अयोध्या विवाद पर ये थीं सभी पक्षों की मुख्य दलीलें
१६ अक्टूबर २०१९बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद की लंबी यात्रा एक अहम पड़ाव पर पहुंच चुकी है. बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में पिछले 40 दिनों से रोज चल रही सुनवाई समाप्त हो गई और 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया. इस पीठ का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई कर रहे हैं जो 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. लिहाजा यह माना जा रहा है कि फैसला 17 नवंबर से पहले आ ही जाएगा.
सुनवाई शुरू होने के पहले पीठ ने कोशिश की थी की दशकों से चले आ रहे इस विवाद का समाधान मध्यस्थता के जरिए हो और इसके लिए मध्यस्थों का एक तीन-सदस्यीय पैनल भी नियुक्त किया जाए. लेकिन यह पैनल भी मसले को सुलझा नहीं सका और अदालत को सुनवाई शुरू करनी पड़ी.
पीठ ने प्रतिदिन कड़ी समय सीमा में सुनवाई का संचालन किया और जब जब आवश्यकता पड़ी तब अतिरिक्त समय भी दिया. पर बुधवार को जब एक पक्ष ने और समय मांगा तो मुख्य न्यायाधीश ने "बस, बहुत हो गया" कहते हुए शाम 5 बजे सुनवाई समाप्त करने का वक्त तय कर दिया.
सुनवाई के आखिरी दिन अदालत में कुछ नाटकीय पल भी देखने को मिले जब मुस्लिम पक्ष में वकील राजीव धवन ने हिन्दू पक्ष द्वारा आखिरी दिन पेश किये गए एक नक्शे को भरी अदालत में फाड़ दिया. जस्टिस गोगोई इस पर नाराज भी हुए और वॉक-आउट करने की धमकी भी दी. लेकिन अंत में सुनवाई सिर्फ भोजनावकाश के लिए स्थगित हुई और उसके बाद फिर से शुरू हो गई.
बुधवार की सुबह एक और महत्वपूर्ण घटना हुई. मुस्लिम पक्षों में से एक सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अदालत से कहा कि वह अपनी अपील को वापस ले लेना चाहता है, अगर उसकी कुछ शर्तें मान ली जाएं. इसका मतलब यह है कि विवादित भूमि पर राम मंदिर बने, इस से सुन्नी वक्फ बोर्ड को कोई ऐतराज नहीं होगा अगर उसकी शर्तें मान ली जाएं. कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शर्तों में ये मांगें शामिल हैं कि मुस्लिम पक्षों को बाबरी मस्जिद कहीं और बनाने के लिए जगह दे दी जाए, अयोध्या में स्थित 22 और मस्जिदों का जीर्णोद्धार हो, इसके बाद पूरे देश में सभी मस्जिदों को संरक्षण मिले, इत्यादि.
हालांकि पीठ ने वक्फ बोर्ड के इस कदम के बावजूद सुनवाई जारी रखी और फैसला सुरक्षित रख लिया. जानकारों का कहना है कि इसके आगे की कार्यवाही पीठ पर ही निर्भर करती है. वह वक्फ बोर्ड के कदम को दरकिनार भी कर सकती है या उसके आधार पर ही अपना फैसला भी दे सकती है.
अयोध्या: कब क्या हुआ
क्या है विवाद
बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 16वीं शताब्दी में मुगल शहंशाह बाबर द्वारा बनवाई गई एक मस्जिद थी. 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस विवाद का जन्म हुआ कि जिस स्थल पर मस्जिद बनी हुई थी वह हिन्दू धर्म में भगवान माने जाने वाले राम की जन्मभूमि थी. कुछ हिन्दू संगठनों का कहना था की वहां पर राम का एक प्राचीन मंदिर था और बाबर ने उस मंदिर को तुड़वा कर वहां मस्जिद बनवाई.
1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर अचानक संदेहास्पद रूप से राम और उनकी पत्नी सीता की मूर्तियां दिखाई दीं और उसके बाद से मंदिर-मस्जिद विवाद और गहरा गया. उस समय की उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने पूरे परिसर पर ही ताला लगा दिया.
