जर्मन सेना में महिलाएं अब भी कम क्यों
१६ अप्रैल २०२४इंका फोन पुटकामेर तीसरी माइनस्वीपर स्क्वॉड्रन की नई कमांडर हैं. अब जर्मन नौसेना की परेड उनकी कमांड का पालन करती है. जर्मनी के लिए यह पहला मौका है जब नौसेना कॉम्बैट यूनिट की कमान एक महिला को सौंपी गई है. जर्मनी में 2001 से सेना में महिलाओं की भर्ती शुरू हुई थी. सैन्य नीतियों में यह बदलाव यूरोपीय अदालत के फैसले के बाद किया गया था जिसके तहत महिलाओं को सेना के सभी पदों पर आवेदन करने की इजाजत दी गई थी.
यूनिवर्सिटी ऑफ पोस्टडाम में मिलिट्री सोशियोलॉजिस्ट माया इपेल्ट ने डीडब्ल्यू को बताया कि उस फैसले के बाद काफी बदलाव आए हैं. बीते कुछ दशकों के मुकाबले आज जरूर अधिक महिलाएं सेना में शामिल हो रही हैं. 1985 में केवल 117 महिलाएं सेना में थीं लेकिन बीते साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब सेना में 24,000 महिलाएं हैं. वह आगे कहती हैं, "समान अवसर अधिकारी जैसे पदों पर भी सेना में भर्तियां शुरू हुई हैं. आधिकारिक रूप से काफी कुछ बदला है."
सेना में महिलाओं की भर्ती में क्यों पिछड़ रहा जर्मनी
हालांकि, जर्मन सेना में महिलाओं की संख्या आज भी बेहद कम है. ये 24,000 महिलाएं सेना के केवल 13 फीसदी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनमें से भी 8,000 महिलाएं मेडिकल सेवाओं में हैं. अगर इन्हें हटा दिया जाए तो महिलाओं की सेना में संख्या 9 फीसदी से भी कम है. यह भी तब जब जर्मन सरकार ने हाल ही में समानता के अपने लक्ष्य को बढ़ा कर 20 फीसदी कर दिया है.
अगर जर्मनी अपने इस लक्ष्य को पूरा कर ले तो वह कई देशों को पीछे छोड़ सकता है. लेकिन फिलहाल वह कई देशों से पीछे है. अमेरिकी सेना में महिलाओं की संख्या फिलहाल 20 फीसदी है. मरीन कॉर्प्स जो सेना का एक अधिक चुनौतीपूर्ण ब्रांच माना जाता है, उसमें भी 10 फीसदी महिलाएं शामिल हैं. यूरोप में नॉर्वे वह देश है जहां सबसे अधिक 15.7 फीसदी महिला सैनिक मौजूद हैं. वहीं, फ्रांस की सेना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 16.5 फीसदी है.
संसद में सेना की कमीश्ननर इवा हूगल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में सेना में महिलाओं की मौजूदगी पर जोर डाला है. उन्होंने कहा कि महिलाएं अपने हुनर और अनुभव से सैन्य सेवाओं को बेहतर बनाती हैं. अध्ययन बताते हैं कि एक टीम जिसमें अलग-अलग लोग शामिल हों वह सबसे बेहतरीन और ताकतवर टीम होती है. इपेल्ट कहती हैं कि सेना में महिलाओं की मौजूदगी यह सुनिश्चित करेगी कि संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं के मुद्दों और चिंताओं पर भी ध्यान दिया जाए.
महिलाओं की कमी से वाकिफ है जर्मन सेना
जर्मन सेना इन बातों से वाकिफ नजर आती है. रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने पिछले साल अगस्त में स्टूटगार्ट में सेना के एक करियर सेंटर में कहा था, "यह काफी नहीं है. यह सेना के उस दावे को सहीं नहीं ठहराता जिसके मुताबिक सेना खुद को 'लोगों की सेना' यानी सभी नागरिकों का एक समूह मानती है."
