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अफगानिस्तान से हड़बड़ी में क्यों निकल रहा है अमेरिका

मसूद सैफुल्लाह
३ जून २०२०

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दी गई एक रिपोर्ट कहती है कि तालिबान और अल कायदा के बीच अब भी करीबी रिश्ते हैं. इसके बावजूद अमेरिका अफगानिस्तान ने निकलने की हड़बड़ाहट क्यों दिखा रहा है.

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Afghanistan 2017 | Operation Resolute Support | US-Armee
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Operation Resolute Support Headquarters/Sgt. Justin T. Updegraff

29 फरवरी को कतर की राजधानी दोहा में जब अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ, तो उसमें एक अहम शर्त थी. शर्त थी कि तालिबान 11 सितंबर 2001 के हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकवादी संगठन अल कायदा से कोई संबंध नहीं रखेगा. डील के समय तालिबान ने कहा कि उसने अल कायदा से रिश्ते पहले ही तोड़ लिए हैं. 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में राज करने वाले तालिबान ने ही अल कायदा को सुरक्षित ठिकाना दिया था.

लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को स्वतंत्र निरीक्षकों ने एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के बीच अब भी करीबी गठजोड़ है. रिपोर्ट कहती है, "तालिबान अमेरिका से तोल मोल के दौरान नियमित रूप से अल कायदा से मशविरा लेता रहा और इस बात की गारंटी भी देता रहा कि वह ऐतिहासिक रिश्तों का सम्मान करता रहेगा.” अमेरिका इस रिपोर्ट को खारिज कर रहा है.

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सेना वापस बुलाने की हड़बड़ी

तालिबान के बढ़ते हमलों के बावजूद अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला रहा है. यह सोचना कल्पना से परे है कि समझौते पर दस्तखत करते समय अमेरिका को तालिबान और अल कायदा के रिश्तों का पता नहीं था. इसके बावजूद वॉशिंगटन ने तालिबान के साथ समझौता किया.

पश्चिमी राजनयिक मीडिया से कहते हैं कि दोहा डील में निर्धारित समयसीमा से पहले ही अमेरिका अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या घटाकर 8,600 कर देगा. 

दोहा डील के मुताबिक अमेरिका को मध्य जुलाई तक अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या 13,000 से घटाकर 8,600 करनी है. समझौते के मुताबिक मई 2021 तक अमेरिकी फौज को पूरी तरह अफगानिस्तान छोड़ना होगा. अमेरिका और नाटो के अधिकारियों के मुताबिक सैनिकों की वापसी का पहला चरण मध्य जून तक, यानि एक महीने पहले ही पूरा सकता है.

कोरोना वायरस और चुनावी वादा

अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं. ट्रंप अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने का एलान बीते चुनावों में कर चुके हैं. अब वादा पूरा करने का वक्त करीब आ रहा है.

विशेषज्ञ अमेरिका में फैले कोरोना वायरस को इसकी वजह बताते हैं. कोरोना वायरस के चलते अमेरिका में अब तक 1,00,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. ट्रंप प्रशासन एक अभूतपूर्व हेल्थ इमरजेंसी का सामना कर रहा है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है. युद्धग्रस्त इलाके में तैनात अमेरिकी सैनिक भी कोरोना वायरस की चपेट में आ सकते हैं.

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कोरोना तो बहाना है

लेकिन कुछ विश्लेषक सैनिकों की इस जल्द वापसी के लिए कोरोना वायरस को जिम्मेदार नहीं मानते. अफगान सुरक्षा विशेषज्ञ अतीकउल्लाह अमरखाइल कहते हैं, "अफगानिस्तान सरकार शांति प्रक्रिया को लेकर बहुत ज्यादा प्रगति नहीं कर रही है और अमेरिका का सब्र टूट रहा है. वॉशिंगटन अधिकारियों को इस बात के साफ संकेत देना चाहता है कि हालात कैसे ही हों, वो यह देश छोड़ देगा.”

अमेरिका और तालिबान के समझौते में अफगान सरकार शामिल नहीं है. समझौता बीते तीन महीनों में कई हिचकोले खा चुका है. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार तालिबान कैदियों को रिहा करने में हिचकिचा रही है. और तालिबान ने भी अफगान सुरक्षा बलों पर अपने हमले रोके नहीं हैं.

वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक, विल्सन सेंटर के दक्षिण एशिया के एक्सपर्ट मिषाएल कुगेल्मन कहते हैं, "अगर शांति प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी तो आपसी अफगान वार्ता शुरू नहीं होगी, फिर मुझे लगता है कि ट्रंप प्रशासन मध्यस्थता की कोशिशें बंद कर देगा, खुद को इसमें कम शामिल करेगा और मुमकिन है कि जल्द ही वहां से अपनी सेना भी वापस बुला लेगा.”

वह कहते हैं, "राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस का हवाला देते हुए एलान करेंगे कि वह अपनी सेना को तालिबान के हमलों और महामारी के जोखिम के सामने ऐसे नहीं रख सकते.”

अमेरिकी रणनीति का असर

सेना को जल्द निकालने के संकेत देकर अमेरिका अफगान सरकार और विद्रोहियों को बातचीत के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है. काबुल और विद्रोही गुटों के बीच आपसी भरोसा बढ़ाने के कुछ कदम उठाए जा रहे हैं.

मई में ईद के मौके पर तालिबान ने तीन दिन के संघर्ष विराम का एलान किया. अफगान राष्ट्रपति ने इस कदम की तारीफ की और "सद्भावना” के तौर पर करीब 2000 तालिबान बंदियों को रिहा किया.

गनी अपने धुर राजनीतिक विरोधी अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह के साथ मतभेद कम करने में कुछ हद तक सफल हुए हैं. अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह ने 2019 के चुनावों को खुद को विजेता घोषित किया था, तब से वह समानान्तर सरकार भी चला रहे थे. अंतराराष्ट्रीय मध्यस्थता के बीच हाल ही में गनी और अब्दुल्लाह ने सत्ता साझा करने का एक समझौता भी किया. इसके तहत अब्दुल्लाह अफगानिस्तान की हाई काउंसिल फॉर पीस का नेतृत्व करेंगे और गनी राष्ट्रपति बने रहेंगे.

अफगान सरकार ने तालिबान के साथ बातचीत के लिए एक टीम भी गठित की है. अब्दुल्लाह कहते हैं कि, "काबुल किसी भी समय बातचीत शुरू करने के लिए तैयार है.”

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