कांग्रेस : महिला आरक्षण का समर्थन, कोटे के भीतर कोटा हो
२० सितम्बर २०२३बुधवार को लोकसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक (महिला आरक्षण बिल) पर चर्चा शुरू हो गई. चर्चा की शुरुआत कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने की. उन्होंने कहा, "भारतीय नारी ने सबकी भलाई के लिए काम किया है. स्त्री धैर्य का अनुमान लगाना मुश्किल है." साथ ही उन्होंने आरक्षण के अंदर आरक्षण देने की मांग की. चर्चा के दौरान सोनिया ने जातिगत जनगणना कराए जाने की भी मांग की.
चर्चा के दौरान सोनिया ने कहा कि महिला आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाए. इसके जवाब में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सवाल किया कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इस बिल को लटकाए रखा था.
इस विधेयक को कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने मंगलवार को नए संसद भवन में पेश किया. नए संसद भवन में पेश होने वाला यह पहला विधेयक है. कानून मंत्री ने संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 पेश करते हुए कहा कि कानून बनने के बाद 543 सदस्यों की लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से बढ़कर 181 होगी.
कानून बनने के बाद महिलाओं को एक तिहाई या 33 फीसदी आरक्षण लोकसभा और राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में मिलेगा. कानून मंत्री ने कहा कि विधेयक में 33 फीसदी महिला आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के आरक्षण का भी प्रावधान है.
मेघवाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 239 एए में संशोधन किया जाएगा. दिल्ली में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक तिहाई आरक्षण महिलाओं को दिया जाएगा.
विपक्ष क्यों कर रहा विरोध
महिला आरक्षण बिल पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, जेडीयू और एआईएमआईएम ने अपने-अपने तरीके से विरोध जताया है. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "महिला आरक्षण बिल हमने 2010 में राज्यसभा में पास कराया था. अगर उस बिल को लाते तो वह जल्दी पास हो जाता. सरकार का कहना है कि जनगणना और उसके बाद होने वाले निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन के बाद महिला आरक्षण बिल लागू होगा. इससे पता चलता है कि इसमें बहुत समय लगेगा."
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महिला आरक्षण बिल पर सरकार पर "महाझूठ" बोलने का आरोप लगाया. अखिलेश ने ट्वीट किया. "नयी संसद के पहले दिन ही भाजपा सरकार ने ‘महाझूठ' से अपनी पारी शुरू की है. जब जनगणना और परिसीमन के बिना महिला आरक्षण बिल लागू हो ही नहीं सकता, जिसमें कई साल लग जाएंगे, तो भाजपा सरकार को इस आपाधापी में महिलाओं से झूठ बोलने की क्या जरूरत थी? भाजपा सरकार ना जनगणना के पक्ष में है ना जातिगत गणना के, इनके बिना तो महिला आरक्षण संभव ही नहीं है."
अखिलेश यादव ने कहा, "ये आधा-अधूरा बिल ‘महिला आरक्षण' जैसे गंभीर विषय का उपहास है, इसका जवाब महिलाएं आगामी चुनावों में भाजपा के विरूद्ध वोट डालकर देंगी."
वहीं आरजेडी नेता और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने महिला आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग की. राबड़ी देवी ने एक्स पर लिखा, "आरक्षण के अंदर वंचित, उपेक्षित, खेतिहर एवं मेहनतकश वर्गों की महिलाओं की सीटें आरक्षित हो. मत भूलो, महिलाओं की भी जाति है."
उन्होंने आगे लिखा, "अन्य वर्गों की तीसरी, चौथी पीढ़ी के बजाय वंचित वर्गों की महिलाओं की अभी पहली पीढ़ी ही शिक्षित हो रही है, इसलिए इनका आरक्षण के अंदर आरक्षण होना अनिवार्य है."
परिसीमन के बाद 2029 में मुमकिन
आरक्षण कानून बनने के 15 वर्षों तक लागू रहेगा और संसद इसे आगे बढ़ा सकती है. नये परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू हो पाएगा. परिसीमन नई जनगणना के बाद होगा. देश में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है. ऐसा कहा जा रहा है कि जनगणना 2024 के बाद हो सकती है. परिसीमन 2025 के बाद होगा यानी 2024 के आम चुनाव में या 2025 तक के विधानसभा चुनावों में कानून लागू नहीं हो सकेगा. यह 2029 चुनाव से लागू हो सकता है.
बिल में महिलाओं के लिए तय 33 प्रतिशत आरक्षण के भीतर एससी/एसटी के लिए आरक्षण है लेकिन ओबीसी के लिए नहीं है. कई विपक्षी दल ओबीसी के लिए भी कोटे की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर संसद में गतिरोध देखने को मिल सकता है.