अमेरिकी भारतीयों की वीजा की दिक्कत
२९ दिसम्बर २०१०भारतीय समुदाय के अमेरिकियों ने ह्यूस्टन, सैन फ्रांसिस्को और शिकागो जैसी जगहों पर भारतीय वाणिज्य दूतावासों के सामने प्रदर्शन भी किए हैं. अमेरिका में भारतीय दूत रहे रोनेन सेन ने तीन साल पहले वीजा पाने के लिए आउटसोर्सिंग की शुरुआत की थी, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं मिल पाया है.
ह्यूस्टन और सैन फ्रांसिस्को जैसी जगहों पर तो वीजा के लिए चार चार हफ्तों का इंतजार करना पड़ रहा है. अधिकारियों का कहना है कि मुंबई हमलों में साजिश रचने के आरोपी डेविड कोलमैन हेडली के मामले का बाद वीजा जारी करने में अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही है.
भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक संगठन जीओपीआईओ के अध्यक्ष इंदर सिंह का कहना है कि हर दिन के साथ मुश्किल बढ़ती जा रही है. सिंह अगले महीने भारत में होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस में हिस्सा लेने जा रहे हैं और इस मुद्दे को भारतीय अधिकारियों के सामने उठाएंगे.
ह्यूस्टन के रमेश शाह का कहना है, "समस्या इतनी बड़ी हो गई है कि अब हम चुप नहीं रह सकते हैं." ह्यूस्टन वाणिज्य दूतावास में वीजा पाने में हो रही दिक्कत के बाद रमेश शाह ने वहां एक दिन का उपवास भी रखा.
विजय पालोड का कहना है कि पहले एक दिन में वीजा मिल जाता था और अब अधिकारी कह रहे हैं कि इसमें चार हफ्तों का वक्त लगेगा. उनका कहना है, "मेरे लिए इस बात का यकीन करना बहुत मुश्किल था. जो शिकायतें मैं सुन रहा था, वह सही हैं. जब मैंने फॉर्म भरना शुरू किया, तो मुझे मेसेज मिला कि जब तक वीजा न मिल जाए, मुझे टिकट नहीं खरीदना चाहिए."
जीओपीआईओ के संस्थापक सदस्य और पहले अध्यक्ष थॉमस अब्राहम का कहना है कि नए नियमों से भारतीय अमेरिकी बेहद नाराज हैं क्योंकि अधिकारी उन्हें पुराना पासपोर्ट जमा कराने को कह रहे हैं और नए नियमों में वीजा पाने में वक्त लग रहा है.
न्यू यॉर्क में रहने वाले अब्राहम ने बताया, "कई भारतीय अमेरिकियों को सर्दियों का अपना भारत दौरा रद्द करना पड़ा क्योंकि उन्हें वीजा नहीं मिल पाया. कुछ लोगों को अचानक भारत जाने की जरूरत थी लेकिन वीजा नहीं मिलने की वजह से वे नहीं जा पाए." उन्होंने बताया कि भारतीय दफ्तरों में काम करने वाले लोगों की कमी है.
हालांकि वीजा किसी देश का आंतरिक मामला होता है और वीजा देने वाला देश ही इस बारे में आखिरी फैसला करता है. लेकिन अमेरिका ने अपने नागरिकों से कहा है कि अगर किसी को वीजा में दिक्कत हो रही है तो वह विदेश मंत्रालय या संसद सदस्य से बात कर सकता है.
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः ए कुमार