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समाजभारत

असम के युवाओं को डराने लगा है फेसबुक और इंस्टाग्राम

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ नवम्बर २०२२

बेबाकी और सुलभता से अपनी बात कहने का जरिया बना सोशल मीडिया अब कई मामलों में डराने और प्रताड़ित करने का हथियार बन रहा है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में एक सर्वेक्षण से इसकी पुष्टि हुई है.

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फेसबुक और इंस्टाग्राम बने ऑनलाइन प्रताड़ना के हथियार
असम में युवाओं की नई मुश्किल तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

बेबाकी और सुलभता से अपनी बात कहने का जरिया बना सोशल मीडिया अब कई मामलों में डराने और प्रताड़ित करने का हथियार बन रहा है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में एक सर्वेक्षण से इसकी पुष्टि हुई है. प्रभावित लोगों को पुलिस की मदद लेनी पड़ी है और कई लोगों ने तो इन प्लेटफार्मों से तौबा कर ली है लेकिन फिर भी डर खत्म नहीं हुआ.

"मैं पहले नियमित रूप से फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती थी. लेकिन फिर यही लत मेरे लिए मुसीबत बन गई. मुझे कुछ लोगों ने इसके जरिए धमकियां देना शुरू किया. मुझे पता नहीं था कि इससे कैसे बचाव करना है. मैं काफी डर गई थी... डर के माने मैंने कई महीनों तक घरवालो या पुलिस को भी यह बात नहीं बताई. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर से बहने लगा तो मुझे मजबूरन घरवालों को बताना पड़ा. मैंने अपना अकाउंट भी डीएक्टिवेट कर दिया है. लेकिन अब भी काफी डर लगता है"...असम की राजधानी गुवाहाटी के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में बी.काम (आनर्स) प्रथम वर्ष की छात्रा जाह्नवी बरुआ (बदला हुआ नाम) ने सोशल मीडिया के बारे में अपना अनुभव कुछ इस तरह बयान करती हैं.

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लगातार बढ़ते प्रताड़ना के मामले

असम में जाह्नवी का मामला अकेला नहीं है. ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं. पूर्वोत्तर राज्य में फेसबुक और इंस्टाग्राम युवाओं को प्रताड़ित करने के सबसे प्रमुख हथियार बन गए हैं. राज्य के 24 विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में एक ताजा सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है. यूनिसेफ की पहल पर हुए इस सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि शारीरिक सजा की वजह से राज्य के 95 फीसदी युवा मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान करीब 24 सौ युवाओं और छात्रों से बातचीत की गई.

फेसबुक और इंस्टाग्राम बने ऑनलाइन प्रताड़ना के हथियार
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर युवाओं को प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

नेशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) के स्वयंसेवकों के जरिए यह सर्वेक्षण असम बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की सुरक्षा योजना को समर्थन देने के लिए कराया गया था. इस योजना का मकसद युवा वर्ग के खिलाफ हिंसा रोकने और इससे निपटने के कारगर उपायों के बारे में आम लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

सर्वेक्षण के दौरान करीब 95 फीसदी युवाओं ने माना कि कालेज, कोचिंग या मित्र मंडली में होने वाले शारीरिक हमलों के कारण उनको मानसिक स्वास्थ्य की समस्या भी पैदा हो गई है. यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की 3.1 करोड़ की आबादी में 19 फीसदी युवा वर्ग (15 से 24 साल) शामिल है.

सर्वेक्षण रिपोर्ट

सर्वेक्षण से यह भी पता चला  है कि राज्य में 95 फीसदी युवा शारीरिक दंड के कारण मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का सामना कर रहे हैं. इसके मुताबिक, 35 फीसदी युवाओं को घर पर शारीरिक सजा भुगतनी पड़ी. इसके अलावा 25 फीसदी को स्कूल या कॉलेज, 14 फीसदी को निजी कोचिंग सेंटरों और खेल के मैदानों जैसी दूसरी जगहों पर इसका सामना करना पड़ा. करीब 26 फीसदी युवाओं को इन तीनों जगहों पर शारीरिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा.

युवाओं का कहना था कि शारीरिक प्रताड़ना के तरीकों में थप्पड़ मारना, चिल्लाना और गाली देना सबसे आम था. ऐसे 60 फीसदी युवाओं का कहना था कि इस शारीरिक प्रताड़ना का उनके सामाजिक संबंधो पर प्रतिकूल असर पड़ा, 24 फीसदी युवा इससे तनावग्रस्त और भयभीत हो गए. करीब 17 फीसदी मामलों में उनको शारीरिक चोटें आई उसके लिए इलाज का सहारा लेना पड़ा.

