आईएसआई के आतंकी संपर्क के दस्तावेज लीक
२६ जुलाई २०१०इंटरनेट पर इस तरह के दस्तावेज जारी कर लोगों को इसकी जानकारी देने वाली वेबसाइट विकीलीक्स ने लगभग 92,000 दस्तावेजों को जारी कर दिया है. इसमें अफगानिस्तान की लड़ाई के बारे में ऐसी जानकारियां हैं, जिनके बारे में अमेरिकी रक्षा विभाग या दूसरी जगहों से रिपोर्टें नहीं मिली हैं.
न्यू यॉर्क टाइम्स इन दस्तावेजों को प्रकाशित करने वाले तीन शुरुआती अखबारों में है. उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है, "आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का साथी पाकिस्तान अपनी खुफिया एजेंसी को तालिबान से सीधी मुलाकात की इजाजत देता है." अखबार ने दस्तावेजों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि दोनों पक्षों में गुप्त रूप से रणनीतिक बातचीत होती है और ऐसे आतंकवादी संगठनों को तैयार करने की चर्चा होती है, जो अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ लड़ सकें. दस्तावेजों के मुताबिक, "यहां तक कि अफगान नेताओं की हत्या की साजिश भी की जाती है.
अमेरिका में व्हाइट हाउस से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेम्स जोन्स ने एक बयान जारी कर कहा कि ये लीक बेहद गैर जिम्मेदाराना हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि इससे अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिकी नीतियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जोन्स ने बयान में कहा, "अमेरिका इन दस्तावेजों को लीक करने और खुफिया जानकारी सामने लाने की निंदा करता है. इससे अमेरिकीयों और हमारे साझीदारों की जान खतरे में पड़ सकती है और हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा पैदा हो सकता है."
हालांकि उन्होंने साथ ही कहा, "इस गैरजिम्मेदाराना लीक से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के प्रति हमारे रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हमने मिल कर अपने दुश्मनों को हराने की योजना बनाई है. हम अफगान और पाकिस्तानी जनता के साथ हैं."
न्यू यॉर्क टाइम्स ने कहा है कि उसके अलावा ब्रिटेन के अखबार गार्डियन और जर्मनी के डेयर श्पीगल पत्रिका को कुछ हफ्ते पहले विकीलीक्स नाम की वेबसाइट ने ये दस्तावेज दिए हैं. विकीलीक्स इस तरह के दस्तावेजों को इंटरनेट पर जारी करता है.
बताया जाता है कि विकीलीक्स को ये दस्तावेज अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों और युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों से मिले हैं. रविवार को ही विकीलीक्स ने इन दस्तावेजों को इंटरनेट पर जारी करने का फैसला किया और न्यू यॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए भी यही दिन चुना.
अखबार ने कहा है कि ज्यादातर रिपोर्टें सामान्य और साधारण हैं लेकिन नौ साल से चल रही जंग के बारे में कई हैरान कर देने वाली रिपोर्टें भी हैं. इसके मुताबिक कई दस्तावेजों की पुष्टि नहीं की जा सकी क्योंकि वे सीधे अफगानिस्तान की खुफिया विभाग के भेदियों और पैसों के लिए जानकारी देने वालों की तरफ से आई लगती हैं. लेकिन इनके मुताबिक लगता है कि अफगान खुफिया विभाग पाकिस्तान को अपना दुश्मन मानता है.
ब्रिटेन के गार्डियन अखबार के मुताबिक इन फाइलों से अफगानिस्तान में नाकाम होती लड़ाई की तस्वीर उभरती है. इसमें कहा गया है कि नैटो की संयुक्त सेना के हमले में लगातार आम अफगान शहरी मारे जा रहे हैं. दस्तावेजों में ऐसे 144 मामलों का जिक्र किया गया है. अखबार के मुताबिक तालिबान के हमलों में भी आम लोग मारे जा रहे हैं और सड़क किनारे बम हमलों में 2000 लोग जान गंवा चुके हैं.
दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिका ने इस बात पर चिंता जताई है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के तार सीधे अफगानिस्तान के आतंकवादियों से जुड़े हैं. ऐसे ही एक मामले में अमेरिका के रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने 31 मार्च, 2009 को लिखा, "आईएसआई का आतंकवादी संगठनों से संपर्क हमारे लिए बेहद चिंता का विषय है. हमने पाकिस्तान को भी इस बारे में बता दिया है."
जोन्स का कहना है कि इन दस्तावेजों में ज्यादातर मामले 2004 से 2009 के बीच के हैं. इस दौरान ज्यादातर समय जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उन्होंने कहा कि एक दिसंबर, 2009 को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नई नीति का एलान किया और इसमें पाकिस्तान में अल कायदा और तालिबान के सुरक्षित ठिकारों को निशाना बनाने की बात कही गई.
जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल ने अपनी वेबसाइट पर विशालकाय खबर छापी है, जिसमें कहा गया है कि दस्तावेजों से अफगानिस्तान की भयावह तस्वीर उभरती है. इसके मुताबिक नौ साल बाद भी अफगान सुरक्षा एजेंसियां तालिबान के सामने कमजोर नजर आती हैं. हाल के सालों में पाकिस्तान के सहयोग से उत्तरी अफगानिस्तान में भी तालिबान हमले बढ़े हैं, जहां जर्मन सेना तैनात है.
अमेरिका के एक सैनिक अधिकारी का कहना है कि जो भी इस मुद्दे पर नजर रखे हुए है, उसे इस बात पर भला क्या आश्चर्य हो सकता है कि आईएसआई को लेकर चिंता जताई जाती है और पाकिस्तान में आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकाने हैं. अधिकारी के मुताबिक ये बात तो कई बार कही भी जा चुकी है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः वी कुमार