हेग की अदालत के फैसले पर रोहिंग्या शरणार्थी खुश
२४ जनवरी २०२०मुस्लिम बहुल अफ्रीकी देश गांबिया ने 57 देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन की तरफ से आईसीजे में रोहिंग्या समुदाय पर म्यामांर में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ पिछले साल नवंबर में याचिका दायर की थी. अगस्त 2017 में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ म्यांमार की सेना की कार्रवाई के बाद सात लाख से ज्यादा लोग भागकर बांग्लादेश चले गए थे. बौद्ध बहुल म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को देश का नागरिक नहीं माना जाता. वे अपने साथ व्यापाक पैमाने पर भेदभाव के आरोप लगाते हैं.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि म्यांमार की सेना पश्चिमी प्रांत रखनाइन में रोहिंग्या मुसलमानों का जातीय सफाया कर रही है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने गुरुवार को एक अहम आदेश में म्यांमार से कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार और अत्याचार रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं. पिछले साल म्यामांर की नेता आंग सान सू ची भी भी अदालत में पेशी के लिए आई थीं और उन्होंने नरसंहार के आरोपों से इनकार किया था.
दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को बांग्लादेश में रह रहे शरणार्थी अपनी पहली जीत बता रहे हैं. उन्होंने अदालत के आदेश को जानने के लिए मोबाइल फोन का सहारा लिया. 34 साल के मोहम्मद नूर कहते हैं, "पहली बार हमें कुछ न्याय मिला है. पूरे रोहिंग्या समुदाय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है." वहीं म्यांमार में मौजूद रोहिंग्याओं ने फोन पर बताया कि उन्हें उम्मीद है कि आदेश के बाद म्यांमार पर हालात सुधारने का दबाव बनेगा.
रखाइन प्रांत में रह रहे रोहिंग्या नेता तिन ओंग ने कहा कि उन्हें सुरक्षा की जरूरत है. रोहिंग्या के खिलाफ हिंसा के बाद से ही वे ही कैंप में रहने को मजबूर हैं. आईसीजे ने म्यांमार को निर्देश दिया है कि वह किसी भी हालत में रोहिंग्या मुसलमानों की सुरक्षा की गारंटी दे. फैसले के वक्त अदालत में मौजूद रोहिंग्या अधिकार कार्यकर्ता यासमीनुल्लाह कहती हैं, "इसके लिए हम लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे. इंसान के रूप में सभी को समान पहचान मिलनी चाहिए." वह फिलहाल कनाडा में रहती हैं और रोहिंग्या लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.
अदालत ने म्यांमार से तब तक हर छह महीने पर रिपोर्ट सौंपने को भी कहा, जब तक यह मामला पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता. अफ्रीकी देश गांबिया ने म्यांमार पर 1948 की नरसंहार संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. आईसीजे ने कहा, "1948 की नरसंहार संधि के तहत म्यांमार को अपनी शक्ति के मुताबिक रोहिंग्या को बचाने के लिए सभी उपाय अपनाने होंगे."
वैसे अदालत का अंतिम फैसला आने में सालों लग सकते हैं. लेकिन आईसीजे के शुरुआती आदेश बाद यह कहा जा रहा है कि अदालत के पास इसे लागू करवाने का कोई तरीका नहीं है. ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य सुरक्षा परिषद से कह सकता है कि वह अदालत के फैसले को लागू किए जाने की निगरानी करे.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने भी अदालत के इस आदेश का स्वागत किया है. संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "यूएन चार्टर के मुताबिक म्यांमार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को मानने के लिए बाध्य है और हमें भरोसा है कि म्यांमार उसका पालन करेगा."
इस बीच, म्यांमार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वह इस फैसले पर "ध्यान देंगे." साथ ही उसने कहा, "कुछ मानवाधिकार संगठनों ने रखाइन प्रांत की गलत तस्वीर पेश की और बिना सबूत म्यांमार की निंदा की, जिससे देश के कई द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हुए हैं."
एए/एके (रॉयटर्स)
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