हूगल ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर डाला था कि जर्मनी के यह दावे को कि उनकी सेना, नागरिकों की सेना है, इसे अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, खासकर ऊंचे ओहदों पर. उदाहरण के तौर पर कुछ महिला सैनिक जैसे नौसेना की पहली सबमरीन कमांडर, सेना की बटालियन की पहली महिला कमांडर आदि भी अपने बेहतरीन करियर के साथ इस तथ्य को नहीं छिपा सकतीं.
जर्मन सेना में सिर्फ तीन महिला जनरल हैं और वे तीनों ही डॉक्टर हैं. सेना के मिलिट्री हिस्ट्री और सोशल साइंस सेंटर का एक सर्वे बताता है कि 16 से 29 साल की केवल 36 फीसदी महिलाएं ही सेना को आकर्षक नियोक्ता के रूप में देखती हैं. वहीं, ऐसा मानने वाले पुरुषों की संख्या 56 फीसदी है. क्या ये नतीजे सेना में नेतृत्व पदों पर महिलाओं की गैरमौजूदगी की ओर इशारा कर रहे हैं?
समाज का आईना है सेना
कई और वजहें जो औरतों के लिए सेना को कम आकर्षक बनाती हैं उनमें यौन उत्पीड़न के मामले और सेना और परिवार के बीच असामंजस्य शामिल हैं. कमिश्नर की रिपोर्ट में सेना के दो साल के जनरल/अडमिरल के कोर्स का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इस कोर्स को अधिक लचीला बनाने की जरूरत है. कोर्स में थोड़े समय के बाद ही एक जगह से दूसरी जगह जाने की अनिवार्यता कम होनी चाहिए क्योंकि यह उन सैन्यकर्मियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है जिनके बच्चे हैं. यौन उत्पीड़न भी सेना के लिए एक अहम समस्या है. रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में 350 यौन उत्पीड़न के संदिग्ध मामले सामने आए थे. सेना की एक आंतरिक स्टडी के मुताबिक इनमें से 80 फीसदी पीड़ित महिलाएं थीं.
इपेल्ट इसे एक बड़े सामाजिक मुद्दे के तौर पर देखती हैं क्योंकि सेना उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं जहां पुरुषों का नेतृत्व है. वह कहती हैं शायद ही कोई और पेशा मर्दानगी से इस कदर जुड़ा हो जितना कि एक सैनिक का. लेकिन मेडिकल सर्विस में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी बताती है कि सेना उन्हें रोक नहीं पा रही है. हालांकि, वह अब भी मानती हैं कि सेना में, खासकर नेतृत्व के पदों पर रोल मॉडल्स होने जरूरी हैं.
वह कहती हैं, "महिलाओं के लिए यह देखना जरूरी है कि ऐसा मुमकिन है. वह अकेली नहीं हैं और एक महिला के लिए यह वह रास्ता है जिसकी कल्पना की जा सकती है. नेतृत्व के पदों पर मौजूद महिलाएं न सिर्फ रोल मॉडल हैं बल्कि वे दूसरी महिलाओं के लिए भी नए दरवाजे खोल सकती हैं."
इंका फोन पुटकामेर खुद को एक रोल मॉडल के रूप में जरूर देखती हैं लेकिन इसके साथ ही वह मानती हैं कि एक महिला का इन पदों पर आना आज नौसेना में एक दुर्लभ मौका नहीं होना चाहिए. वह कहती हैं, "यह एक समस्या है कि एक महिला होने पर इतना जोर दिया जाता है. सेना मुझे और मेरे पति दोनों को ही नेतृत्व के पदों पर काम करने का अवसर दे रही है, साथ ही अपने पारिवारिक जीवन के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता भी. इसमें कोई शक नहीं है कि यह तनावपूर्ण है. इसमें काफी ज्यादा पूर्व योजना और व्यवस्था की जरूरत है लेकिन ऐसा करना मुमकिन भी है."