 फेसबुक और इंस्टाग्राम बने ऑनलाइन प्रताड़ना के हथियार
कई और देशों में भी ऑनलाइन प्रताड़ना की खबरें आई हैं और वहां लोगों को जागरूक किया जा रहा हैतस्वीर: Mariana Branco

सिलचर के असम विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताती है, "मेरे चेहरे-मोहरे और पहनावे पर अश्लील फब्तियां कसी गईं. इससे मैं मानसिक अवसाद के कगार पर पहुंच गई थी. आखिर मुझे मजबूरन घरवालों को इसकी जानकारी देनी पड़ी. घरवालों की ओर से पुलिस को सूचना देने के बाद दो लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया, लेकिन मैं अब भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से डरती हूं."

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल युवाओं में से आधे ने कहा कि उनको किसी अज्ञात व्यक्ति ने ऑनलाइन प्रताड़ित किया और धमकियां दी. इसके अलावा 12 फीसदी को अपने सहपाठियों की प्रताड़ना का सामना करना पड़ा जबकि 14 फीसदी को उनके मित्रों ने ही प्रताड़ित किया. युवाओं का कहना था कि इस तरह के सबसे ज्यादा 36 फीसदी मामले फेसबुक के जरिए हुए और 25 फीसदी में इंस्टाग्राम का सहारा लिया गया. प्रताड़ित करने के तरीकों के बारे में कहा गया है कि 35 फीसदी मामले में संबंधित युवा के बारे में झूठ फैलाया गया या उसे परेशान करने वाले फोटो और वीडियो पोस्ट किए गए. इसके अलावा चेहरे-मोहरे पर सबसे ज्यादा टिप्पणियां की गई.

क्यों हुआ सर्वेक्षण  

यूनिसेफ असम की प्रमुख डॉ. मधुलिका जोनाथन ने डीडब्ल्यू से कहा, "असम सरकार युवाओं को बढ़ावा देने और उनकी प्रतिभा निखारने की दिशा में ठोस प्रयास कर रही है. हमारा संगठन भी युवाओं की बेहतरी के लिए काम कर रहा है. वर्ष 2020 और 2021 के बीच हमने यह समझने का प्रयास किया कि कोविड-19 से युवा तबका कितना प्रभावित हुआ है."

पूर्वोत्तर क्षेत्र के एनएसएस निदेशक दीपक कुमार बताते हैं, "यह सर्वेक्षण राज्य में युवा वर्ग की समस्याओं को समझने का प्रयास था. अब उनसे निपटने की कारगर रणनीति बनाई जा सकती है."

 फेसबुक और इंस्टाग्राम बने ऑनलाइन प्रताड़ना के हथियार
सोशल मीडिया डराने लगा है कुछ युवाओं कोतस्वीर: Dado Ruvic/Illustration/File Photo/REUTERS

अब एनएसएस के स्वयंसेवकों ने तमाम स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की योजना बनाई है. इसके तहत युवाओं को बताया जाएगा कि ऐसी मुश्किल परिस्थिति में फंसने पर वे मदद के लिए कहां गुहार लगा सकते हैं. सर्वेक्षण के दौरान करीब 19 फीसदी युवाओं का कहना था कि ऐसे किसी मामले की सूचना देने के लिए मौजूदा तंत्र सुलभ नहीं है. इसमें कई तरह की दिक्कतें होती हैं. ज्यादातर युवा बदनामी और सामाजिक कलंक के डर से ऐसे मामलों की सूचना घरवालों या पुलिस को नहीं देते.

करीब 60 फीसदी युवाओं ने कहा कि ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने और शैक्षणिक संस्थानों में बेहतर माहौल तैयार करने के लिए संस्थान प्रबंधन और अभिभावकों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है. साथ ही इन पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए.

जाने-माने शिक्षाविद प्रोफेसर शुभमय बसाक कहते हैं, "युवा पीढ़ी में बढ़ते शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए शीघ्र ठोस पहल जरूरी है. इसके लिए कारगर रणनीति बनाने और उनको प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और युवा संगठनों की भागीदारी भी बेहद अहम है."