1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हमले से लड़ने के लिए सलमान रुश्दी को पढ़ना होगा

टॉर्स्टेन लांड्सबर्ग
१९ अगस्त २०२२

जिस तरह से सलमान रुश्दी के खिलाफ बयान आ रहे हैं, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बोलने वाले इसी तरह लोगों को डराते हैं और डराकर चुप कराना चाहते हैं. पर वो जैसा चाहते हैं, उसका उल्टा भी हो सकता है.

https://p.dw.com/p/4FnfG
2012 में कनाडा के टोरंटो में सलमान रुश्दी
2012 में कनाडा के टोरंटो में सलमान रुश्दीतस्वीर: Chris Young/empics/picture alliance

भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी जैसे लोगों के खिलाफ आतंकी कार्रवाई और घृणास्पद बयानों का एकमात्र मकसद लोगों को डराना और आलोचना करने वाले का मुंह बंद कराना है. ऐसे लोग दुनिया को यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी पर भरोसा करने वालों की हत्या भी हो सकती है और इस तरह से लेखकों और सांस्कृतिक संगठनों पर भी दबाव बनाने की कोशिश करते हैं कि वो ऐसा ना करें, अन्यथा उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

मई महीने में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन सप्ताह के मौके पर सलमान रुश्दी ने कहा था, "अभिव्यक्ति की आजादी वह आजादी है जिस पर तमाम दूसरी तरह की स्वतंत्रताएं निर्भर होती हैं.”

इसे सौभाग्य ही समझा जाये कि अभिव्यक्ति पर इस तरह के शुरुआती हमलों और अपराधों के बाद इसमें कमी आ जाती है. मसलन, साल 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य समाचार पत्र शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए हमले के बाद जैसा हुआ था.

यह भी पढ़ियेः हमले के लिये खुद रुश्दी जिम्मेदारः ईरान

रुश्दी को पढ़कर लड़ना

आलोचक रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेस' 1988 में छपी थी, लेकिन इतने सालों बाद लेखक को मारने की कोशिश करके हमलावर अपनी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं. यह अपराध के पागलपन को उजागर करता है.

दूसरी ओर, रुश्दी पर चाकू से हुए हमले की घटना ने तीन दशक पुरानी इस किताब को फिर से चर्चा में ला दिया है. रुश्दी की हत्या की कोशिश के बाद से ‘द सैटेनिक वर्सेस' की जमकर बिक्री हो रही है और ऑनलाइन कंपनी अमेजन की बिक्री सूची में यह शीर्ष पर है.

पेन सेंटर जर्मनी की वाइस प्रेसिडेंट कॉर्नेलिया जेत्शे
पेन सेंटर जर्मनी की वाइस प्रेसिडेंट कॉर्नेलिया जेत्शेतस्वीर: PEN-Zentrum Deutschland

डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में पीईएन सेंटर जर्मनी की वाइस प्रेसीडेंट कॉर्नेलिया जेत्शे कहती हैं, "रुश्दी के लिये लड़ने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उन्हें पढ़ा जाए और लेखक में छिपे राजनीतिक व्यक्तित्व को उजागर किया जाए.”

‘द सैटेनिक वर्सेस' दो भारतीय अभिनेताओं की कहानी है जो एक विमान दुर्घटना में बच जाते हैं. इनमें से एक फरिश्ता या देवदूत बन जाता है जबकि दूसरा एक शैतान जैसा दिखता है. उपन्यास के शीर्षक का संदर्भ उन दो शब्दों से है जिन्हें शैतान पैगंबर मोहम्मद के लिए धीमी आवाज में इस्तेमाल करता है. कुरान के इतिहास को जाने बिना रुश्दी के संकेतों को समझना आसान नहीं है.

किताब के प्रकाशन के छह महीने बाद, फरवरी 1989 में ईरान के क्रांतिकारी नेता आयतुल्ला खमेनेई ने रुश्दी के खिलाफ एक फतवा जारी किया और सभी मुसलमानों से अपील की कि ईशनिंदा के चलते उनकी हत्या कर दी जाए.

अनुवादक की हत्या

रश्दी को मारने के एवज में इनाम की घोषणा भी की गई थी जो सरकार से जुड़ी संस्थाओं, निजी लोगों और सरकारी मीडिया के जरिए बढ़ते-बढ़ते चालीस लाख डॉलर तक हो गई थी.

उस वक्त किताब के कुछ अनुवादक भी रुश्दी के आलोचकों की हिट लिस्ट में आ गए थे. जापानी भाषा के अनुवादक और इस्लामी स्कॉलर हितोशी इगाराशी की 1991 में किसी अज्ञात व्यक्ति ने हत्या कर दी. जर्मन भाषा में इस किताब का अनुवाद करने वाले व्यक्ति का नाम अभी भी गुप्त रखा जाता है. रुश्दी खुद कई साल तक निजी सुरक्षा में अज्ञात जगहों पर रहे.

