अंटार्कटिक में बर्फ की चादर खतरे में
१९ फ़रवरी २०२०ऑस्ट्रेलिया की एक जलवायु वैज्ञानिक और न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो जोई थॉमस ने बताया कि हाल में हुई मानवीय गतिविधियों ने ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर दिया है और इसकी वजह से अंटार्कटिका में बड़े पैमाने पर बर्फ पिघल सकती है. थॉमस अंटार्कटिक में बर्फ के पिघलने पर हाल ही एक शोध पत्र छापने वाली वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा थीं.
इस अध्ययन ने दिखाया कि अगर वैश्विक गर्मी और बढ़ी तो पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की चादर का ज्यादातर हिस्सा नष्ट हो सकता है. यह चादर समुद्र के तल पर स्थित है और इसके चारों और तैरती हुई बर्फ है.
थॉमस ने कहा, "हम पश्चिमी अंटार्कटिक में जो बर्फ की चादर देख रहे हैं कि उसके पिघलने की शुरुआत हो चुकी है. एक बार हम एक विशेष सीमा रेखा तक पहुंच गए तो फिर हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद इसे पिघलने से नहीं रोका जा सकता."
टीम को उम्मीद है कि यह पता करने के लिए शोध चलता रहेगा कि बढ़ते हुए तापमान के प्रति बर्फ की चादरें कितनी जल्दी प्रतिक्रिया देती हैं. इससे भविष्य के लिए और ज्यादा ठोस समयसीमा तय करने में सहायता मिलेगी. अंटार्कटिका के इतिहास में सबसे गर्म तापमान 18.3 डिग्री सेल्सियस एक शोध अड्डे पर छह फरवरी को दर्ज किया गया था. अगर गर्म तापमान बना रहा तो उसकी वजह से पूरी दुनिया में समुद्र के जल स्तर में अत्यधिक वृद्धि हो सकती है.
थॉमस का कहना है, "ये धीरे धीरे लोगों को विस्थापित कर देगा. हम जानते हैं कि ये छोटे द्वीप समुदायों में होना शुरू भी हो चुका है और ये धीरे धीरे होता रहेगा. और भी घर पानी में डूब जाएंगे, पहले ऊंचे ज्वार में, फिर सामान्य ज्वार में और फिर नीचे ज्वार में भी."
थॉमस के अनुसार अगर दुनिया भर के देश कार्बन में कटौती करें तो बर्फ पिघलने की रफ्तार को कम किया जा सकता है. उन्होंने कहा, "एक बार हम कार्बन-रहित भविष्य के प्रति खुद को प्रतिबद्ध कर लें तो फिर पर्यावरण में से कार्बन को हटाने के संभावित उपायों के बारे में सोचना शुरू कर सकते हैं."
कई विकसित देशों ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट शून्य तक कम करने का प्रण लिया है. हालांकि ऑस्ट्रेलिया की ओर से इस विषय पर ढीला रवैय्या देखने को मिल रहा है. यह रवैया तब है जब ऑस्ट्रेलिया अभी अभी सबसे बुरे जंगली आग के मौसमों में से एक से गुजरा है.
ब्रिटेन के मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते एक पूर्वानुमान जारी किया. इसके अनुसार, 60 साल पहले जब से पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा रिकॉर्ड करने की शुरुआत हुई है तब से लेकर आज तक कभी भी कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में इतनी वृद्धि नहीं हुई जितनी इन आगों की वजह से हुई.
सीके/एके (रायटर्स)
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