आउशवित्स की यातना से आजादी की याद
आज आउशवित्स-बिर्केनाउ यातना शिविर से लोगों की आजादी की 76वीं वर्षगांठ है. 25 साल पहले इसे होलोकॉस्ट स्मृति दिवस के रूप में मनाना शुरू किया गया. कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस बार स्मृति दिवस ऑनलाइन मन रहा है.
क्या है आउशवित्स बिर्केनाउ
पोलैंड की राजधानी वारसॉ से करीब 68 किलोमीटर दूर आउत्शविस एक यातना शिविर था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी सेना ने यहां करीब 13 लाख लोगों को कैद रखा जिनमें से 11 लाख लोग यहीं मर खप गए. कुछ लोगों को गैस चेंबरों में मार डाला गया तो कुछ यहां की कठोर जिंदगी का सामना नहीं कर पाने की वजह से मारे गए.
दूसरे शहरों में भी यातना शिविर
आउशवित्स का यातना शिविर अकेला नहीं था, ऐसे कई यातना शिविर जर्मनी और पोलैंड के अलग अलग शहरों में बनाए गए थे. तस्वीर में दिख रहा शिविर जर्मनी के दशाउ का है. ये शिविर दरअसल हिटलर की नस्ली शुद्धता को लागू करने की सनक का नतीजा थे. इस सनक ने ना सिर्फ जर्मनी बल्कि यूरोप के करोड़ों लोगों का जीवन तहस नहस कर दिया और पूरी दुनिया को एक भयानक युद्ध की आग में झोंक दिया.
कैंप की कठोर जिंदगी
यातना शिविर में शारीरिक रूप से कमजोर लोगों, और बुजुर्गों को तुरंत ही गैंस चैंबर में ठूंस कर मार दिया जाता. जवान लोगों से जीतोड़ मेहनत कराई जाती और बहुत थोड़ा और बेकार खाना दिया जाता. आउशवित्स की भूख सहने वाले लोग आज भी उन दिनों की याद से सिहर जाते हैं. जब वो कमजोर और बीमार हो जाते तो उनका भी यही अंजाम होता.
यातना से आजादी
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध में जब नाजी जर्मनी के पांव उखड़ने लगे तब रूसी सेना आउशवित्स पहुंची लेकिन तब यहां महज कुछ हजार लोग ही जीवित मिले. इसी दिन को 1996 से जर्मनी ने होलोकॉस्ट स्मृति दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की. इस मौके पर जर्मन संसद में विशेष कार्यक्रम के साथ ही आउशवित्स में भी श्रद्धांजलि दी जाती है.
बच्चों की कुर्बानी
आउशवित्स यातना शिविर में करीब 232,000 बच्चे भी थे. कुछ को यहां भेजा गया तो कुछ यहीं पैदा हुए. इनमें से करीब 2 लाख बच्चों ने अपनी जान गंवाई. रूसी सेना को केवल 700 बच्चे ही जीवित मिले. 2021 के स्मृति दिवस कार्यक्रम में बच्चों को ही केंद्र में रखा गया है. बच्चों पर हुए इस यातना के असर के बारे में एक विशेष चर्चा भी हो रही है जिसमें कैंप में जिंदा बचे दो लोग भी शामिल होंगे.
मानवता के खिलाफ अपराध
1939 से 1945 के बीच करीब 60 लाख यहूदियों को योजना बना कर मारा गया. इस्राएल में इस घटना को शोआह कहा जाता है जिसका मतलब है भयानक आपदा. इस्राएल के बाहर इसे मानवता के खिलाफ अपराध होलोकॉस्ट कहा जाता है. यह शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका मतलब है बलि के लिए जला देना.
कैम्प बना म्यूजियम
कैदियों की रिहाई के बाद आउशवित्स के शिविर को म्यूजियम बना दिया गया. यहां उन लोगों के कपड़े, जूते, बेल्ट, बैग, बाल और कई दूसरी चीजें आज भी मौजूद हैं जिन्हें यहां मारा गया. हर साल बड़ी संख्या में सैलानी इस जगह पहुंचते हैं. श्रद्धांजलि के कार्यक्रम में शिविर से जिंदा बचे लोग भी शामिल होते हैं और अपने अनुभव बांटते हैं.
दूसरी निशानियां
जर्मनी नाजी दौर की हुई उन गलतियों को बार बार याद कर दुनिया और अपने देश के लोगों को अहसास दिलाता है कि इस तरह की सनक के कैसे भयानक नतीजे हो सकते हैं और मानवता को इनसे दूर रहने की कितनी जरूरत है. जर्मन संसद के पास बना यह स्मारक दुनिया को यही संदेश देने के लिए बनाया गया.