कॉर्नेलिया जेत्शे कहती हैं, "फतवा ने उनके जीवन को जैसे दो भागों में बांट दिया- एक किताब लिखने से पहले और उसके बाद क्योंकि हत्या के प्रयास की आशंकाएं बनी हुई थीं. हालांकि किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि इतने दिनों के बाद भी रुश्दी लोगों के निशाने पर हैं. पिछले 20 वर्ष से वो आमतौर पर स्वतंत्र और स्वच्छंद जीवन व्यतीत कर रहे थे. यह उम्मीद करना मुश्किल है कि एक बार फिर वो इसी तरह से रह पाएंगे.”

रुश्दी, नेसिन और वालरॉफ जर्मनी में
रुश्दी, नेसिन और वालरॉफ जर्मनी मेंतस्वीर: Günther Zint/Panfoto/picture-alliance/dpa

रुश्दी के बेटे जफर का भी कहना है कि उनके पिता को जो जख्म मिले हैं वो उनकी जिंदगी को बदल देने वाले हैं. पिछले दिनों उन्होंने ट्वीट करके कहा था, "लेकिन उनका उत्साही जीवन और सेंस ऑफ ह्यूमर अभी भी वैसा ही है.”

जेत्शे रुश्दी को तीस साल से भी ज्यादा समय से जानती हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "भाषा के मामले में सलमान रुश्दी सबसे ज्यादा शक्तिशाली लेखकों में से एक हैं. मैं उनकी उदासीनता, बुद्धिमानी और खुद का विरोध करने की प्रवृत्ति की प्रशंसक हूं.”

वो हमेशा बेपरवाह दिखाई देते थे'

पत्रकार और लेखक गुंटर वॉलराफ रुश्दी को कई दशक से जानते हैं. 1993 में उन्होंने रुश्दी को कोलोन स्थित अपने घर पर बुलाया था. कुछ साल पहले डेनमार्क में उनकी रुश्दी से मुलाकात हुई थी.

वॉलराफ कहते हैं, "वो हमेशा बेपरवाह दिखते थे लेकिन इस माहौल ने उन्हें काफी सतर्क कर दिया था.”

रुश्दी कई साल तक न्यूयॉर्क में रहे जहां वो काफी आजादी से इधर-उधर जाते थे और खुद को सुरक्षित महसूस करते थे. इस बात को उन्होंने खुद स्वीकार किया था. वॉलराफ यह भरोसा नही कर पाते हैं कि इतने दिनों के बाद कोई व्यक्ति उनकी जान लेने की कोशिश कैसे कर सकता है. वो कहते हैं, "महत्वपूर्ण बात यह है कि हत्या की कोशिश करने वाला यह अनुरोध कर रहा है कि वो दोषी नहीं है.” 

जैसा कि इस तरह के हर अपराधी को लगता है कि वो जो कर रहा है वो ईश्वर की इच्छा से कर रहा है और इसके लिए वो दोषी नहीं है. वॉलराफ स्वीकर करते हैं, "कि यह एक व्यापक लोकतांत्रिक प्रतिवाद है जो कि आजादी के पक्ष में खड़ा है और इस तरह की कार्रवाइयों से उसे मजबूती मिलती है.”

सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले से साहित्य जगत में बेचैनी है
सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले से साहित्य जगत में बेचैनी हैतस्वीर: Tolga Akmen/AFP via Getty Images

नोबेल पुरस्कार के जरिए संदेश?

कॉर्नेलिया जेत्शे कहती हैं कि एकजुटता के संदेशों को कम करके नहीं आंकना चाहिए, "जो बात पीड़ित लेखकों को मनोवैज्ञानिक रूप से मदद करती है वो ये ज्ञान है कि उन्हें भुलाया नहीं गया है.”

पीईएन जर्मनी ने हाल ही में घोषणा की है कि वो रुश्दी को अपनी संस्था का सम्मानित सदस्य बनाएगी. अंतरराष्ट्रीय लेखक संघ भी कुछ ऐसी व्यवस्था कर रहा है जिससे ‘द सैटेनिक वर्सेस' को दुनिया भर में डिजिटल रूप में पढ़ा जा सके, उसी तरह जैसे 1989 में फतवा जारी होने के बाद पूरी दुनिया में पढ़ा गया था.

गुंटर वॉलराफ कहते हैं, "रुश्दी को साहित्य का नोबेल मिलना बाकी है. दरअसल, ये तो उन्हें तभी मिल जाना चाहिए था जब खमेनेई ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया था लेकिन स्वीडिश एकेडमी जैसी कई संस्थाएं राजनीतिक कारणों और ईरान के साथ आर्थिक हितों को देखते हुए इसकी सिफारिश नहीं कर सकीं.”

वॉलराफ जोर देकर कहते हैं कि अब समय आ गया है कि यह पुरस्कार देकर एक संदेश दिया जाए. वॉलराफ अपनी इस सूची में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए जूलियन असांज और आलेक्सी नावल्नी का नाम भी जोड़ देते हैं.