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अमीर देश वादे पर खरे नहीं उतरेः संयुक्त राष्ट्र

६ सितम्बर २००८

संयुक्त राष्ट्र संघ की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के अमीर देश अपने वादों पर क़ायम नहीं रहे हैं और वे ग़रीब देशों को मदद का पूरा पैसा नहीं दे रहे हैं.

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समय हाथ से निकल रहा हैः बान की मूनतस्वीर: AP

रिपोर्ट में सहस्राब्दी लक्ष्यों को प्राप्त करने पर हो रही प्रगति पर ध्यान केन्द्रित किया गया. इसमें चेतावनी दी गई कि 2015 तक दुनिया में ग़रीबी को बड़े हद तक मिटाने के लिए जो लक्ष्य तय किये गए थे वे पूरे नहीं हो पाएंगे. हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हालात कुछ बेहतर हुए हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं.

आठ साल पहले दुनिया के नेताओं ने तय किया था कि 2015 तक दुनिया से ग़रीबी, भुखमरी और बीमारियां बड़े हद तक कम की जाएंगी.

लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर देश अपने वादे पर खरे नहीं उतरे हैं और 2005 में ग्लेनेगल्स सम्मेलन के दौरान जिस मदद पर सहमति हुई थी, वह नहीं दी जा रही है. साथ ही कहा गया कि अब हर साल मदद बढ़ा कर 18 अरब डॉलर करनी होगी. रिपोर्ट के अनुसार अत्यंत ग़रीब देशों के ऋण में कुछ हद तक कटौती की गई है लेकिन व्यापार और विकास के लिए जो आश्वासन दिये गए थे वे पूरे नहीं किये गए हैं.

समय के साथ रेसः बान की मून

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा है कि यह रिपोर्ट एक "चेतावनी" है. "हम पहले ही ग़रीबी के खिलाफ संघर्ष में बहुत समय खो चुके हैं और अब समय हमारे हाथ से निकल रहा है."

बान की मून ने अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ से अपील की कि वे वादे के मुताबिक मदद का पैसा दें.

लेकिन यूरोपीय संघ के कुछ प्रतिनिधियों का मानना है कि खाड़ी के देशों और चीन को और मदद देनी होगी और रूस को भी अब आगे आना चाहिये.

इसी महीने होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभी में दुनिया के नेता ग़रीबी हटाने के लक्ष्यों पर बात करने वाले हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि इस समय आर्थिक मंदी, खाद्य पदार्थों में कमी और तेल की बढ़ती क़ीमतों के चलते शायद ही कोई इस विषय को गंभीरता से लेगा.