1986 में राजीव गांधी सरकार ने परिसर के ताले खुलवा दिए और उसके बाद बीजेपी ने राम जन्मभूमि राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत की. पूरे देश से कार्यकर्ताओं और हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों को अयोध्या आने का आह्वान किया गया और राम मंदिर बनाने के लिए लड़ जाने के लिए प्रेरित किया गया.
6 दिसंबर 1992 को इसी आंदोलन के तहत बीजेपी नेताओं की उपस्थिति में कार्यकर्ताओं की एक भीड़ मस्जिद के ऊपर चढ़ गई और उसे तोड़ दिया. इस घटना से देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिनमे कम से कम 2000 लोग मारे गए.
इसके बाद इस विवाद ने दो तरह के कानूनी विवादों का रूप ले लिया - एक मस्जिद को गिराने से संबंधित आपराधिक केस और दूसरा विवादित जमीन पर मालिकाना हक के लिए सिविल केस. आपराधिक मामले में सुनवाई तो आज तक चल रही है पर स्वामित्व वाले मामले में अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में अपना फैसला सुना दिया था.
अदालत ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया. तीनों ही पक्षों ने उच्च न्यायालय के फैसले को नहीं माना और उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. 9 सालों तक सर्वोच्च न्यायालय में चलने के बाद अब जा कर इस मामले पर सुनवाई पूरी हुई है और अब सभी निगाहें 5 जजों वाली संविधान पीठ की ओर हैं.
क्या रहीं दलीलें
40 दिनों तक प्रतिदिन होने वाली इस सुनवाई में सभी पक्षों ने ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक जैसी हर तरह की दलीलें दीं.
हिन्दू पक्ष की दलीलों में शामिल थी -
- उस स्थान पर राम का जन्म हुआ था, यह आस्था ही अपने आप में सबूत है.
- हिन्दू धर्म के ग्रंथों और पुराणों में और यात्रियों के वृत्तांत में भी इस आस्था का वर्णन है.
- जिस तरह सड़क पर नमाज अदा करने से सड़क पर नमाजियों का मालिकाना हक नहीं बन जाता, ठीक उसी तरह विवादित स्थान पर भी लंबे समय से नमाज पढ़े जाने ने उसपर मुस्लिम पक्ष का स्वामित्व नहीं बनता.
- मस्जिद के ढांचे के अंदर इंसानों की और जानवरों की छवियां हैं जिनका तस्वीरों में प्रमाण है. इस्लाम में प्रतिरूप निषेध हैं और इसीलिए यह संभव नहीं कि यहां मस्जिद रही हो.
- पुरातत्व विभाग ने विवादित स्थल पर खुदाई भी की थी और 2003 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वहां एक मंदिर था.
- विवादित स्थल पर मस्जिद बनाने की इस्लाम में भी इजाजत नहीं है.
मुस्लिम पक्ष की मुख्य दलीलें थीं -
- पुरात्तव विभाग की रिपोर्ट अधूरी थी और उस पर किसी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. लिहाजा उसे तरजीह नहीं दी जानी चाहिए.
- हिन्दू सिर्फ परिसर के बाहरी आंगन की पूजा करते थे जिसे राम चबूतरा कहते हैं. 22-23 दिसंबर 1949 के बीच की रात में चुपके से राम और सीता की मूर्तियों को मस्जिद के अंदर पहुंचा दिया गया.
- सिर्फ परिक्रमा करने से स्वामित्व साबित नहीं होता.
- लगभग सभी राजपत्रों में मस्जिद के होने का जिक्र है और किसी भी राजपत्र में जन्मभूमि जैसे किसी स्थल का वर्णन नहीं है.
- ब्रिटिश राज ने बाबर द्वारा दी गई और नवाबों द्वारा भी कायम रखी गई जागीर को मान्यता दी.
भूतकाल के राजाओं और शहंशाओं के कृत्यों की नैतिकता पर चर्चा करके इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास ठीक नहीं क्योंकि एक बार इतिहास में पीछे जाना शुरू किया तो कहां जा कर रुकेंगे इसका फैसला कौन लेगा.
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