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कचरे के ढेर से पेट्रोल, डीजल बनाता जाम्बिया

२२ फ़रवरी २०२२

बेकार टायरों और प्लास्टिक के कचरे से हर दिन 70 लाख लीटर पेट्रोल और डीजल बनाना, अफ्रीकी देश जाम्बिया इस राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है.

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दुनिया भर में हर दिन 9 करोड़ बैरल कच्चे तेल की डिमांड
दुनिया भर में हर दिन 9 करोड़ बैरल कच्चे तेल की डिमांडतस्वीर: picture alliance / ASSOCIATED PRESS

जाम्बिया अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है, जो चारों तरफ से जमीन से घिरा है. पौने दो करोड़ की आबादी वाला ये देश पेट्रोल, डीजल और गैस के लिए पूरी तरह विदेशी सप्लाई पर निर्भर रहता है. लेकिन जाम्बिया की कंपनी सेंट्रल अफ्रीकन रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन आयात पर निर्भरता कम करना चाहती है.

कंपनी फिलहाल हर दिन डेढ़ टन कचरे से 600-700 लीटर पेट्रोल और डीजल बना रही है. फिलहाल यह एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है. जाम्बिया हर साल ईंधन के आयात पर 1.4 अरब डॉलर खर्च करता है. देश हर दिन 14 करोड़ लीटर तेल फूंकता है.

पूरी दुनिया का सिरदर्द बन चुका है प्लास्टिक का कचरा
पूरी दुनिया का सिरदर्द बन चुका है प्लास्टिक का कचरातस्वीर: Achala Pussalla/AP Photo/picture alliance

सेंट्रल अफ्रीकन रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्पोरेशन के चीफ एक्जीक्यूटिव मुलेंगा मुलेंगा के मुताबिक, "पूरी क्षमता पर आने पर हमें उम्मीद है कि हम देश की 20-30 फीसदी ईंधन की जरूरत पूरी कर पाएंगे." इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 6 करोड़ डॉलर के निवेश की जरूरत है. मुलेंगा के मुताबिक ऐसा होते ही कंपनी हर दिन 400 टन डीजल, 125 टन पेट्रोल और 30 टन लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का उत्पादन करने लगेगी. क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का 39वां बड़ा देश जाम्बिया इस योजना के जरिए घर के तेल से 50 फीसदी पेट्रोलियम डिमांड पूरी करना चाहता है.

ऐसे प्रोडक्ट्स कितने इको फ्रेंडली

प्लांट में 24 घंटे काम होता है. ट्रक प्लास्टिक के डिब्बे, सिथेंटिक रबर वाले टायर लेकर आते हैं. इस कचरे को एक भट्ठी में डाला जाता है और फिर बेहद उच्च तापमान पर रबर और प्लास्टिक के कचरे को एक रिएक्टर में जलाया जाता है. अगले चरण में कुछ उत्प्रेरक मिलाए जाते हैं. तब जाकर पेट्रोलियम ईंधन मिलता है.

दुनिया भर में कई कंपनियां इस तकनीक में निवेश कर रही हैं. कुछ एक्सपर्ट्स इसे एक तीर से दो शिकार जैसा बताते हैं. एक तरफ कचरे का निपटारा और दूसरी तरफ ईंधन का उत्पादन. लेकिन कचरे को पेट्रोलियम में बदलने की इस प्रक्रिया के लिए बहुत सारी ऊर्जा की जरूरत होती है. बाद में ये पेट्रोलियम्स इस्तेमाल के दौरान फिर पर्यावरण में कार्बन डाय ऑक्साइड घोलेंगे. पर यह बात तो दूसरे देशों से आए पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर भी लागू होती है.

तेल वरदान है या अभिशाप?

कम घातक रास्ता

पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, कोयला या फिर बायोमास जलाने से निश्चित रूप से ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाने वाली गैस सीओटू का उत्सर्जन होता है. बीते डेढ़ दशक से पूरी दुनिया हर दिन 9 करोड़ बैरल से ज्यादा कच्चा तेल इस्तेमाल कर रही है. 2026 तक इस मांग के लगातार बढ़ने का अनुमान है. ये सारा कच्चा तेल जमीन या समुद्र के भीतर से निकाला जाता है. फिर विशाल ऑयल या गैस टैकरों की मदद से इसे हजारों किलोमीटर दूर ट्रांसपोर्ट किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में भी अथाह सीओटू उत्सर्जित होती है.

ऐसे टैंकरों से ट्रांसपोर्ट होती है पेट्रोलियम गैस
ऐसे टैंकरों से ट्रांसपोर्ट होती है पेट्रोलियम गैसतस्वीर: Sergei Krasnoukhov/dpa/TASS/picture alliance

इसी गाढ़े काले और लसलसे कच्चे तेल से ही प्लास्टिक भी बनाया जाता है. इस वक्त पूरी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण की महामारी से जूझ रही है. अलग अलग शोधों के मुताबिक इस वक्त दुनिया में 8.3 अरब टन प्लास्टिक मौजूद है, जिसमें से 6.3 अरब टन कचरे के रूप बिखरा पड़ा है. इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाने वाला प्लास्टिक पृथ्वी पर जमीन, हवा और पानी के ईकोसिस्टम का दम घोंट रहा है.

ऐसे में कुछ लोग कहते हैं कि अगर पेट्रोलियम इस्तेमाल हो ही रहा है तो बेहतर है कि ये रिसाक्लिंग से आए. मुलेंगा कहते हैं, "ये सारा कचरा हटाकर और उसे ऊर्जा में बदलकर हम पर्यावरण की सफाई कर रहे हैं."

ओएसजे/आरपी (रॉयटर्स)