने की अनुमति नहीं दी है या अधिकांश लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं दी है. पिछले गुरुवार को लगभग 20 महिलाओं को 90 मिनट से अधिक समय तक मार्च करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन रैली को कवर करने वाले कई विदेशी और स्थानीय पत्रकारों को तालिबान लड़ाकों ने पीटा था.
पिछले दिनों नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और कई अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक खुले पत्र में लिखा था, "तालिबान अधिकारियों के लिए लड़कियों की शिक्षा पर वास्तविक प्रतिबंध को हटा दें और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालयों को तुरंत फिर से खोलें." उन्होंने मुस्लिम देशों के नेताओं से तालिबान शासकों को यह स्पष्ट करने का भी आह्वान किया कि "लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना धार्मिक रूप से उचित नहीं है."
एए/वीके (एपी, एएफपी)